रांची। झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी हड़बड़ाई हुई दिख रही है। हालांकि इस चुनाव को लेकर एनडीए और इंडी गठबंधन दोनों ही तैयारियों में जुटे हैं। पर जो हड़बड़ी बीजेपी में दिख रही है वह इंडी में वैसा कुछ नहीं है।
सीएम के चेहरे से लेकर सीटों के बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन की हड़बड़ी एनडीए में साफ दिख रही है।
वहीं इंडी गठबंधन का समीकरण साफ है। विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जेएमएम के 30 विधायकों के साथ हेमंत सोरेन सीएम हैं। इसलिए इंडिया ब्लॉक को सीएम के चेहरे का चयन नहीं करना है। दूसरी ओर एनडीए विपक्ष में है।
विपक्ष ने शुरुआती दौर में पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात कही थी, लेकिन पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की स्टेट पालिटिक्स में एंट्री हो जाने से एनडीए के सीएम फेस पर माथापच्ची करनी पड़ सकती है।
भाजपा के साथ अभी आजसू पार्टी एनडीए का घटक है। हालांकि जेडीयू ने भी झारखंड में विधानसभा चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर ली है।
वैसे अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जेडीयू एनडीए में रह कर झारखंड विधानसभा का चुनाव लड़ेगा या अलग होकर। बिहार के अलावा केंद्र में जेडीयू एनडीए का हिस्सा है।
सीटों के बंटवारे पर ‘इंडिया’ में किचकिच नहीं
रही बात सीटों और क्षेत्रों के बंटवारे की तो इंडिया ब्लॉक में ज्यादा किचकिच की गुंजाइश नहीं दिखती। जेएमएम समेत इंडिया ब्लॉक में शामिल कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआई (एमएल) ने पिछली बार जिन और जितनी सीटों पर चुनाव लड़ा था, उतनी तो उन्हें मिल ही जाएंगी।
सीपीआई (एमएल) झारखंड में पहली बार इंडिया ब्लॉक का हिस्सा बनी है। अभी उसका एक विधायक है। अनुमान है कि उसे एक और सीट दी जा सकती है। आरजेडी ने पिछली बार सात सीटों पर चुनाव लड़ा था और एक पर जीत हुई।
कांग्रेस ने 31 सीटों पर लड़ कर 16 सीटें जीती थीं, जबकि जेएमएम ने 41 पर लड़ कर 30 सीटें अपनी झोली में कर ली थीं। जेएमएम जीत का पिछला स्ट्राइक रेट देखते हुए कांग्रेस से कुछ सीटें अपने लिए चाहेगा।
शायद इसी कड़ी में हेमंत सोरेन ने अपने दिल्ली दौरे में सोनिया गांधी से मुलाकात भी की है। वैसे वे इसे शिष्टाचार मुलाकात बता रहे हैं, पर दो राजनीतिज्ञ कहीं जुटें और राजनीति की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।
भाजपा ने अपने दो दिग्गजों को मोर्चे पर लगाया
भाजपा ने झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए दो प्रभारियों की नियुक्ति की है। इनमें एक हैं मध्य प्रदेश के 18 साल सीएम रह चुके शिवराज सिंह चौहान। फिलहाल केंद्र में कृषि मंत्री हैं। पार्टी के वे उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
माना जा रहा है कि उन्हें सत्ता और संगठन की बारीकियां बखूबी आती हैं। कांग्रेस से भाजपा में आकर दूसरी बार असम के सीएम बने हिमंत बिस्वा सरमा को भी पार्टी ने झारखंड में सह चुनाव प्रभारी बनाया है। उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके लक्ष्मी कांत वाजपेयी पहले से ही झारखंड के प्रभारी हैं।
भाजपा के पास समझदारों की फौज तो है, लेकिन झारखंड में उनकी उस तरह की कोई पहचान नहीं है, जैसी हेमंत सोरेन, राहुल गांधी या लालू प्रसाद यादव की है। प्रादेशिक नेतृत्व का कोई कमाल भी लोकसभा चुनाव में नहीं दिखा।
भाजपा की पिछली बार जीतीं तीन सीटें उसके हाथ से निकल गईं। इसलिए विधानसभा चुनाव में प्रदेश नेतृत्व कोई कमाल कर पाएगा, इसकी उम्मीद कम है।
एनडीए में सीट बंटवारे पर हो सकता है लफड़ा
एनडीए को अभी सीटों के बंटवारे की गुत्थी सुलझानी है। गुत्थी जेडीयू की एंट्री को लेकर उलझ सकती है। इसलिए कि जेडीयू ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
रघुवर दास को हराने वाले सरयू राय के जेडीयू के करीब आने की खबरें ही अभी तक सामने आई हैं। सरयू राय ने भारत जनतंत्र मोर्चा (बीजेएम) नाम से एक राजनीतिक फ्रंट पहले से ही तैयार किया है।
जैसी सूचनाएं आ रही हैं, उसके हिसाब से सरयू राय अपने मोर्चे का विलय जेडीयू में करने वाले हैं। सरयू राय ने ही इसका संकेत भी दिया है। उनके हिसाब से इसकी औपचारिकता भर शेष रह गई है। पिछले चुनाव में आजसू पार्टी का भाजपा से कोई तालमेल नहीं था।
इसलिए दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ीं। भाजपा को 25 सीटें आईं तो आजसू को दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा। इस बार आजसू साथ है तो सीटों की संख्या और क्षेत्र का बंटवारा भी होना है। जेडीयू भी अगर एनडीए में रह कर ही चुनाव लड़ता है तो उसे भी सीटें देनी होंगी।
इससे एक बात के आसार बढ़ गए हैं कि अपने सहयोगी दलों को संतुष्ट करना भाजपा के लिए चुनौती होगी। क्योंकि इस बार भाजपा के दो सहयोगी आजसू और जेडीयू हो सकते हैं।
BJP बंटवारे की गुत्थी जल्द सुलझाना चाहती है
भाजपा के चुनाव प्रभारी और ‘मामा’ के नाम से मशहूर शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा चाहते हैं कि चुनाव की घोषणा से पहले ही सीटों का बंटवारा हो जाए, ताकि भाजपा अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर सके।
पहले से उम्मीदवारों के नाम घोषित होने से चुनाव प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा, वहीं उम्मीदवार के प्रति लोगों को अपना मन बनाना भी आसान होगा। भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा की आरक्षित वे 28 सीटें हैं, जिनमें पिछली बार भाजपा सिर्फ दो ही जीत पाई थी।
इस बार लोकसभा चुनाव में तो भाजपा को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पांच लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है।
शिवराज सिंह की योजना है कि आदिवासी समाज से आने वाले भाजपा के सभी बड़े नेताओं पर दांव लगाया जाए, ताकि आदिवासी समाज की सहानुभूति फिर से पाई जा सके। अर्जुन मुंडा का नाम इसी कड़ी में उभरा है। वे लोकसभा का चुनाव हार गए थे।
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