Rupi Soren:
रांची। झारखंड आज गहरे शोक में डूबा है। झारखंड आंदोलन के प्रणेता, पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड की आत्मा कहे जाने वाले गुरुजी शिबू सोरेन अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनके निधन के साथ न केवल एक युग का अंत हुआ, बल्कि एक गहरा रिश्ता भी टूट गया, जो जीवनभर संघर्षों और आंदोलनों का साक्षी रहा उनकी जीवन संगिनी रूपी सोरेन।
गुरुजी की अंतिम यात्रा
गुरुजी की अंतिम यात्रा रांची से उनके पैतृक गांव नेमरा (रामगढ़) के लिए रवाना हो चुकी है, जहां आज शाम उन्हें पंचतत्व में विलीन किया जाएगा। लेकिन इस अंतिम यात्रा में एक भावनात्मक दृश्य सबकी आंखें नम कर गया व्हीलचेयर पर बैठीं रूपी सोरेन की खामोशी।रूपी देवी, जो जीवन के हर मोड़ पर गुरुजी के साथ रहीं चाहे वह जेल की यातनाएं हों, आंदोलन की कठिनाइयां या राजनीतिक संघर्ष आज उस साथी को अंतिम विदाई देने पहुंची थीं। उनकी आंखों में आंसू थे, पर जुबां खामोश थी।
खामोश हो गई रूपी सोरेन
यह खामोशी सिर्फ एक पत्नी का दुख नहीं, बल्कि पूरे झारखंड की भावना का प्रतीक बन गई है। शिबू सोरेन के विचार, उनका संघर्ष और झारखंड के लिए उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों को दिशा देता रहेगा। नेमरा गांव, जहां से गुरुजी का जीवन शुरू हुआ, आज उन्हें अंतिम बार अपनी मिट्टी में समाहित करने को तैयार है। हर आंख नम है, हर दिल भारी है।गुरुजी की विदाई सिर्फ एक नेता का अंत नहीं, बल्कि एक विचारधारा, आंदोलन और युग का समापन है।
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