️ दिनांक – 20 नवम्बर 2024
️ दिन – बुधवार
️ विक्रम संवत – 2081
️ शक संवत -1946
️ अयन – दक्षिणायन
️ ऋतु – हेमंत ॠतु
️ मास – मार्गशीर्ष
️ पक्ष – कृष्ण
️ तिथि – पंचमी शाम 04:49 तक तत्पश्चात षष्ठी
️ नक्षत्र – पुनर्वसु दोपहर 02:50 तक तत्पश्चात पुष्य
️ योग – शुभ दोपहर 01:08 तक तत्पश्चात शुक्ल
️ राहुकाल – दोपहर 12:24 से दोपहर 01:47 तक
️ सूर्योदय 06:05
️ सूर्यास्त – 5:44
दिशाशूल – उत्तर दिशा मे
*व्रत पर्व विवरण –
विशेष – पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
पुष्य नक्षत्र योग
21 नवम्बर 2024 गुरुवार को सूर्योदय से दोपहर 03:35 तक गुरुपुष्यामृत योग है ।
१०८ मोती की माला लेकर जो गुरुमंत्र का जप करता है, श्रद्धापूर्वक तो २७ नक्षत्र के देवता उस पर खुश होते हैं और नक्षत्रों में मुख्य है पुष्य नक्षत्र, और पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं देवगुरु ब्रहस्पति |
पुष्य नक्षत्र समृद्धि देनेवाला है, सम्पति बढ़ानेवाला है | उस दिन ब्रहस्पति का पूजन करना चाहिये | ब्रहस्पति को तो हमने देखा नहीं तो सद्गुरु को ही देखकर उनका पूजन करें और मन ही मन ये मंत्र बोले –
ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम : |…… ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम : |
कैसे बदले दुर्भाग्य को सौभाग्य में
बरगद के पत्ते पर गुरुपुष्य या रविपुष्य योग में हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें |
गुरुपुष्यामृत योग
‘शिव पुराण’ में पुष्य नक्षत्र को भगवान शिव की विभूति बताया गया है | पुष्य नक्षत्र के प्रभाव से अनिष्ट-से-अनिष्टकर दोष भी समाप्त और निष्फल-से हो जाते हैं, वे हमारे लिए पुष्य नक्षत्र के पूरक बनकर अनुकूल फलदायी हो जाते हैं | ‘सर्वसिद्धिकर: पुष्य: |’ इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है | पुष्य नक्षत्र में किये गए श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है तथा कर्ता को धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है |
इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं | (शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)
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