रांची। पंचम झारखंड विधानसभा का अब कोई सत्र होने की संभावना नहीं है। करीब साढ़े चार साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है।
इस दौरान विशेष सत्र मिलाकर अब तक कुल 17 सत्र हुए, लेकिन सदन में भाजपा के सबसे वरिष्ठ विधायक बाबूलाल मरांडी विधानसभा के अब तक के कार्यकाल में सदन में एक शब्द भी नहीं बोल पाए। राज्य हित या जनहित के किसी मुद्दे को नहीं उठा पाए।
झारखंड के लोकतांत्रिक इतिहास की शायद यह पहली घटना रही, जब सदन का कोई सदस्य सदन में कम से कम अपने क्षेत्र की समस्या पर सरकार से सवाल नहीं पूछ सका हो।
लोकतांत्रिक इतिहास में पक्ष-विपक्ष के बीच रार और तकरार तक होते रहे हैं, लेकिन यह परिदृश्य शायद ही किसी अन्य राज्य में दिखा हो।
बाबूलाल मरांडी के साथ ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई, यह जानने के लिए पंचम विधानसभा के गठन के शुरूआती दिनों में जाना पड़ेगा।
चूंकि, 2019 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक के टिकट पर गिरिडीह के राजधनवार से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उनके साथ उनकी पार्टी के टिकट पर बंधु तिर्की और प्रदीप यादव भी जीते थे।
अध्यक्ष होने के नाते बाबूलाल ने झाविमो प्रजातांत्रिक का भाजपा में विलय कर दिया। लेकिन, प्रदीप और बंधु इसका विरोध करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए।
इसके बाद भाजपा ने तुरंत बाबूलाल को पार्टी विधायक दल का नेता और तकनीकी रूप से नेता प्रतिपक्ष बना दिया। लेकिन, इन तीनों पर दल-बदल का आरोप लगा। स्पीकर के न्यायाधिकरण में मामला गया।
स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने न्यायाधिकरण का निर्णय आने तक बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष मानने से इंकार कर दिया। जबकि, भाजपा उन्हें ही नेता प्रतिपक्ष मानने पर अड़ी रही।
इस मुद्दे पर वह सदन में स्पीकर से भी भिड़ी, लेकिन स्पीकर उसके दबाव के आगे नहीं झुके। परिणाम यह हुआ कि बाबूलाल भी अड़ गए। शुरू में उन्होंने कई बार सदन में बोलने के लिए हाथ भी उठाया, लेकिन स्पीकर ने हर बार उन्हें नजरअंदाज कर दिया।
लगभग तीन साल से अधिक का समय इसी विवाद में बीत गया। बाद में भाजपा झुकी और उनकी जगह अमर कुमार बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बनाने को मजबूर हुई। धीरे-धीरे बाबूलाल ने भी समझ लिया कि उन्हें सदन में बोलने का मौका नहीं मिलेगा।
सदन में प्रश्न पूछने से कोई नहीं रोक सकता: स्पीकर
स्पीकर रवींद्रनाथ महतो का कहना है कि हर सदस्य के पास सदन में सवाल उठाने के बहुत सारे हथियार होते हैं। कोई भी सदस्य ध्यानाकर्षण, अल्पसूचित, तारांकित, शून्य काल और प्रश्नकाल के माध्यम से सवाल पूछ सकता है।
उनके सवालों पर सरकार से जवाब मांग सकता है। जनहित के मुद्दों के प्रति संवेदनशील विधायक ऐसा करते भी रहे हैं। प्रदीप यादव ही इसका उदाहरण हैं, वे तो सवाल पूछते रहे।
बताते चलें कि प्रदीप यादव कांग्रेस विधायक के रूप में सदन में अपना सवाल डालते रहे। चर्चा में भाग लेते रहे। स्पीकर उन्हें बोलने का मौका भी देते रहे।
यह अलग बात रहा कि स्पीकर न्यायाधिकरण का अंतिम फैसला नहीं आने की वजह से स्पीकर ने उन्हें तकनीकी रूप से सदन में कांग्रेस विधायक होने का सर्टिफिकेट भी नहीं दिया।
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