Bihar Election:
बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है। NDA और महागठबंधन दोनों ही ताल ठोक रहे हैं। प्रथम चरण का नामांकन पूरा हो गया है औक दूसरे चरण के लिए जारी है। एक ओर जहां एनडीए में सीटों के बंटवारे पर सहमति की घोषणा कर दी गई है, वहीं, महागठबंधन यानी इंडी अलायंस में कुछ भी ठीक नहीं दिख रहा। करीब 12 सीटों पर गठबंधन के दल आमने-सामने हैं। खास कर कांग्रेस, राजद और वाम दल अपनी पंसद की सीटें छोड़ने को तैयार नहीं हैं, इससे महागठबंधन का पूरा मामला उलझ गया है।
कांग्रेस लड़ रही अस्तित्व की लड़ाईः
महागठूंधन की प्रमुख पार्टी कांग्रेस के समक्ष अस्तित्व का संकट है। बिहार में 1990 तक कांग्रेस की सरकार थी। इसके बाद लालू प्रसाद यादव का राज आया। उन्होंने पहले यहां जनता दल फिर राजद की सरकार 2005 तक चलाई। फिर आया नीतीश कुमार का दौर, जो अब तक जारी है। इस बीच कांग्रेस धीरे-धीरे हाशिये पर चली गई।
चयनित सीटों को लेकर अड़ी कांग्रेसः
अब 2025 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐसा महसूस हो रहा है कि राजद उसके साथ छल कर रहा है, जैसा कि 2020 के चुनाव में हुआ था। दरअसल, पिछली बार के चुनाव में कांग्रेस के खाते में 45 ऐसी सीटें मिली थीं, जो एनडीए का गढ़ मानी जाती हैं। तब तो कांग्रेस ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन रिजल्ट के बाद उसे समझ आ गया कि उसके साथ खेला हो गया। इस बार कांग्रेस वही गलती दुहराने के मूड में नहीं है। इसलिए इस बार कांग्रेस के लिए सीटों का नंबर मायने नहीं है, बल्कि उसे ऐसी सीटें चाहिए, जहां जीत भी मिले। चर्चाओं के मुताबिक इस बार राजद ने अपने लिए 131 सीटें और कांग्रेस के लिए 54 सीटों का प्रस्ताव दिया था।
पहले तो कांग्रेस 70 सीटों पर अड़ी थी, फिर 60 पर भी सहमत हो गई, लेकिन सीटें उसे अपनी पसंद की चाहिए थीं, जिस पर लालू का कुनबा सहमत नहीं हुआ। सीमांचल की सीटों में कांग्रेस हिस्सा चाहती थी, जो उसे नहीं मिल रहा था। खास तौर पर किशनगंज, जहां से तारीक अनवर कांग्रेस के सांसद हैं। कांग्रेस को इस बार भी ऐसी सीटें ज्यादा मिल रही थीं, जो एनडीए का गढ़ मानी जाती हैं। इससे कांग्रेस बिदक गई और अपनी शर्तें राजद के सामने रख दी। पर बात नहीं बनी और नतीजा सामने है।
रिश्तों में दरारः
इसके बाद से ही कांग्रेस और राजद कहें या तेजस्वी और राहुल गांधी के रिश्तों में दरार दिखने लगी। चार दिन पहले आइआरसीटीसी होटल स्कैम मामले में कोर्ट में पेशी के ए तेजस्वी यादव दिल्ली गये थे। चर्चाओं के मुताबिक दिल्ली में उनकी राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात होनी थी। पर दोनों ही नेताओं ने मिलने का समय नहीं दिया। इसके बाद कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल से उनकी मुलाकात हुई। वेणुगोपाल ने पार्टी का पक्ष रखते हुए शर्तें भी रख दीं। इसके बाद तेजस्वी वापस लौट आये।
नामांकन में अलग-थलग पड़े तेजस्वीः
पिछले सप्ताह ही तेजस्वी यादव ने गोपालगंज के राधोपुर से नामांकन किया। महागठबंधन का नेता होने के नाते उनके साथ अन्य दलों के नेताओं की मौजूदगी की उम्मीद की जा रही थी। परंतु उनके नामांकन में किसी भी सहयोगी दल का नेता नहीं पहुंचा। उनके साथ इस दौरान पिता लालू प्रसाद यादव, मां राबड़ी देवी, बहन मीसा भारती और उनके नजदीकी संजय यादव ही मौजूद रहे। तेजस्वी यादव के नामांकन में किसी सहयोगी दल के नेता का नहीं पहुचना बहुत कुछ इशारे करता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव प्रचार में कौन नेता किस सहयोगी दल को सहयोग करता है।
(लेखक IDTV के संपादक है)
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