रांची। ढोल नगाड़ो की थाप के बीच सरहुल पर्व का उल्लास भी चरम पर है। सारी सड़क और गलियां लाल-सफेद झंडों से अटी पड़ी हैं। झारखंड के गांव, टोलों और मुहल्लों से सरहुल के गीतों के गूंज तो सुनाई पड़ ही रही है, साथ ही इस मौके पर पकनेवाले ढुसका-बर्रों और अन्य व्यजनों की भीनी-भीनी खुश्बू भी मन को आह्लादित कर रही है।
दरअसल, सरहुल, आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है। यह त्योहार हिंदू महीने चैत्र में अमावस्या के तीन दिन बाद मनाया जाता है। सरहुल पर्व पर कई खास व्यंजन बनाए जाते हैं, मसलन हंडिया, डिआंग, डुबकी, छिलका रोटी, खड्डी, और मछली सुखा। सरहुल के दौरान पत्तेदार सब्ज़ियां, कंद, दालें, चावल, बीज, फल, फूल, पत्ते, और मशरूम के व्यंजन भी बनाए जाते हैं।
सरहुल पर्व पर खाने-पीने की खास बातें:
सरहुल के दौरान चावल, पानी, और पेड़ के पत्तों से हंडिया और डिआंग नाम के प्रसाद बनाए जाते हैं। सरहुल के दौरान चावल से बनी पारंपरिक मंदिरा और हड़िया भी प्रसाद के रूप में वितरित की जाती हैं। सरहुल पर्व में डुबकी, छिलका रोटी, और चावल परोसे जाते हैं। इसके अलावा खड्डी का सेवन भी किया जाता है, लेकिन यह व्यंजन रात में खाया जाता है। सरहुल पर्व में मछली सुखा नामक पकी या सूखी मछली का व्यंजन भी बनाया जाता है। इस मौके पर लगभग हर घर में धुस्का जरूर बनाया जाता है।
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