झरियाः झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 20 मई को होना है। वैसे तो इस फेज में कई सीटें हैं, जिन पर चर्चा हो रही है, पर आज हम बात कर रहे हैं झरिया सीट की। झरिया एक ऐसी सीट है, जहां देवरानी और जेठानी की जंग चल रही है।
देवरानी-जेठानी का आमने सामने होना कोई नहीं और बड़ी बात नहीं है, पर झरिया में ये जंग बहुत अलग है। दरअसल ये लड़ाई है सिंह मेंशन बनाम रघुकुल मेंशन की।
ये जंग अब तक न जाने कितनी जानें लील चुका है। आइए इस विधानसभा चुनाव में इस हाई प्रोफाइल सीट और इस मुकाबले को जरा विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।
कभी एकछात्र राज था सिंह मेंशन काः
2004 से लेकर 2014 तक धनबाद की राजनीति में ‘सिंह मेंशन’ का एकछत्र राज था। दूसरी तरफ ‘रघुकुल’ शांत रहा। 2009 में राजनारायण सिंह के बेटे नीरज सिंह ने नगर निगम चुनाव के रास्ते सियासत में एंट्री की। नीरज धनबाद के डिप्टी मेयर बने, तो ‘रघुकुल’ की खोई हुई ताकत वापस आ गई।
उधर, नीरज सिंह को आगे बढ़ता देख कुंती सिंह ने 2014 में अपनी जगह बेटे संजीव सिंह को झरिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़वा दिया। इस चुनाव में नीरज सिंह को करारी हार मिली।चुनाव हारने के 3 साल बाद 21 मार्च, 2017 को धनबाद के स्टील गेट के पास नीरज की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हत्यारों ने नीरज की गाड़ी पर AK-47 से हमला किया था। उनकी कार पर 60 गोलियां लगीं और 25 शरीर को छेदते हुए निकल गईं।नीरज के मर्डर केस में झरिया विधायक संजीव सिंह का नाम आया।
आरोप लगा कि संजीव सिंह ने ही हत्या की साजिश रची थी। 12 अप्रैल, 2017 से संजीव सिंह जेल में बंद हैं। उनकी पत्नी रागिनी सिंह झरिया सीट से BJP प्रत्याशी हैं। वे नीरज सिंह की पत्नी और कांग्रेस कैंडिडेट पूर्णिमा सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं।
सिंह परिवार की राजनीतिक विरासत महिलाओं के हाथ में
नीरज सिंह की हत्या और संजीव सिंह के जेल जाने के बाद झरिया सीट की राजनीतिक विरासत दो महिलाओं के हाथ में है। ‘सिंह मेंशन’ BJP और ‘रघुकुल’ कांग्रेस की तरफ है। 2019 विधानसभा चुनाव में भी दोनों देवरानी-जेठानी आमने-सामने थीं। तब देवरानी पूर्णिमा ने जेठानी रागिनी को हराया था। इस बार दोनों के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है।
रागिनी सिंह, BJP कैंडिडेट
रागिनी सिंह कहती हैं, ‘झरिया विधानसभा में विकास के नाम पर कुछ नहीं है। अपराध के नाम पर अनगिनत उदाहरण हैं। इस सरकार में किसी को नहीं छोड़ा गया है। घरों में घुसकर जानलेवा हमले किए गए हैं।
यादव समाज को खासकर निशाना बनाया गया। इसलिए ये समाज समझ गया है कि कांग्रेस और JMM की सरकार रहेगी, तो कोई सुरक्षित नहीं रहेगा।’
पूर्णिमा सिंह, कांग्रेस कैंडिडेट
पूर्णिमा सिंह कहती हैं, ‘मेरे पति स्वर्गीय नीरज बाबू जनता के लिए नए नहीं थे। मैं राजनीति में लोगों की सेवा करने और नीरज बाबू को न्याय दिलाने आई थी। आज तक वही कर रही हूं। मेरी लड़ाई उन लोगों के खिलाफ है, जो झरिया को सिर्फ ताकत दिखाने और धन बल बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।’
विशेषज्ञों का मत- देवरानी और जेठानी की लड़ाई में BJP फायदे में
धनबाद शुरू से ही BJP का बेस रहा है। इस बार के चुनावी समीकरण भी उसके पक्ष में जाते दिख रहे हैं। 2017 में मेयर नीरज सिंह की हत्या के बाद उनकी पत्नी पूर्णिमा सिंह ने राजनीति में कदम रखा। 2019 विधानसभा चुनाव में उन्होंने संजीव सिंह की पत्नी और अपनी जेठानी रागिनी को 12,054 वोटों से हराया।
दोनों परिवार को नजदीक से जाननेवाले एक पत्रकार कहते हैं कि ‘नीरज सिंह की हत्या के बाद संजीव सिंह को जेल जाना पड़ा, तो दोनों परिवारों के बीच तनाव और बढ़ गया। सिंह मेंशन और रघुकुल के बीच मनमुटाव जारी है। पिछले चुनाव में नीरज सिंह की हत्या का फायदा उनकी पत्नी पूर्णिमा सिंह को मिला था। उन्होंने संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को हराकर चुनाव जीता और कांग्रेस को ये सीट दिला दी।’
‘इस बार झरिया का समीकरण थोड़ा बदला दिख रहा है। लोग मौजूदा विधायक पूर्णिमा सिंह से निराश हैं। चुनाव जीतने के बाद वे अपने क्षेत्र में बहुत कम नजर आईं। दूसरी तरफ रागिनी सिंह हारने के बावजूद झरिया के लोगों से मिलती रहीं। विधानसभा चुनाव के 2-3 महीने पहले से उन्हें लेकर लोगों में जबरदस्त क्रेज है। इससे यहां BJP स्ट्रॉन्ग लग रही है।’
झरिया के लोग कहते हैं कि ‘झरिया का क्राइम तो कभी खत्म नहीं होगा। यहां कोयले के वर्चस्व की लड़ाई है। जब तक कोयला व्यापारी रहेंगे, ये ऐसे ही चलता रहेगा। मर्डर, खून खराबा यहां आम बात है। यहां पार्टी की नहीं, बल्कि देवरानी-जेठानी की लड़ाई है।’
‘झरिया का माहौल अभी 50-50 है। यहां सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है। किसी को काम नहीं मिला। लोगों को किसी सरकार से उम्मीद नहीं रह गई है। इस सरकार को देखा, इससे पहले BJP सरकार को भी देखा, मगर कोई फायदा नहीं हुआ।’
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