दिनांक – 25 सितम्बर 2024
दिन – बुधवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत -1946
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – अश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – अष्टमी दोपहर 12:10 तक तत्पश्चात नवमी
नक्षत्र – आर्द्रा रात्रि 10:23 तक तत्पश्चात पुनर्वसु
योग – वरीयान रात्रि 12:18 तक तत्पश्चात परिघ
राहुकाल – दोपहर 12:30 से दोपहर 02:01 तक
सूर्योदय -05:39
सूर्यास्त- 06:03
दिशाशूल – उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण – बुधवारी अष्टमी,(सूर्योदय से दोपहर 12:10 तक),नवमी का श्राद्ध,सौभाग्यवती का श्राद्ध
विशेष – अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
महालक्ष्मी व्रत पूर्णाहुति मे इतना अवश्य कर लें।
सर्वलाभ की कुंजी
कैसा भी बीमार व्यक्ति हो, उसको हरिनाम की, ‘हरि ॐ’ की साधना दे दो, चंगा होने लगेगा। बिल्कुल पक्की बात है !
आपको स्वस्थ रहना है तो भी भगवान का नाम, प्रसन्न तथा निरहंकारी रहना है तो भगवान का नाम, उद्योगी एवं साहसी होना है तो भगवान का नाम और पूर्वजों का मंगल करना है तो भी भगवान का नाम….
पुष्य नक्षत्र योग
26 सितम्बर 2024 गुरुवार को रात्रि 11:34 से 27 सितम्बर सूर्योदय तक गुरुपुष्यामृत योग है।
108 मोती की माला लेकर जो गुरुमंत्र का जप करता है, श्रद्धापूर्वक तो २७ नक्षत्र के देवता उस पर खुश होते हैं और नक्षत्रों में मुख्य है पुष्य नक्षत्र, और पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं देवगुरु ब्रहस्पति।
पुष्य नक्षत्र समृद्धि देनेवाला है, सम्पति बढ़ानेवाला है | उस दिन ब्रहस्पति का पूजन करना चाहिये। ब्रहस्पति को तो हमने देखा नहीं तो सद्गुरु को ही देखकर उनका पूजन करें और मन ही मन ये मंत्र बोले –
ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम :
…… ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम :
श्राद्ध पक्ष मे सभी को पित्रो की सद्गति के लिए जरूर करना चाहिए।
कैसे बदले दुर्भाग्य को सौभाग्य में
बरगद के पत्ते पर गुरुपुष्य या रविपुष्य योग में हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें।
गुरुपुष्यामृत योग
‘शिव पुराण’ में पुष्य नक्षत्र को भगवान शिव की विभूति बताया गया है | पुष्य नक्षत्र के प्रभाव से अनिष्ट-से-अनिष्टकर दोष भी समाप्त और निष्फल-से हो जाते हैं, वे हमारे लिए पुष्य नक्षत्र के पूरक बनकर अनुकूल फलदायी हो जाते हैं।
‘सर्वसिद्धिकर: पुष्य:’
इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है। पुष्य नक्षत्र में किये गए श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है तथा कर्ता को धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है।
इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं | (शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)
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