Sunday, October 19, 2025

जानिए ज्ञान और श्रद्धा का पावन पर्व गुरु पूर्णिमा का महत्व [Know the importance of Guru Purnima, the holy festival of knowledge and devotion]

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हम सब मनुष्यों के जीवन निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका होती है। ऐसे में माना जाता है कि जिन गुरुओं ने हमें गढ़ने में अपना योगदान दिया है, उनके प्रति हमें कृतज्ञता का भाव बनाए रखना चाहिए और उसे ज़ाहिर करने के दिन के तौर पर ही गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। आप सभी जानते हैं कि गुरु का स्थान महाभारत काल से ही सर्वोपरि रखा गया है।

यह पर्व गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा का अपना महत्व होता है, लेकिन गुरु पूर्णिमा पर की गई पूजा, उपवास व दान-पुण्य बहुत पुण्यदायी माने गए हैं।

इस साल गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और उनके द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करने का संकल्प लेते हैं। इसके साथ ही जरूरी ये नहीं कि हम सभी ज्ञान गुरु से ही सीखते हैं,, कुछ हम अपने आसपास के लोग, समाज, दोस्त, करीबियों से प्राप्त अनुभवों से भी सीखते हैं,, जिसमें उनका उतना ही महत्व होता है जितना गुरुओं का होता है।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण एकलव्य का है। जिसने हंसते-हंसते अपने गुरु को अपना वह अंगूठा ही दान दे दिया, जिससे वह तीर चलाया करता था।

‘गुरु’ शब्द का अर्थ होता है- अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं। सामान्यतः दो तरह के गुरु होते हैं।

प्रथम तो शिक्षा गुरु और दूसरे दीक्षा गुरु। शिक्षा गुरु बालक को शिक्षित करते हैं और दीक्षा गुरु शिष्य के अंदर संचित विकारों को निकाल कर उसके जीवन को सत्यपथ की ओर अग्रसित करते हैं।

आइए, जानते हैं गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं और गुरु पूर्णिमा की क्या महत्व है..?

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं…?

हमारा भारत देश अनेक परंपराओं का साक्षी रहा है। इन्हीं परंपराओं में से एक है गुरु-शिष्य परंपरा।

प्राचीनकाल से ही भारत देश महान गुरु और उनके शिष्यों की जन्मस्थली रहा है। गुरु भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं और उस संस्कृति को याद रखने के लिए ही आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का नाम दिया गया है।

लगभग 3000 ईसा पूर्व पहले आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेद व्यास जी के सम्मान में हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा के सापेक्ष में यह भी माना जाता है कि इसी दिन वेद व्यास जी ने वेदों का संकलन किया था और कई पुराणों,, उपपुराणों व महाभारत की रचना भी इसी दिन पूर्ण हुई थी। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

गुरु पूर्णिमा का क्या महत्व है….?

शास्त्रों में गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है। गुरुओं के बारे में स्वयं भगवान शिवजी कहते हैं- गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः। गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते।। अर्थात् गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम धर्म है। गुरु से अधिक और कुछ नहीं है।

आपको ज्ञात होगा भगवान शिव भी किसी न किसी के ध्यान में लगे रहते हैं, यानी उनसे भी बड़ा कोई है जो उन्हें मार्गदर्शन देता है और जिनकी शरण में वे अपना मस्तक झुकाते हैं। यानि कि गुरु की आवश्यकता सिर्फ मनुष्यों को ही नहीं बल्कि स्वयं भगवान को भी होती है। यह बात गुरु सांदीपनि और कृष्ण जी पर अच्छे से लागू होती है।

गुरु सांदीपनि भगवान कृष्ण और बलराम दोनों के गुरु थे। उनके गुरुकुल में कई महान राजाओं के पुत्र पढ़ते थे, लेकिन गुरु सांदीपनि ने कृष्ण जी को पूरी 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। भगवान विष्णु के अवतार होने के बाद भी कृष्ण जी ने गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की।

गुरु-शिष्य के इस अनोखे रिश्ते से यह साबित होता है कि कोई भी चाहे कितना ही ज्ञानी हो, फिर भी उसे एक गुरु की आवश्यकता तो होती ही है।

यहां पर एक बात यह भी सामने आती है कि जब कृष्ण जी की शिक्षा पूरी हो गई तो गुरु सांदीपनि ने उनसे गुरु दीक्षा के रूप में यमलोक से अपने पुत्र को वापस लाने को कहा और कृष्ण जी ने भी उनके पुत्र को वापस धरती पर लाकर अपनी गुरु दीक्षा दी। यानि गुरुत्व प्राणियों का आधार है।

गुरु पूर्णिमा की कथा

आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेद व्यास के बचपन की बात है। वेद व्यास ने अपने माता-पिता से भगवान के दर्शन की इच्छा ज़ाहिर की, लेकिन उनकी माता सत्यवती ने उनकी इच्छा पूरी करने से मना कर दिया।

वेद व्यास जी हठ करने लगे, तो माता ने उन्हें वन जाने की आज्ञा दे दी। जाते समय माता ने वेद व्यास जी से कहा कि “जब घर की याद आए, तो लौट आना” इसके बाद वेद व्यास जी तपस्या करने के लिए वन चले गए। वन में उन्होंने बहुत कठोर तपस्या की।

इस तपस्या के प्रभाव से वेद व्यास जी को संस्कृत भाषा का बहुत ज्ञान हो गया। फिर उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया। इतना ही नहीं, उन्होंने महाभारत, अठारह पुराण और ब्रह्मसूत्र की रचना भी की।

महर्षि वेद व्यास जी को चारों वेदों का ज्ञान था, इसीलिए गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परम्परा चली आ रही है। वेद व्यास जी ने भागवत पुराण का ज्ञान भी दिया था।

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