दिनांक -14 अगस्त 2024
दिन – बुधवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत -1946
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा ॠतु
मास – श्रावण
पक्ष – शुक्ल
तिथि – नवमी सुबह 10:23 तक तत्पश्चात दशमी
नक्षत्र – अनुराधा दोपहर 12:13 तक तत्पश्चात ज्येष्ठा
योग – इन्द्र शाम 04:06 तक तत्पश्चात वैधृति
राहुकाल – दोपहर 12:43 से दोपहर 02:20 तक
सूर्योदय -05:28
सूर्यास्त- 06:08
दिशाशूल – उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण-
विशेष – नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
चतुर्मास मे पहली बार आया एक ही दिन मे 06 बडे दुर्लभ योग संपूर्ण जानकारी इस बीडीओ में
इन पुण्यदायी तिथियों व योगों का अवश्य उठायें लाभ
25 अगस्त : रविवारी सप्तमी (सूर्योदय से 26 अगस्त प्रातः 03:39 तक) (यह सूर्यग्रहण के बराबर कही गयी है। इसमें ध्यान, जप, मौन आदि का अक्षय प्रभाव होता है ।)
26 अगस्त : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (“जो जन्माष्टमी का व्रत रखता है उसे करोड़ों एकादशी व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है और उसके रोग, शोक दूर हो जाते हैं।” – भगवान ब्रह्माजी
“20 करोड़ एकादशी व्रतों के समान अकेला जन्माष्टमी का व्रत है।” – भगवान श्रीकृष्ण
जन्माष्टमी को रात्रि-जागरण करके ध्यान, जप आदि करने का विशेष महत्त्व है ।)
29 अगस्त : अजा एकादशी (इसका व्रत सब पापों का नाश करनेवाला है। इसका माहात्म्य पढ़ने-सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है ।)
02 सितम्बर : सोमवती अमावस्या (सूर्योदय से 03 सितम्बर सूर्योदय तक) (यह सूर्यग्रहण के बराबर कही गयी है।
इसमें ध्यान, जप, मौन आदि का अक्षय प्रभाव होता है। इस दिन तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है ।)
06 सितम्बर : चतुर्थी (चन्द्र-दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त : रात्रि 08:56)
07 सितम्बर : गणेश चतुर्थी (चन्द्र-दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त : रात्रि 06:27) (अगर भूल से चन्द्रमा दिख गया तो उसके कुप्रभाव को मिटाने के लिए स्यमंतक मणि की चोरी की कथा पढ़ें ।
(कथा हेतु पढ़ें ऋषि प्रसाद, अगस्त 2022, पृष्ठ 24-25) तृतीया (05 सितम्बर) व पंचमी (08 सितम्बर) का चाँद देख लेने से चतुर्थी का चाँद लापरवाही या बेवकूफी से दिख जाय तो भी उसका प्रभाव कम हो जायेगा ।
गणेश चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतये नमः ।’ मंत्र का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर अर्पित करने से विघ्न-निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।}
11 सितम्बर : बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से रात्रि 11:46 तक) (सूर्यग्रहण के बराबर । ध्यान, जप, मौन आदि का अक्षय प्रभाव ।)
14 सितम्बर: पद्मा-परिवर्तिनी एकादशी (व्रत करने व महात्म्य पाठ-सुनने से सभी पापों से मुक्ति)
16 सितम्बर ; षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल : दोपहर 12:21 से सूर्यास्त तक) (इसमें किये गये ध्यान, जप व पुण्यकर्म का फल 86 हजार गुना होता है। – पद्म पुराण)
गंगाजल के समान गुणकारी है मघा जल
(मघा नक्षत्र : 16 अगस्त रात्रि 07:53 से 30 अगस्त शाम 03:55 तक)
भगवान सूर्य जब मघा नक्षत्र में रहते हैं तब आकाश से गिरनेवाला वर्षा का जल गंगाजल के समान माना जाता है।
पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है : “जब सूर्य की मघा नक्षत्र में उपस्थिति होती है तब होनेवाली बरसात का पानी गंगामय है। मघा नक्षत्र का जल छान-छून के रख लो ।
रात को २-२ बूँदें आँखों में डालो और सुबह आँखों की खराबी गायब ! वह पानी बच्चों को पिलाओ महीना-दो महीना तो पेट के कृमि गायब ! जैसे गंगाजल में दूसरा कोई गड़बड़ जल भी मिलता है तो गंगाजल उसको ठीक कर देता है वैसे ही मघा नक्षत्र के पानी में यह प्रभाव है।
मघा नक्षत्र के दिनों में बारिश हो रही थी, मैंने आसमान की तरफ देखा और पलकें खोलकर रखीं तो आँखों में वह मघा नक्षत्र का पानी आया। इससे आँखों में भी मेरे को विशेष फायदा हो गया।
आँखों में जो चिपचिपापन होता था वह भी कम हो गया। एक दिन ही लगाया तो इतना फायदा हो गया !
मघा का यह पानी पीने से पेट की समस्याओं में बहुत फायदा होता है। अगर आप कोई आयुर्वेदिक दवा ले रहे हैं तो मघा जल के साथ लें, उसके फायदे बहुत बढ़ जायेंगे। यह पानी आपके घर में खाना बनाने के लिए, स्नान के लिए भी बहुत अच्छा है।”
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