प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदा के दौरान जीवन और संपत्ति के संरक्षण और पुनर्प्राप्ति में सहायता करने के लिए कानूनी तौर पर जो भी नीतियाँ बनाई जाती है उसे आपदा प्रबंधन कहते हैं।
बाढ़, तूफान/चक्रवात, जैसी आपदाओं से बड़े पैमाने पर होने वाली नुकसान और बीमारियों और (महामारी) का तेजी से प्रसार के रोकथाम। जैसे मुद्दों को संबोधित करने की योजना बनाई गई है।
मौसम संबंधी दृष्टिकोण से, भारत विशेष रूप से हिमालय के नीचे (खुले हिंद महासागर का सामना करने वाले) के साथ-साथ अपनी भू-जलवायु परिस्थितियों और विविध परिदृश्यों के कारणों से प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आ जाते हैं;
उदाहरण के लिए,—पश्चिमी भारत के अधिक समशीतोष्ण से प्रभावित शुष्क क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान गंभीर सूखे, अकाल और/या जंगल की आग का खतरा होता है।
उत्तर के अधिक दूरस्थ, पहाड़ी क्षेत्र, विशेष रूप से हिमालयी राज्य, सर्दियों में विनाशकारी भूस्खलन, बाढ़ और शुष्क अवधि के दौरान बड़े भूस्खलन का अनुभव कर सकते हैं। यह उन भूकंपों के अन्तर्गत आते है, जो चट्टानों के गिरने, मिट्टी के धंसने और आकस्मिक बाढ़ के कारण तबाही की संभावना को बढ़ाते हैं। मानसून के दौरान, दक्षिण भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र जो आम तौर पर चक्रवात या सुनामी से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं;
भारत में काम करती है आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) भारतीय संस्था है जिसका प्राथमिक उद्देश्य प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं से उत्पन्न होने वाली हानिकारक परिस्थिति का रोकथाम करना है। आपदा प्रबंधन अधिनियम 28 नवंबर 2005 को लोकसभा द्वारा और 12 दिसंबर 2005 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था।
9 जनवरी 2006 को इसे भारत के राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई थी। इसके बाद ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए)’ कि स्थापना की गई। प्रधानमंत्री को एनडीएमए के पदेन अध्यक्ष बनाया गया। एनडीएमए के अन्तर्गत एक उपाध्यक्ष सहित 9 से अधिक सदस्य नहीं होते हैं।
एनडीएमए के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। एनडीएमए, जिसे शुरू में 30 मई 2005 को एक कार्यकारी आदेश द्वारा स्थापित किया गया था, 27 सितंबर 2005 को आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा – 3 (1) के तहत गठित किया गया था। जिसके अन्तर्गत एनडीएमए के लिए नीतियों, योजनाओं और दिशानिर्देशों को निर्धारित करने के लिए स्थापित किया गया।
आपदा प्रबंधन बिल 2024 में किया गया पास, किया गया संशोधन
1 अगस्त 2024 को, भारत सरकार (GOI) ने लोकसभा में आपदा प्रबंधन (संशोधन) बिल (विधेयक) प्रस्तुत किया. विधेयक में उल्लेख किये गये, उद्देश्य एवं कारक, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के संस्थागत तंत्र पर विशेष ध्यान देने और साथ ही उसके लागू किये जाने की प्रक्रिया पर सतत निगरानी पर ज़ोर देती है.
इसी तरह से आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और उनसे संबंधित समितियों का गठन राष्ट्रीय, राज्य, और ज़िला स्तर पर किया गया था. उसके लगभग दो दशक के बाद, इस व्यवस्था की समीक्षा किए जाने की ज़रूरत महसूस की गई थी.
राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के साथ पूर्व में आपदा की घटनाओं को मॉनिटर करने से संबंधिच प्रशासनिक अनुभवों को साझा करने के लिये ईएएम 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर चर्चा करने के लिए एक बैठक बुलाया गया था.
संशोधन के उपरांत, राष्ट्रीय कार्यकारी कमेटी एवं राज्य कार्यकारी कमेटी अब राष्ट्रीय स्तर एवं राज्य स्तरीय आपदा योजनाएं नहीं बनायेंगी. एनडीएमए एवं एसडीएमए इन कार्यों का कार्यभार संभालेंगे. एनडीएमए इनके संचालन में सहायता करने के लिए किसी विशेषज्ञ और सलाहकार को नियुक्त कर सकते है.
संशोधन विधेयक के तहत संभावित जलवायु परिवर्तन के खतरों पर भी विचार किए जा सकते हैं. यह इस बात पर बल देता है की “उभरती हुई आपदा जोख़िम” ऐसे आपदाओं के जोख़िमों की ओर इंगित करती है
जो शायद कभी घटित नहीं हुई हो परंतु चरम जलवायु घटनाओं एवं अन्य कारकों के परिप्रेक्ष्य में संभवतः भविष्य में फिर भी घटित हो सकती है. ये बिल एनडीएमए को इस आपदा जोख़िम, साथ ही ताजी आपदाएं, जो की देश झेल सकती है, उसके संपूर्ण श्रृंखला का जायज़ा लेने का अधिकार देता है.
ये संशोधन अधिनियम, आपदा प्रबंधन के बजाय आपदा जोख़िम न्यूनीकरण (डीआरआर) पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है. इस उद्देश्य के लिये, ये एक परिभाषीय बदलाव या परिवर्तन लाती है. इसमें कहा गया है कि, ‘आपदा प्रबंधन’ की अभिव्यक्ति, ‘आपदा जोख़िम न्यूनीकरण’ के साथ समाहित है,
जिसका मतलब कि, किसी व्यवस्थागत प्रयास के विश्लेषण के ज़रिये आपदा जोख़िम के न्यूनीकरण’ का अभ्यास, कम लोगों की भेद्यता, संपत्ति, बुनियादी ढांचा, आर्थिक गतिविधि, पर्यावरणीय और प्राकृतिक संसाधनों एवं सुधरीकृत तैयारी, लचीलापन और किसी भी प्रकार की विपरीत अथवा प्रतिकूल परिस्थिति अथवा घटना के प्रबंधन एवं प्रतिक्रिया करने की क्षमता रखता है.
नियमावली के तहत मिलता है चार लाख का मुआवजा
आपदा प्रबंधन नियमावली के तहत, प्राकृतिक आपदाओं में जान-माल की हानि होने पर सरकार प्रभावितों को आर्थिक मदद करती है, जिसमें मृत्यु होने पर आश्रितों को 4 लाख रुपये तक का मुआवजा शामिल है. प्राकृतिक आपदा वज्रपात से नुकसान होने पर सरकार ने प्रभावितों के लिए मुआवजा देने का प्रावधान किया है।
वज्रपात से किसी की मौत हो जाती है, तो उसके आश्रित को चार लाख रुपए मिलेंगे। प्रभावित व्यक्ति या उसके परिवार के सदस्य सरकार के पास मुआवजा का दावा कर सकते हैं। मुआवजा की राशि अंचल कार्यालय से दी जाएगी।
मकान को नुकसान होने पर सहायता
प्राकृतिक आपदा में अगर किसी का मकान क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो एसडीआरएफ के नियमों के अनुसार, प्राधिकृत अधिकारी द्वारा प्रमाण पत्र जारी करने पर पीड़ित परिवार को मकान के लिए भी आर्थिक मदद दी जाती है. इसमें एक शर्त यह है कि वह मकान पहले से ही विधिवत रूप से बना होना चाहिए.
इसे भी पढ़ें