Jharkhand neglected:
रांची। केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम की कंपनियां अपना सीएसआर फंड खर्च करने में झारखंड की उपेक्षा कर रही हैं। भारत सरकार की 63 कंपनियों ने कुल मिलाकर सालभर में 2721 करोड़ 69 लाख रुपए खर्च किए। इनमें झारखंड के पड़ोसी राज्य ओडिशा में 447 करोड़ 61 लाख रुपए खर्च किए गए। छत्तीसगढ़ में सीएसआर फंड के 232 करोड़ 46 लाख रुपए खर्च हुए। वहीं झारखंड में इन कंपनियों ने सालभर में केवल 54 करोड़ 38 लाख रुपए ही खर्च किए।
सीएजी ने सदन में पेश की रिपोर्टः
सीएजी की ओर से 21 जुलाई संसद में पेश की गई रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। सीएजी ने यह रिपोर्ट 2021-22 में कंपनियों की ओर से सीएसआर फंड के तहत किए खर्च के आधार पर तैयार की है। कंपनियों को तीन साल के औसत शुद्ध लाभ की 2% राशि सीएसआर फंड पर खर्च करनी होती है।
ये प्रमुख कंपनियां हैं झारखंड में
कंपनी सालाना सीएसआर फंड
गेल 20,497 करोड़
गार्डन रीच शिप बिल्डर्स 410 करोड़
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन 29,829 करोड़
एनटीपीसी 35,672 करोड़
ओएनजीसी 45,799 करोड़
ऑयल इंडिया 16,374 करोड़
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया 9,424 करोड़
राज्य में काम कर रही कंपनियां भी कर रही हैं हकमारीः
झारखंड की तुलना छत्तीसगढ़ और ओडिशा से करें तो सीएसआर फंड में भेदभाव हो रहा है। दोनों राज्य उद्योग-धंधों, संसाधन, भौगोलिक स्थिति और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की मौजूदगी के मामले में झारखंड की तरह ही है। रिपोर्ट में भारत सरकार की 63 कंपनियों के सीएसआर फंड में झारखंड की हकमारी तक ही सीमित नहीं है। जिन कंपनियों की परियोजनाओं का अधिकतर हिस्सा झारखंड में संचालित है, उन्होंने भी झारखंड के साथ सौतेला व्यवहार किया है।
सीसीएल ने उसी अवधि में सीएसआर के तहत कुल 2481 करोड़ 68 लाख रुपए खर्च किए हैं, जबकि झारखंड को सभी केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम मिलाकर सीएसआर फंड के तहत केवल 54 करोड़ 38 लाख रुपए मिले हैं। इसी तरह कोल इंडिया लिमिटेड ने 7,764 करोड़ 38 लाख रुपए खर्च किए। सीसीएल के अलावा भारत कोकिंग कोल लिमिटेड यानी बीसीसीएल का भी अधिकतर काम झारखंड में ही है।
क्या है सीएसआर का नियमः
कंपनी कानून की धारा 135(5) के तहत किसी कंपनी के लिए पिछले 3 वित्तीय वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का कम से कम 2% वार्षिक सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करना अनिवार्य है। कंपनियां अपने सीएसआर फंड को गैर स्थानीय क्षेत्रों में मोड़ सकती हैं।
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