दिनांक – 24 फरवरी 2025
दिन – सोमवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत -1946
अयन – उत्तरायण
ऋतु – वसंत ॠतु
मास – फाल्गुन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – एकादशी दोपहर 01:44 तक तत्पश्चात द्वादशी
नक्षत्र – पूर्वाषाढा शाम 06:59 तक तत्पश्चात उत्तराषाढा
योग – सिद्धि सुबह 10:05 तक तत्पश्चात व्यतीपात
राहुकाल – सुबह 08:30 से सुबह 09:57 तक
सूर्योदय 06:14
सूर्यास्त – 05:39
दिशाशूल – पूर्व दिशा मे
व्रत पर्व विवरण – विजया एकादशी,व्यतीपात योग (सुबह 10:05 से 25 फरवरी सुबह 08:15 तक
विशेष- *हर एकादशी को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है l
राम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे ।। सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने ।।
आज एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से विष्णु सहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l
एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।
एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है | एकादशी को शिम्बी (सेम) ना खाएं अन्यथा पुत्र का नाश होता है।
जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।
24 फरवरी को दीपक जलाकर इस मंत्र का जप करे समृद्धि बढेगी |
विजया एकादशी
24 फरवरी 2025 सोमवार को विजया एकादशी है।
विजया एकादशी का व्रत करनेवाले को इस लोक में विजयप्राप्ति होती है और परलोक भी अक्षय बना रहता है।
कर्मयोग दैनंदिन 2025 से
आर्थिक परेशानी या कर्जा हो तो
25 फरवरी 2025 मंगलवार को भौम प्रदोष योग है ।
किसी को आर्थिक परेशानी या कर्जा हो तो भौम प्रदोष योग हो, उस दिन शाम को सूर्य अस्त के समय घर के आसपास कोई शिवजी का मंदिर हो तो जाए और ५ बत्ती वाला दीपक जलाये और थोड़ी देर जप करें :
ये मंत्र बोले :–
ॐ भौमाय नमः
ॐ मंगलाय नमः
ॐ भुजाय नमः
ॐ रुन्ह्र्ताय नमः
ॐ भूमिपुत्राय नमः
ॐ अंगारकाय नमः
और हर मंगलवार को ये मंगल की स्तुति करें:-
धरणी गर्भ संभूतं विद्युत् कांति समप्रभम |
कुमारं शक्ति हस्तं तं मंगलम प्रणमाम्यहम ||
विजया एकादशी व्रत कथा
कर्ज-निवारक कुंजी भौम प्रदोष व्रत
त्रयोदशी को मंगलवार उसे भौम प्रदोष कहते हैं ….इस दिन नमक, मिर्च नहीं खाना चाहिये, इससे जल्दी फायदा होता है | मंगलदेव ऋणहर्ता देव हैं। इस दिन संध्या के समय यदि भगवान भोलेनाथ का पूजन करें तो भोलेनाथ की, गुरु की कृपा से हम जल्दी ही कर्ज से मुक्त हो सकते हैं। इस दैवी सहायता के साथ थोड़ा स्वयं भी पुरुषार्थ करें। पूजा करते समय यह मंत्र बोलें –
मृत्युंजयमहादेव त्राहिमां शरणागतम्। जन्ममृत्युजराव्याधिपीड़ितः कर्मबन्धनः।।
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