Monday, July 28, 2025

झारखंड में आसान नहीं एनडीए की राह

रांची। झारखंड में बीजेपी पिछले 20 साल से बेहतर प्रदर्शन करती रही है। खास तौर पर संसदीय चुनावों में बीजेपी को झारखंड के मतदाताओं ने दिल खोलकर वोट दिया है।

पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने झारखंड की 14 में से 12 सीटें जीत कर परचम लहराया है। इस बार भी बीजेपी यही उम्मीद पाले बैठी है।

पार्टी ने इस बार नारा दिया है झारखंड में 14 में फतह। बीजेपी या कहें कि एनडीए सभी 14 सीटों पर कब्जा जमाने के लिए रणनीति बनाकर काम कर रही है।

आम लोग और रणनीतिकार भी मान रहे हैं। 12 सीटें बीजेपी को मिल सकती है, भले ही कुछ सीटों में बदलाव हो सकता है।

पर ऊपर से जैसा दिख रहा है, हकीकत उससे कुछ अलग भी हो सकती है। राजनीतिक रणनीतिकारों की मानें, तो इस बार बीजेपी के लिए राह उतनी आसान नहीं है, जैसी कि दिख रही है।

कई सीटों पर बीजेपी को कड़ी चुनौती मिलने जा रही है। कहीं, विपक्षी उम्मीदवार एकजुट होकर मजबूती से टक्कर दे रहा है, तो कहीं बीजेपी की अंदरूनी कलह उसे नुकसान पहुंचा सकती है।

इसके अलावा इंडिया गठबंधन ने झारखंड में जिस तरह एकजुट होकर मुकाबले में उतरा है, उससे लगता है कि मुकाबला आसान नहीं है।

सिर्फ राज्य की छह सीटें ही ऐसी हैं, जहां इंडिया गठबंधन को त्रिकोणीय मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है।

इनमें लोहरदगा सीट सबसे पहले नंबर है, जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा के चमरा लिंडा ने नामांकन दाखिल कर दिया है।

उनके मैदान में उतरने से निश्चित ही इंडिया गठबंधन को नुकसान हो सकता है। वहीं, चतरा सीट से यदि गिरिनाथ सिंह नामांकन करते हैं, तो वह भी त्रिकोणीय मुकाबले की पिच तैयार करेंगे, जिससे इंडिया गठबंधन को नुकसान हो सकता है।

वहीं राजमहल सीट पर लोबिन हेंब्रम बीजेपी की राह आसान बना रहे हैं। देखा जाये तो राजमहल सीट को छोड़ बाकी सारी सीटें बीजेपी के पास ही हैं।

इसलिए अन्य पांच में से किसी नई सीट का लाभ इससे बीजेपी को मिलनेवाला नहीं है।

वहीं, यदि बीजेपी या एनडीए की चुनौतियों की बात करें, तो कई सीटों पर एनडीए की राह में कांटे ही कांटे दिख रहे हैं।

सबसे पहले बात खूंटी की। खूंटी में पिछला लोकसभा चुनाव भी कांट का रहा था। यहां केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा काफी कम अंतर से जीत पाये थे।

पिछली बार भी यहां से उम्मीदवार कालीचरण मुंडा ही थे। जो इस बार भी पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं।

कांग्रेस ने उनकी उम्मीदवारी काफी पहले ही घोषित कर दी थी। ऐसे में इस आदिवासी पहुल इलाके में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर माहौल बनाने में इंडी गठबंधन ने सफलता पाई है।

इसके अलावा अर्जुन मुंडा की क्षेत्र में कम सक्रियता से भी लोगों से उनकी दूरी बढ़ती दिख रही है।

वहीं, इस क्षेत्र दिग्गज वयोवृद्ध बीजेपी नेता कड़िया मुंडा की कम सक्रियता से भी पार्टी पहले की तरह मजबूत नहीं दिखती।

