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देवघर। सावन का पावन महीना आते ही बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर में भक्ति और श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु कांवर लेकर यहां पहुंचते हैं, लेकिन इन सबके बीच कोलकाता के विठ्ठल दादा एक खास नाम बन चुके हैं। वे पिछले 50 वर्षों से लगातार कांवर यात्रा कर रहे हैं और इस बार भी उन्होंने इस परंपरा को कायम रखा।
Babadham:26 लोगों की टीम के साथ पहुंचे देवघरः
विठ्ठल दादा वर्ष 1976 से हर साल सावन में कांवर यात्रा पर निकलते हैं। इस बार भी वे 26 लोगों की टोली के साथ पारंपरिक वेशभूषा में “बोल बम” के जयघोष के साथ देवघर पहुंचे। टोली के सभी सदस्य पूरे उल्लास और आस्था के साथ यात्रा में सम्मिलित हुए, जिससे वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो गया।
उनकी यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन का एक ऐसा हिस्सा बन चुकी है जिसे वे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते। विठ्ठल दादा कहते हैं जब तक शरीर में जान है, तब तक बाबा धाम की यात्रा करता रहूंगा। कांवर मेरी आस्था है, मेरी पहचान है।
Babadham:विठ्ठल दादा की आस्था-समर्पण को देख अभिभूत हैं भक्तः
स्थानीय लोग और अन्य श्रद्धालु विठ्ठल दादा की इस अटूट आस्था और समर्पण को देखकर अभिभूत हैं। उनका मानना है कि ऐसे श्रद्धालु देवघर की धार्मिक परंपरा को न सिर्फ जीवित रखे हुए हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल भी कायम कर रहे हैं।
सावन के दौरान देवघर में भक्ति और श्रद्धा का अनोखा संगम देखने को मिलता है। मंदिर परिसर, सड़कों और घाटों पर हर ओर शिवभक्तों की गूंज और आस्था का वातावरण बना रहता है। विठ्ठल दादा जैसे श्रद्धालु इस माहौल को और भी खास बना देते हैं। उनकी यात्रा यह साबित करती है कि सच्ची श्रद्धा समय की सीमाओं को पार कर जाती है।
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