दिनांक – 30 सितम्बर 2024
दिन – सोमवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत -1946
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – अश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – त्रयोदशी शाम 07:06 तक तत्पश्चात चतुर्दशी
नक्षत्र – पूर्वाफाल्गुनी पूर्ण रात्रि तक
योग – शुभ 01 अक्टूबर रात्रि 01:18 तक तत्पश्चात शुक्ल
राहुकाल – सुबह 07:59 से सुबह 09:29 तक
सूर्योदय -05:40
सूर्यास्त- 06:02
दिशाशूल – पूर्व दिशा में
व्रत पर्व विवरण – त्रयोदशी का श्राद्ध,मासिक शिवरात्रि
विशेष – त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
पित्र अमावस्या पर यहा दीपक जरूर जलाए पित्र होगे संतुष्ट
चतुर्दशी तिथि पर न करें श्राद्ध
01 अक्टूबर 2024 मंगलवार को आग – दुर्घटना – अस्त्र – शस्त्र – अपमृत्यु से मृतक का श्राद्ध
हिंदू धर्म के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में परिजनों की मृत्यु तिथि के अनुसार ही श्राद्ध करने का विधान है।
महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया है कि इस तिथि पर केवल उन परिजनों का ही श्राद्ध करना चाहिए, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।
इस तिथि पर अकाल मृत्यु (हत्या, दुर्घटना, आत्महत्या आदि) से मरे पितरों का श्राद्ध करने का ही महत्व है।
इस तिथि पर स्वाभाविक रूप से मृत परिजनों का श्राद्ध करने से श्राद्ध करने वाले को अनेक प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उन परिजनों का श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करना श्रेष्ठ रहता है।
महाभारत के अनुसार पर्व अनुसार पितरों की मृत्यु स्वाभाविक रुप से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करने से श्राद्धकर्ता विवादों में घिर जाता हैं। उन्हें शीघ्र ही लड़ाई में जाना पड़ता है। जवानी में उनके घर के सदस्यों की मृत्यु हो सकती है।
चतुर्दशी श्राद्ध के संबंध में ऐसा वर्णन कूर्मपुराण में भी मिलता है कि चतुर्दशी को श्राद्ध करने से अयोग्य संतान होती है।
याज्ञवल्क्यस्मृति के अनुसार, भी चतुर्दशी तिथि को श्राद्ध नहीं करना चाहिए। इस दिन श्राद्ध करने वाला विवादों में फस सकता है।
चतुर्दशी तिथि पर अकाल (हत्या), आत्महत्या (दुर्घटना), रुप से मृत परिजनों का श्राद्ध करने का विधान है।
जिन पितरों की अकाल मृत्यु हुई हो व उनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं।
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