आनंद कुमार
Narendra Modi and PK:
कल्पना कीजिए: संयुक्त राष्ट्र की चकाचौंध भरी नौकरी, वैश्विक मंच पर कदम, लेकिन एक साधारण फोन कॉल ने सब उलट-पुलट कर दिया। नरेंद्र मोदी की आवाज ने प्रशांत किशोर उर्फ पीके को गुजरात बुला लिया, और बस, एक साधारण पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट राजनीति के ‘मास्टरमाइंड’ बन गया—छह सालों में छह मुख्यमंत्रियों को ताज पहनाने वाला जादूगर! शिक्षा बीच में छोड़ने से लेकर जन सुराज पार्टी की कमान संभालने तक, पीके की यह रोलरकोस्टर जर्नी बिहार की सियासत को हिला रही है। पहले 51 सीटों पर और फिर दूसरी लिस्ट में 66 सीटों पर उम्मीदवार उतार कर उन्होंने बिहार चुनाव में धमाकेदार इंट्री ले ली है।
विरोधी चिल्लाते हैं, ‘बीजेपी की बी-टीम!’, लेकिन पीके का ऐलान है: ‘अर्श या फर्श—इस बार खुद की बिसात बिछा रहा हूं!’ क्या यह बिहार का तीसरा विकल्प बनेगा, या फिर सिर्फ एक और राजनीतिक तमाशा? आइए, इस रहस्यमयी रणनीतिकार की अनकही कहानी में गोता लगाएं…दोस्तो, बिहार के रोहतास जिले में एक छोटा सा गांव है- कोनार। 1977 में यहीं प्रशांत किशोर का जन्म हुआ। पिता श्रीकांत पांडेय सरकारी डॉक्टर थे, ट्रांसफर होता रहता था, इसलिए प्रशांत की पढ़ाई भी कई शहरों में हुई। प्रशांत की मैथ्स इतनी अच्छी थी कि 12वीं में 150 में से 148 नंबर मिले।
पिता ने इंजीनियर बनने का दबाव डाला तो प्रशांत बोले… ‘इंजीनियर हो जाएंगे तो आप IAS की तैयारी के लिए कहेंगे ही। ऐसा करते हैं हम तीन साल में ग्रेजुएशन कर लेतें हैं, फिर IAS हो जाएंगे।’ प्रशांत ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में एडमिशन लिया। लेकिन तबीयत खराब हुई तो घर लौट आए। तबीयत तो ठीक हो गई, लेकिन प्रशांत ने 3 साल तक पढ़ाई छोड़ दी। लखनऊ से ग्रेजुएशन किया। दो साल फिर ब्रेक लेकर हैदराबाद से पब्लिक हेल्थ में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। यहीं से संयुक्त राष्ट्र यानी UN में काम करने का रास्ता खुला। पहली पोस्टिंग आंध्र प्रदेश में मिली। कुछ समय बाद UN के पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए गृह राज्य बिहार आ गए।’
प्रशांत ने UN के इंडिया ऑफिस और फिर अमेरिकी हेडक्वार्टर में काम किया। वहां से फील्ड पोस्टिंग में अफ्रीकी देश चाड पहुंचे। चाड में रहने के दौरान ही प्रशांत ने एक ऐसी रिपोर्ट बनाई, जिसने तब के गुजरात सीएम नरेंद्र मोदी का ध्यान खींचा। प्रशांत की रिपोर्ट का नाम था- ‘मालन्यूट्रीशन इन हाई ग्रोथ स्टेट्स इन इंडिया।’ यह रिपोर्ट गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे देश के समृद्ध राज्यों में कुपोषण की बदतर हालत बयां कर रही थी।
रिपोर्ट देखकर मोदी ने प्रशांत किशोर को गुजरात सरकार के साथ पब्लिक पॉलिसी पर काम करने का ऑफर दे दिया। शुरुआत में प्रशांत UN में नौकरी छोड़ने से कतरा रहे थे, लेकिन फिर सीएम मोदी से एक शर्त पर राजी हुए- ‘मैं सीधे आपको रिपोर्ट करूंगा, बीच में किसी और नेता या अधिकारी को नहीं।’ मोदी ने यह शर्त मान ली और 2011 में पीके गुजरात आ गए। शर्त के मुताबिक ही वे गुजरात सरकार के किसी डिपार्टमेंट से नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री आवास से काम करते थे।
पब्लिक पॉलिसी के साथ-साथ प्रशांत किशोर मोदी के लिए भाषण लिखने लगे, डेटा एनालाइज करके देने लगे और बहुत जल्द मोदी के करीबियों में गिने जाने लगे। और साल 2012 में पीके गुजरात चुनाव में मोदी के कैंपेन डिजाइनर बन गये। ये हुआ ऐसे कि मोदी के करीबी अमित शाह सोहराबुद्दीन शाह फेक एनकाउंटर केस के चलते 2010 से 2012 तक गुजरात से बाहर थे।
इसलिए चुनाव प्रचार की बड़ी जिम्मेदारी प्रशांत किशोर पर थी। उन्होंने रिसर्च और टेक्नोलॉजी पर बेस्ड इलेक्शन कैंपेन डिजाइन किया, जिसमें चार बातें खास थीं….मोदी को बतौर विकास पुरुष प्रोजेक्ट किया गया। मोदी के आने से पहले और बाद में गुजरात के इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की तुलना जनता के सामने रखी गई। होलोग्राम की मदद से 3D में मोदी का भाषण गलियों और नुक्कड़ों में पेश किया गया ताकि हर विधानसभा तक वह पहुंचे।
प्रचार पूरी तरह से व्यक्ति आधारित रहा, जिसने ब्रांड मोदी को जन्म दिया। हर विधानसभा में डेटा बेस्ड रिसर्च हुई और फिर इलेक्शन स्ट्रैटजी बनाई गई। नतीजे आए तो 182 में से 115 सीटें बीजेपी के खाते में गईं। 62 कांग्रेस और 2 अन्य ने जीती। मोदी आसानी से तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए।
इलेक्शन वॉर रूम, डेटा रिसर्च, ब्रांडिंग जैसे मॉडर्न तरीकों को प्रशांत ने भारतीय चुनावों की नई स्ट्रैटजी बना दी। प्रशांत किशोर कहलाने लगे – पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट PKI साल 2013 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी की सेंट्रल कैंपेन कमेटी का चेयरमैन और 2014 चुनाव के लिए पीएम कैंडिडेट।
नोटः लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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