Madhu Koda:
रांची। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का राजनीतिक सफर असाधारण और विरोधाभासों से भरा रहा है। बिहार विधानसभा के पूर्व सदस्य रहे कोड़ा, भारत के इतिहास में तीसरे ऐसे निर्दलीय विधायक हैं जो मुख्यमंत्री निर्दलीय रहते मुख्यमंत्री बनें। उन्होंने सबसे लंबे समय 23 महीने तक एक निर्दलीय मुख्यमंत्री के रूप में शासन करने का राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया। एक निर्दलीय सीएम का यह सबसे लंबा कार्यकाल है। एक रिकॉर्ड भ्रष्टाचार का भी बना। मधु कोड़ा पर मुख्यमंत्री रहते 4 हजार करोड़ रुपये के घोटाला का आरोप लगा। उनके कार्यकाल को भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। वह 44 महीने जेल में भी रहे।
जुझारू इंसान हैं मधु कोड़ाः
मधु कोड़ा का एक परिचय जुझारू नेता के रूप में भी है। आलोचना, अपमान, विश्वासघात को सह कर भी मधु कोड़ा टूटे नहीं। गिर कर वे फिर खड़े हुए। राजनीति में दोबारा जगह बनायी। उन पर जब कानून का शिकंजा कसा तो अपनी राजनीतिक विरासत को पत्नी के माध्यम से आगे बढ़ाया।
बिहार की विधायकी से मधु कोड़ा की शुरुआतः
मधु कोड़ा पश्चिम सिंहभूम जिले के गुआ गांव के रहने वाले हैं। वह हो जनजाति से आते हैं। उन्होंने राजनीति की शुरुआत आजसू से की। साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मधु कोड़ा को जगन्नाथपुर (पूर्वी सिंहभूम) से उम्मीदवार बनाया। वे जीते और विधायक बने। उस समय उनकी उम्र 29 साल थी। 15 नवम्बर 2000 को जब झारखंड अलग राज्य बना, तो वे झारखंड विधानसभा के विधायक बन गये। भाजपा के बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री बने तो वे ग्रामीण अभियंत्रण संगठन विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने। एक युवा नेता के लिए यह बड़ी उपलब्धि थी।
आंतरिक कलह ले डूबी बाबूलाल मरांडी की कुर्सीः
राज्य स्थापना के बाद मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के खिलाफ भाजपा की आंतरिक गुटबाजी शुरू हो गयी। मार्च 2003 में भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के खिलाफ विद्रोह कर दिया। झारखंड राज्य को बने तीन साल ही हुए थे कि यहां भ्रष्टाचार की नींव पड़ गयी। बाबू लाल मरांडी सख्त नेता थे। वे किसी की सुनते नहीं थे। यही बात उनके खिलाफ हो गयी। पद और लाभ की लालसा लिये नेताओं ने बगावत कर दी। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। जब वे मुख्यमंत्री पद से हटे तो उन्होंने एक बड़ा खुलासा किया कि मधु सिंह देश के ऐसे पहले मंत्री हुए जिन्होंने अपने ही मुख्यमंत्री को रिश्वत की पेशकश की। मरांडी के मुताबिक, मंत्री ने कहा था कि अगर उन्हें भूमि सुधार और राजस्व विभाग के अलावा निबंधन विभाग भी मिलेगा तो वे उन्हें (सीएम) सालाना 50 लाख रुपये देंगे। उन्होंने यह मांग नहीं मानी और अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा दी।
कोड़ा का अर्जुन मुंडा से हुआ मतभेदः
बाबूलाल मरांडी के इस्तीफे के बाद अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने। मुंडा सरकार में मधु कोड़ा पंचायती राज मंत्री बने। लेकिन, इस दौरान अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में कुछ मतभेद उभर आये। 2005 में झारखंड विधानसभा का पहला चुनाव हुआ। इस चुनाव में अर्जुन मुंडा के विरोध के कारण मधु कोड़ा को टिकट नहीं मिला। मधु कोड़ा ने भाजपा नेताओं को मनाने की बहुत कोशिश की। कहा जाता है कि टिकट कटने से वे इतने भावुक हो गये कि भाजपा नेताओं के सामने रो पड़े। लेकिन, बात नहीं बनी। तब मधु कोड़ा का सोया हुआ आत्मसम्मान जाग गया। उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। 2005 में जगन्नाथपुर से निर्दलीय विधायक बन कर उन्होंने भाजपा का घमंड तोड़ दिया।
भाजपा का घमंड तोड़ाः
2005 के चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में सरकार बनाने के लिए जोड़ तोड़ शुरू हुई। पहले शिबू सोरेन ने कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनायी। लेकिन, विश्वास मत हासिल नहीं कर पाने के कारण 9 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा। अर्जुन मुंडा सीएम बनने की रेस में थे। लेकिन, उनके पास भाजपा और जदयू को मिला कर कुल 36 विधायक ही थे। बहुमत के लिए 41 का आंकड़ा चाहिए था। जिस अर्जुन मुंडा ने साजिश से मधु कोड़ा का टिकट कटवा दिया था, वही उनसे समर्थन की चिरौरी करने लगे। मधु कोड़ा ने अपने अपमान का पहला हिसाब पूरा कर लिया। अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने मधु कोड़ा को खनन, भूविज्ञान और सहकारिता मंत्री बनाया।
..फिर मुंडा सरकार को दिखाया आईनाः
