Taliban press conference:
नई दिल्ली, एजेंसियां। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी की दिल्ली स्थित दूतावास में पहली पत्रकार वार्ता में भारतीय महिला पत्रकारों को शामिल न किया जाना व्यापक आलोचना का विषय बन गया। भारतीय महिला पत्रकारों और ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने इसे लैंगिक भेदभाव करार दिया। इस मामले पर प्रतिक्रिया के बाद दूसरी पत्रकार वार्ता में महिला पत्रकारों को बुलाया गया और उन्हें आगे बैठाया गया।
विश्लेषकों का कहना
विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम तालिबानी मूल्यों और भारत के व्यापक कूटनीतिक हितों के बीच संतुलन की चुनौती को दर्शाता है। भारत तालिबान से दोस्ती बनाये रखने के बावजूद उनके मध्ययुगीन और महिलाओं के प्रति दुराग्रह वाले दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं कर सकता। मुत्तकी की भारत यात्रा में धार्मिक शिक्षा केंद्र दारूल उलूम देवबंद का दौरा भी चर्चा में रहा, जहां महिलाओं को प्रवेश न देने जैसी परंपराएँ तालिबानी सोच के समान हैं।
तालिबान सत्ता में आने के बाद अफगान महिलाओं की स्थिति और कठिन हुई है। 2021 में महिला पत्रकारों की संख्या 1400 थी, जो 2023 में घटकर 400 रह गई। हालांकि कुछ महिला पत्रकार जैसे जहरा जोया अब भी अपने मिशन के तहत काम कर रही हैं। तालिबान की नजर में महिलाओं का काम केवल धार्मिक शिक्षा और परिवार तक सीमित है।
विशेषज्ञ मानते हैं
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत तालिबान से कूटनीतिक रिश्ते बनाए रखकर चीन, पाकिस्तान और रूस को क्षेत्रीय प्रभाव में बढ़त लेने से रोकना चाहता है। लेकिन इस प्रक्रिया में महिलाओं के अधिकारों और समानता की संवैधानिक गारंटी से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। तालिबानी सोच को भारत के मूल्यों के अनुरूप ढालना आवश्यक है, ताकि अंतरराष्ट्रीय दोस्ती और मानवाधिकारों में संतुलन बना रहे।
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