Karam festival :
रांची। पूरे झारखंड में करम पर्व पूरे धूम धाम से मनाया जा रहा है। यह त्योहार न केवल प्रकृति की पूजा का प्रतीक है, बल्कि भाई-बहन के प्रेम और सामाजिक एकता का भी संदेश देता है। आदिवासी समाज इसे सदियों से अपनी संस्कृति की धड़कन मानकर हर साल बड़ी धूमधाम से मनाता आ रहा है।
इस पर्व को भाई-बहन के अटूट प्रेम और प्रकृति पूजन का प्रतीक माना जाता है। किसान और आदिवासी समाज के लिए करमा पूजा का पर्व विशेष महत्व रखता है। आदिवासी मूल के लोग प्रकृति को ही अपना देवता मानते हैं, इसलिए करमा पूजा पर करम डाली को ईश्वर यानी प्रकृति का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है। आज बहनों ने भाइयों के लिए उपवास रखा है।
झारखंड का प्रमुख प्रकृति पर्व करमा आदिवासी संस्कृति और आस्था से जुड़ा हुआ है। बुधवार 3 सितंबर को बड़े ही धूमधाम से यह पर्व मनाया जा रहा है।
यह पर्व परिवार की भलाई, समृद्धि और संतान सुख की मंगलकामनाओं से भी जुड़ा हुआ है। बुधवार को रांची विश्वविद्यावय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में यह पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर चमरा लिंडा बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। पूजा विधि में भी वह शामिल हुए, लेकिन गुरुजी शिबू सोरेन के शोक में होने के कारण वह मांदर की थाप पर नहीं थिरके। मौके पर रांची यूनिवर्सिटी के वीसी डा डीके सिंह भी उपस्थित रहे।
इसके अलावा शहर के करमटोली, हरिहर सिंह रोड, आदिवासी छात्रावास, वीमेंस कॉलेज में भी करम पर्व समारोह का आयोजन किया जा रहा है।
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