नई दिल्ली, एजेंसियां: भारतीय समाज में आज भी ट्रांसजेंडर को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
ट्रांसजेंडर शब्द सुनते ही लोग इसे बुरी नजरों से देखने लगते हैं। यही कारण है कि कई ट्रांसजेंडर छात्रों को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है।
आज 31 मार्च है और हर साल हम इस दिन को विश्व ट्रांसजेंडर डे के रूप में मनाते है।
ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी दुनिया भर में मनाया जाता है।
यह दिवस उन ट्रांसजेंडर को समर्पित है जो सांस्कृतिक, कानूनी और आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए अपने संघर्ष को बहादुरी से जारी रखते हैं और अपने होने का प्रमाण इस समाज को देते रहते है।
ट्रामसजेंडर के खिलाफ होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए भारत की संसद ने ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट, 2019 लागू किया था।
इसका मुख्य उद्देश्य उनके कल्याण, अधिकार और उनसे संबंधित अन्य मामलों की सुरक्षा करना था।
इस विधेयक के अनुसार, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह होता है जिसका लिंग उस व्यक्ति से मेल नहीं खाता है, जिसने उसे जन्म दिया है।
ट्रांस-पुरुष और ट्रांस-महिलाएं, इंटरसेक्स वैरिएशन वाले व्यक्ति, जेंडर क्वीर और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे कि ‘किन्नर’ और ‘हिजडा’ को इस बिल में शामिल किया गया है।
इस एक्ट में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं करेगा।
इस बिल के अनुसार, कोई व्यक्ति या प्रतिष्ठान किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगा।
यह दिन 2009 में पहली बार मनाया गया था। ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट रेचल क्रैंडल ने इसे ट्रांसजेंडर लोगों की उपलब्धियों को स्वीकार करने और मनाने का एक तरीका के रूप में बनाया था।
हर साल यह दिन मार्च, रैली और समुदाय आयोजनों के माध्यम से मनाया जाता है जिसमें ट्रांसजेंडर लोग और उनके समर्थक एक साथ आते हैं।
यह दिन साथ ही ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़े मुद्दों, जैसे भेदभाव, हिंसा और स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य संसाधनों की कमी आदि के बारे में जनता को शिक्षित करने का एक मौका भी प्रदान करता है।
इसे भी पढ़ें