पिछले 5 साल से किसानों का आंदोलन जारी है। किसान अपनी मांगों को लेकर धरना पर बैठे है।
बड़ा सवाल है कि किसान आखिर आंदोलन कर क्यों रहे है?
बता दे कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार सत्ता में आए। सत्ता पर आने के ठीक एक साल बाद यानी 14 सितंबर 2020 संसद के मॉनसून सत्र के अंतिम दिनों में खेती में सुधार के लिए कृषि कानून (Farms Law 2020) लाए गए जिसके के तहत तीन बिल थे और 17 सितंबर 2020 को लोकसभा ने तीनो बिल को पास भी कर दिया। ये वही कानून हैं जिनका विरोध किसान ने 2020 के नवंबर से शुरू किया।
आईए जानते है कृषि कानून के तीनों बिल के बारे मेः
पहला कानूनः कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 है। इसके मुताबिक किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते हैं। बिना किसी रुकावट के दूसरे राज्यों में भी फसल बेच और खरीद सकते हैं।
दूसरा कानूनः मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक सशक्तिकरण एवं संरक्षण अनुबंध विधेयक 2020 है। इसके जरिए देशभर में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है। फसल खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी।
तीसरा कानूनः आवश्यक वस्तु संशोधन बिल- 1955 में बने आवश्यनक वस्तु अधिनियम से अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पालदों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है।
यही कानून बनें आंदोलन की वजहः
जैसे ही बिल पास हुए केंद्र सरकार के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों ने “दिल्ली चलो” मार्च निकाल कर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। ये आंदोलन जिन किसान नेताओं के नेतृत्व में शुरू हुआ वो भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत, दर्शन पाल क्रान्तिकारी किसान यूनियन पंजाब के अध्यक्ष हैं, नवदीप कौर, बलबीर सिंह राजेवाल और जोगिंदर सिंह उगराहां शामिल रहे ।
उनके मार्च को रोकने के लिए हरियाणा और पंजाब सरकार ने अपने बॉर्डर सील कर दिए थे। इसके अलावा भारी पुलिस फोर्स भी तैनात किए गए। मार्च को देखते हुए केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से सफाई देते हुए ये कहा कि जो कानून बनाया गया है, वो किसानों के हित में है।
सरकार के तरफ से जैसे ही बयान सामने आया दिल्ली की सरहदों पर पश्चिम की ओर से पंजाब, हरियाणा और पूरब की ओर से यूपी, उत्तराखंड के किसानों ने अपनी मांगो को लेकर सीमा पर डेरा डाला रहे।
इस बीच सरकार की ओर से बातचीत की पेशकश भी हुई। लेकिन किसान नेताओं ने इन कानूनों में संशोधन का सुझाव देने या उन पर चर्चा करने की बजाय तीनों कानूनों को वापस लेने पर ही अड़े रहे। बातचीत के सभी दौर फेल रहे।
अब जानते है किसानों के मांग के बारे में
किसानों की मांग है कि MSP गारंटी को कानून बनाया जाए।
किसानों का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर फसलों की कीमत तय हो।
किसान चाहते हैं कि उनका कर्ज माफ होना चाहिए।
किसान आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवार को मुआवजा मिलना चाहिए।
किसान चाहते हैं कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 दोबारा लागू हो।
विद्युत संशोधन विधेयक- 2020 को रद्द करना चाहिए।
किसान चाहते हैं कि लखीमपुर खीरी के कांड के दोषियों को सजा मिले।
सुप्रीम कोर्ट ने बनाई समिति
सुप्रीम कोर्ट ने समिति बनाने का आदेश दिया। समिति में किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर किसान नेता जीएस मान को भी शामिल किया गया। लेकिन मान ने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि सभी सदस्य सरकार और कृषि कानूनों के समर्थक हैं। इतना ही नहीं भारत बंद का ऐलान किया गया, जिसका पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में छिटपुट असर दिखा।
किसान आंदोलनकारी यही नहीं थमे अपने मांगो को पूरा करने के लिए गणतंत्र दिवस दिवस के मौके पर पुलिस को चकमा देते हुए दिल्ली में घुस आए। लाल किले पर सिख निशान लहराया, तोड़ फोड़ और आंसू गैस की गोलीबारी हुई।
पुलिस वालों को प्रदर्शनकारियों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जिससे एक युवक की मौत हो गई। उधर सुप्रीम कोर्ट ने जो समिति बनाई थी और उस समिति के माध्यम से जो रिपोर्ट निकला उससे न मसलें का हाल हुआ ना ही आंदोलन का अंत हुआ।
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