दिनांक – 21 नवम्बर 2024
दिन – गुरूवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत -1946
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत ॠतु
मास – मार्गशीर्ष
पक्ष – कृष्ण
तिथि – षष्ठी शाम 05:03 तक तत्पश्चात सप्तमी
नक्षत्र – पुष्य शाम 03:35 तक तत्पश्चात अश्लेशा
योग – शुक्ल दोपहर 12:01 तक तत्पश्चात ब्रह्म
राहुकाल – दोपहर 01:47 से शाम 03:10 तक
सूर्योदय 06:05
सूर्यास्त – 5:44
दिशाशूल – दक्षिण दिशा में
व्रत पर्व विवरण – गुरुपुष्यामृत योग (सूर्योदय से दोपहर 03:35 तक
विशेष – षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
भैरव अष्टमी
23 नवम्बर, शनिवार को भैरव अष्टमी पर्व है। यह दिन भगवान भैरव और उनके सभी रूपों के समर्पित होता है। भगवान भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है,इनकी पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व माना जाता है। भगवान भैरव को कई रूपों में पूजा जाता है।
भगवान भैरव के मुख्य 8 रूप माने जाते हैं। उन रूपों की पूजा करने से भगवान अपने सभी भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।
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