रांची: झारखंड में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। संभव है अक्टूबर माह के अंत तक इसकी घोषणा भी हो जाये। झारखंड की चंपाई सोरेन सरकार को भी इसका पूरा आभास है।
शायद यही कारण है कि झारखंड के खजाने के दरवाजे सरकार ने खोल दिये हैं। आये दिन सरकार जनहित में बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रही है। बड़े निर्णय लिये जा रहे हैं।
दरअसल, चुनावों में अब दो मुद्दे प्रमुखता से दिखते हैं मुफ्त अनुदान और नौकरी। झारखंड सरकार ने इन्ही दोनों मुद्दों पर अपना फोकस रखा है।
राज्य सरकार, नौकरियों और रोजगार की घोषणाओं के साथ जनता के लिए मुफ्त की रेवड़ियों का पिटारा खोल चुकी है।
झारखंड में तीन दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस की महागठबंधन सरकार अपने को जनता का हितैषी साबित कर लुभाने का प्रयास कर रही है।
सरकार ने खोला ‘रेवड़ियों’ का पिटारा
झारखंड में किसानों के कर्ज माफ हो रहे हैं। पहले चरण में 50 हजार किसानों के 50 रुपये तक के कर्ज माफ हुए थे। अब दो लाख तक के कर्ज माफ होंगे।
सरकार ने महिलाओं को जवानी में ही पेंशन देने का फैसला किया है। अब राज्य में 25 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को सरकार पेंशन देगी।
बेरोजगार युवकों को 40 प्रतिशत सब्सिडी पर 25 लाख रुपये का कर्ज सरकार मुहैया कराएगी, ताकि वे अपना रोजगार शुरू कर सकें।
इतना ही नहीं, सरकार लोगों को 200 यूनिट तक फ्री बिजली देगी। नौकरियों पर भी सरकार का फोकस है। सरकारी विभागों में रिक्त पद सितंबर तक भरे जाएंगे। यानी युवाओं की नौकरी की तलाश खत्म होगी। और भी कुछ घोषणाएं सरकार आने वाले दिनों में कर सकती है।
विधानसभा चुनाव को देखते हुए वोटरों को लुभाने में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। आने वाले तीन-चार महीने ‘रेवड़ियों’ के रहने वाले हैं।
वापसी के लिए बेकरार है सरकार
पिछली बार सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी जेएमएम ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति बनाने का वादा किया था। जनता ने साथ दिया और जेएमएम के नेतृत्व वाले गठबंधन को सरकार बनाने का बहुमत दे दिया।
वादा तो नौकरी देने का भी जेएमएम ने किया था, पर नौकरी की बातें वादे तक ही सीमित रह गई। सरकार ने स्थानीय नीति तो बनाई, लेकिन वह संवैधानिक पचड़े में फंस गई। बहरहाल, जेएमएम के वादे पर जनता ने भरोसा किया।
झारखंड की महागठबंधन सरकार इस बार सतर्क है। वह किसी भी हाल में वापसी चाहती है। उसे समझ आ गया है कि जनता को बिना कुछ दिए, वापसी करना मुश्किल है।
इसलिए रेवड़ियों का पिटारा खोल दिया है। मुफ्त और अनुदान के तरीके तलाशे जा रहे हैं।
इसे भी पढ़ें