इसके अलावा एक और फैक्टर हो जो बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। वह है प्रत्याशियों का चयन या उम्मीदवारों में बदलाव।

इसके कारण कुछ सीटों पर भीतरघात की संभावना दिख रही है। इसमे सबसे पहले बात धनबाद की होगी, जिसकी चर्चा चहुओर है।

दरअसल, धनबाद से बीजेपी ने मौजूदा सासंद पीएन सिंह का टिकट इस आधार पर काट दिया है कि उनकी उम्र ज्यादा हो गई है।

इसके बाद बीजेपी के कई दिग्गज नेता इस सीट पर नजरे गड़ाये थे, जिनमें बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय, धनबाद के विधायक राज सिन्हा, बोकारो के विधायक विरंची नारायण, झरिया के पूर्व विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह।

परंतु पार्टी ने सबको चौंकाते हुए विधायक ढुल्लू महतो को टिकट दे दिया। ढुल्लू महतो को टिकट मिलते ही उनका चौतरफा विरोध शुरू हो गया।

एक खेमे ने तो उनके खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया। पार्टी के शीर्ष नेताओं से पत्राचार भी किया गया।

इस बीच जमशेदपुर के निर्दलीय विधायक सरयू राय की धनबाद में इंट्री हो गई। उन्होंने भी ढुल्लू के खिलाफ डाक्यूमेंट बम फोड़ना शुरू कर दिया है और लगातार ढुल्लू के कारनामों की पोल खोल रहे हैं।

जाहिर है इसका प्रभाव तो बीजेपी के वोटरों पर पड़ेगा ही। अब सरयू राय धनबाद से चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं।

यदि वह मैदान में उतरते हैं तो यहां भी मुकाबला त्रिकोणीय हो जायेगा। वह राजपूत और अग्रणों की वोट में सेंधमारी जरूर करेंगे।

इससे कांग्रेस प्रत्याशी अनुपमा सिंह को बीजेपी के मुकाबले ज्यादा नुकसान हो सकता है। पर सरयू राय भी माहिर खिलाड़ी हैं।

वह सब कुछ नाप तौल कर ही करेंगे। यदि चुनाव न लड़कर उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन दे दिया, तो निश्चित ही ढुल्लू महतो की राह मुश्किल हो जायेगी।

इसके साथ यह भी तय है कि टिकट से वंचित नाराज बीजेपी नेता ढुल्लू महतो को कितना समर्थन करेंगे, यह भविष्य के गर्भ में हैं।

उधर गिरिडीह में एनडीए प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी की राह भी आसान नहीं दिख रही। यहां बीजेपी कार्यकर्ताओं में उन्हें लेकर काफी नाराजगी दिख रही है।

वहीं भाजपा के पूर्व सांसद रवींद्र पांडेय भी चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोक रहे हैं। यदि वह पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरते हैं, तो चंद्रप्रकाश की मुश्किल ही बढ़ायेंगे। रवींद्र पांडेय पुराने भाजपाई हैं और कार्यकर्ताओं पर उनकी पकड़ भी है।

इसी तरह चतरा सीट भी बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। यहां बीजेपी ने कालीचरण सिंह को टिकट दिया है।

यह एक ऐसी सीट है, जहां हमेशा बाहरी ही सांसद रहे हैं। स्थानीय कार्यकर्ता के दबाव में पहली बार बीजेपी ने स्थानीय नेता को उम्मीदवार बनाया है।

परंतु उन्हें टिकट देते ही विरोध के सुर यहां तेज हो गये। यहां बीजेपी नेता राजधानी यादव टिकट के दावेदार थे।

उन्होंने मजबूती के साथ इसका विरोध किया। यहां तक कि वह रांची पहुंच गये और पार्टी कार्यालय के बाहर धरने पर बैठ गये।

इतना ही नहीं, प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी द्वारा बुलाई गई मीटिंग का भी उन्होंने विरोध किया, तब पार्टी के शीर्ष नेताओं की पहल पर उनके कागजात लिये गये।