अर्जुन मुंडा सरकार को मधु कोड़ा समेत चार निर्दलीय विधायक भी समर्थन कर रहे थे। तीन अन्य विधायक थे एनोस एक्का, कमलेश सिंह और हरिनारायण राय। समर्थन के बदले इन्हें भी मंत्री पद मिला था। मधु कोड़ा, अर्जुन मुंडा के दिये जख्म को भूले नहीं थे। वे मुख्यमंत्री की कार्यशैली से भी खफा थे। मधु कोड़ा ने एनोस एक्का, कमलेश सिंह और हरिनारायण राय को अपने साथ मिला लिया। ये चारों मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के खिलाफ बयानबाजी करने लगे।
ऐसे गिरा दी अर्जुन मुंडा की सरकारः
सितम्बर 2006 में घटनाक्रम तेजी से बदलने लगा। अर्जुन मुंडा की सरकार को गिराना मधु कोड़ा का मकसद बन गया। लेकिन यह काम कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन के बिना नहीं हो सकता था। तब मधु कोड़ा, एनोस एक्का, हरिनारायण राय और कमलेश सिंह ने दिल्ली जा कर कांग्रेस से सहयोग लेने का निश्चय किया। मधु कोड़ा, एनोस एक्का और हरिनारायण राय तो दिल्ली पहुंच गये, लेकिन कमलेश सिंह को अर्जुन मुंडा के समर्थकों ने पकड़ लिया और दिल्ली जाने से रोक दिया।
झामुमो और कांग्रेस का मिल गया साथः
4 सितम्बर को कांग्रेस के केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने दिल्ली में कहा, अगर अर्जुन मुंडा सरकार गिर जाती है और निर्दलीय विधायकों ने हमसे (कांग्रेस) सम्पर्क किया तो हम वैकल्पिक सरकार बनाने की कोशिश करेंगे। हम किसी भी हाल में मध्यावधि चुनाव नहीं चाहते। दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक और नेता प्रतिपक्ष सुधीर महतो ने घोषणा कर दी कि अगर नयी सरकार के गठन की नौबत आती है, तो उनकी पार्टी की तरफ से कोई मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं होगा। उनके शीर्ष नेता शिबू सोरेन ने इस होड़ से खुद को अलग कर लिया है। इस तरह कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने एक तरह से मधु कोड़ा को मुंडा सरकार गिराने का साफ संकेत दे दिया।
चार मंत्रियों का इस्तीफा, मुंडा सरकार अल्पमत मेः
इसके बाद मुंडा सरकार के चार निर्दलीय मंत्रियों, मधु कोड़ा, एनोस एक्का, कमलेश सिंह और हरिनारायण राय ने इस्तीफा दे दिया। साथ ही साथ मुंडा सरकार से समर्थन भी वापस ले लिया। इससे अर्जुन मुंडा की सरकार अल्पमत में आ गयी। 6 सितम्बर 2006 से वैकल्पिक सरकार बनाने की कोशिशें तेज हो गयीं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास 17 तो कांग्रेस के पास 9 विधायक थे। दोनों मिल कर मार्च 2005 में सरकार बना कर दुर्गति झेल चुके थे। केवल 9 दिन में ही सरकार गिर गयी थी।
मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बनेः
बहुमत खो देने के कारण अर्जुन मुंडा ने 14 सितम्बर को इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस और झामुमो अल्पमत की कमजोर सरकार भी नहीं चाहते थे और मध्यावधि चुनाव भी टालना चाहते थे। तब उन्होंने मधु कोड़ा को आगे कर दिया, ताकि एक कमजोर मुख्यमंत्री को कुर्सी बैठा कर वे अपने हितों की पूर्ति कर सकें। सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री के रूप में मधु कोड़ा के नाम का समर्थन किया। इस तरह मधु कोड़ा ने 18 सितम्बर 2006 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। झामुमो, कोड़ा सरकार में शामिल हुई, जबकि कांग्रेस ने उसे बाहर से समर्थन दिया।
भ्रष्टाचार के दलदल में डूबी सरकारः
झामुमो, कांग्रेस, निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के समर्थन से बनी कोड़ा सरकार बहुत कमजोर थी। इसकी वजह से भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है। शिबू सोरेन के समर्थन वापस लेने के कारण मधु कोड़ा ने 24 अगस्त 2008 को इस्तीफा दे दिया। फिर मई 2009 में निर्दलीय सांसद (सिंहभूम) बने। लेकिन, इसके बाद उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गयी। 30 नवम्बर 2009 को राज्य पुलिस के सतर्कता विभाग ने खनन घोटाला मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया कि मधु कोड़ा ने मुख्यमंत्री रहते लौह अयस्क और कोयला खनन के अवैध आवंटन के लिए बहुत बड़ी रकम रिश्वत में ली। जांच एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक मधु कोड़ा खदानों के अवैध आवंटन से करीब चार हजार करोड़ से अधिक की राशि जमा की। फिर वह 2013 में जमानत पर रिहा हुए।
चुनाव लड़ने पर लगा बैनः
2017 में कोर्ट ने उन्हें कोयला खनन घोटाला में दोषी करार दिया और तीन साल की सजा सुनायी। साथ में 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग गयी। 2024 में मधु कोड़ा विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दोष सिद्धि पर रोक लगाने की याचिका दाखिल की थी। लेकिन, शीर्ष कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी जिससे मधु कोड़ा चुनाव नहीं लड़ सके। हालांकि इससे पहले कोड़ा अपनी पत्नी गीता कोड़ा की राजनीति में एंट्री करा चुके थे और वह 2024 तक वह पश्चिमी सिंहभूम से सांसद रहीं।



