दिनांक -05 अगस्त 2024
दिन – सोमवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत -1946
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा ॠतु
मास – श्रावण
पक्ष – शुक्ल
तिथि – प्रतिपदा शाम 06:03 तक तत्पश्चात द्वितीया
नक्षत्र – अश्लेशा शाम 03:21 तक तत्पश्चात मघा
योग – व्यतीपात सुबह 10:38 तक तत्पश्चात वरीयान
राहुकाल – सुबह 07:52 से सुबह 09:29 तक
सूर्योदय -05:25
सूर्यास्त- 06:13
दिशाशूल – पूर्व दिशा में
व्रत पर्व विवरण-
अमावस्यांत श्रावण मास आरंभ,चंद्र-दर्शन (रात्रि 07:06 से 07:52 तक
विशेष – प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं क्योकि यह धन का नाश करने वाला है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
श्रावण सोमवार को इतना करने से जीवन सुखमय रहेगा
श्रावण में रुद्राभिषेक करने का महत्व
“रुद्राभिषेकं कुर्वाणस्तत्रत्याक्षरसङ्ख्यया, प्रत्यक्षरं कोटिवर्षं रुद्रलोके महीयते। पञ्चामृतस्याभिषेकादमृत्वम् समश्नुते।।”
श्रावण में रुद्राभिषेक करने वाला मनुष्य उसके पाठ की अक्षर-संख्या से एक-एक अक्षर के लिए करोड़-करोड़ वर्षों तक रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। पंचामृत का अभिषेक करने से मनुष्य अमरत्व प्राप्त करता है।
श्रावण मास में भूमि पर शयन
“केवलं भूमिशायी तु कैलासे वा समाप्नुयात” – स्कन्दपुराण
श्रावण मास में भूमि पर शयन करने से मनुष्य कैलाश में निवास प्राप्त करता है।
पार्थिव शिवलिंग
जो पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर एकबार भी उसकी पूजा कर लेता है, वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग में निवास करता है, शिवलिंग के अर्चन से मनुष्य को प्रजा, भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है |
जो मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण कर शरीर छोड़ता है वह करोड़ों जन्मों के संचित पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है |’
कलियुग में पार्थिव शिवलिंग पूजा ही सर्वोपरि है ।
कृते रत्नमयं लिंगं त्रेतायां हेमसंभवम्
द्वापरे पारदं श्रेष्ठं पार्थिवं तु कलौ युगे (शिवपुराण)
शिवपुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग का पूजन सदा सम्पूर्ण मनोरथों को देनेवाला हैं तथा दुःख का तत्काल निवारण करनेवाला है |
पार्थिवप्रतिमापूजाविधानं ब्रूहि सत्तम ॥
येन पूजाविधानेन सर्वाभिष्टमवाप्यते ॥
अग्निपुराण के अनुसार
त्रिसन्ध्यं योर्च्चयेल्लिङ्गं कृत्वा विल्वेन पार्थिवम्।
शतैकादशिकं यावत् कुलमुद्धृत्य नाकभाक् ।। 327.15 ।। अग्निपुराण
जो मनुष्य प्रतिदिन तीनों समय पार्थिव लिङ्ग का निर्माण करके बिल्वपत्रों से उसका पूजन करता है, वह अपनी एक सौ ग्यारह पीढ़ियों का उद्धार करके स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।
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