हालांकि अभी भी कालीचरण ही बीजेपी के प्रत्याशी हैं, पर उनके प्रति कार्यकर्ताओं में नाराजगी बरकरार है।

इसके अलावा कई अन्य ऐसी सीटें हैं, जहां बीजेपी ने प्रत्याशी बदला है और वहां के निवर्तमान सांसदों में नाराजगी की खबरें आ रही हैं।

इनमें दुमका सीट सबसे अहम हैं, जहां से बीजेपी ने मौजूदा सांसद सुनील सोरेन से टिकट वापस लेकर ताजा ताजा बीजेपी में शामिल हुई सीता सोरेन को थमा दिया है।

अब सुनील सोरेन चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े हैं। वैसे भी यहां हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर पहले से ही बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश झामुमो द्वारा की जा रही है।

यह झामुमो की पारंपरिक सीट मानी जाती है। यहां से शिबू सोरेन परिवार का वर्चस्व रहा है। गुरुजी शिबू सोरेन यहां के लीजेंड से कम नहीं हैं।

सीता सोरेन के बारे में झामुमो द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा है कि उन्होंने सोरेन परिवार से बगावत कर आई हैं। ये सारी बातें बीजेपी के खिलाफ जाती दिख रही हैं।

इसी प्रकार चाईबासा सीट पर मौजूदी सांसद और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई गीता कोड़ा की मुश्किलें भी बढ़ती दिख रही हैं।

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में लोगों की नाराजगी को झामुमो भुनाने में जुटा है।

यहां की सारी विधानसभा सीटें झामुमो के पास हैं। यहां झामुमो का नेटवर्क काफी मजबूत है।

इसका नतीजा पिछले दिनों देखने को मिला, जब गीता कोड़ा को प्रचार के दौरान ग्रामीणों ने घेरकर बंधक बना लिया था।

दरअसल पिछले चुनाव में झामुमो के इसी नेटवर्क ने गीता कोड़ा को समर्थन दिया था, जिसकी वजह से वह मोदी लहर में भी जीत पाई थीं। अब इस बार तो उन्हें भी अंदाजा लग गया है कि राह आसान नहीं है।

हजारीबाग में भी बीजेपी उम्मीदवार बदला है। यहां मौजूदा सांसद जयंत सिन्हा का टिकट काटकर विधायक मनीष जायसवाल को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है।

इससे जयंत सिन्हा और उनके पिता तथा पूर्व कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा नाराज हैं। यशवंत सिन्हा तो पहले से ही बीजेपी के खिलाफ हैं।

जाहिर है अपरोक्ष रूप यह परिवार तो बीजेपी के खिलाफ ही समर्थन देगा, जिससे मनीष जायसवाल की मुश्किल बढ़ सकती है।

वैसे भी यहां से कांग्रेस ने जेपी पटेल को टिकट दिया है, जो मौजूदा विधायक भी हैं। उनके पिता टेकलाल महतो इस क्षेत्र के बड़े नेता रहे हैं।

इस परिवार की क्षेत्र में अच्छी पकड़ है और यह परिवार कुर्मी समाज में काफी सम्मान पाता है। ये सारी बातें मनीष जायसवाल को परेशान कर सकती हैं।

इसी प्रकार लोहरदगा में भी बीजेपी ने मौजूदा सांसद सुदर्शन भगत का टिकट काटकर समीर उरांव को उम्मीदवार बनाया है।

सुदर्शन भगत की पृष्ठभूमि संघ से जुड़ी रही है, इसलिए वह खुलकर सामने नहीं आयेंगे, परंतु मन की कसक उन्हें रोक रही है।

हालांकि इस सीट पर चमरा लिंडा ने बीजेपी की राह आसान बना दी है। ये वही चमरा लिंडा हैं, जिन्होंने पिछले दोनों चुनावों में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। इसलिए लोहरदगा सीट पर भी बीजेपी का कांटा फंसा दिखता है।

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