रांची: झारखंड अपनी जीवंत संस्कृतियों और परंपराओं के लिए जाना जाता है। इसकी विविधता का अनुभव करने का सबसे अच्छा तरीका यहां के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेना है।
कहते हैं कि झारखंड के फेमस और टेस्टी व्यंजन मुंह से गुजर कर दिल चुरा लेते हैं। मसालों से लेकर तकनीक और अंततः स्वाद तक, सबकुछ विशेष है। झारखंड, मुंह में पानी ला देने वाले व्यंजनों की भूमि है।
यहां के कुछ व्यंजनों में आदिवासी परंपरा की छाप दिखती है। खासकर अपने विभिन्न प्रकार के अचार और चटनी के साथ; दुर्लभ व्यंजनों को चखने में रुचि रखने वाले महारथियों को आकर्षित करता है।
झारखंड के धुस्का, बर्रा, कचरी, महुआ रोटी, छिलका रोटी, पत्ता रोटी, मड़ुआ की रोटी, ढेकनी रोटी, ठेकुआ, सोठ, कचवनिया, मालपुआ, गुल गुल्ला, दुधिया-पिठ्ठा, खुखरी, रूगड़ा, बांस की कोपल सब्जी, मुंगा का सब्जी, चना की घुघनी आदि ऐसी खाने की चीजें हैं, जिनका स्वाद बेमिसाल है।
पर ये झारखंड और यहां के लोगों का दुर्भाग्य है कि यहां के व्यंजनों को उनके स्वाद के अनुसार पहचान नहीं मिल सकी।
जिस प्रकार दक्षिण भारतीय व्यंजन डोसा और इडली ने वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई वो झारखंड के धुस्का और बर्रे की नहीं बन सकी। जबकि ये स्वाद और पौष्टिकता में किसी से कम नहीं। दरअसल अब इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया।
सरकार चाहे तो राज्य से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन व्यंजनों के प्रमोशन के लिए काफी कुछ कर सकती है। इसके जरिए लाखों युवा स्व रोजगार से भी जुड़ सकते हैं।
इसके लिए सरकार की ओर से इच्छुक युवा-युवती को ऋण उपलब्ध कराकर इन व्यंजनों के निर्माण और व्यवसाय के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
सरकार हर घर में बनने वाले धुस्का को राजकीय व्यंजन घोषित कर आगे बढ़ा सकती है। सरकार चाहे तो युवाओं को इसके लिए प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराकर मदद कर सकती है।
या सब्सीडाइज्ड लोन दे सकती है या फिर रियायती लोन दे सकती है। राज्य स्तर पर व्यवसाय के लिए यह राशि पचास हजार रुपये तक, राष्ट्र स्तर के लिए पांच लाख रुपये तक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लिए पचास लाख रुपये तक का लोन देकर व्यवसाय शुरू करा सकती है।
इससे जहां एक ओर झारखंडी व्यंजनों का प्रचार प्रसार होगा, तो वहीं रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इसके बाद इन व्यंजनों के मार्केटिंग के लिए सरकार के स्तर पर प्रयास होना जरूरी है।
इसके लिए समय समय पर अलग अलग जगहों में, झारखंडी व्यंजनों की प्रदर्शनी लगाकर इन्हें प्रमोट करने की जरूरत होगी।
हालांकि अब भी दिल्ली में लगने वाली कुछ प्रदर्शनी और मेलों में झारखंड के स्टॉल भी लगते हैं, पर दूसरे राज्यों के स्टॉलों की चमक – दमक के आगे हमारे स्टॉल फिके पड़ जाते हैं। इन प्रदर्शनियों में झारखंडी व्यंजनों को वाहवाही तो मिलती है, पर व्यवसायिक दृष्टिकोण से बात आगे नहीं बढ़ पाती।
सुनियोजित तरीके से यदि हमारी व्यंजनों को सरकार आगे बढ़ाने का प्रयास करे तो एक दिन धुस्का और बर्रा भी, डोसा इडली तथा चिली चाउमिन की तरह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना सकते है। इसके लिए जरुरी है कि सरकार बैंकिंग पॉलिसी को सरल बनाते हुए युवाओं को इसकी ओर आकर्षित करे।
इससे 5 लाख से ज्यादा युवा स्वरोजगार से जुड़ सकते हैं। इससे झारखंड आर्थिक रूप से समृद्ध होगा और राज्य को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी।
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