रांची। महाराष्ट्र में महायुति की महाविजय पर कहीं कोई शक नहीं, लेकिन झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी भी कई मायनों में ऐतिहासिक है। झारखंड के राज्य बनने के बाद पहली बार कोई सरकार लगातार दूसरी बार चुनी गई है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की जीत और भाजपा की हार के कारणों में भले आदिवासी अस्मिता, हेमंत के जेल जाने के बाद की सहानुभूति; महिला, किसान, कर्मचारियों को सोरेन सरकार की आर्थिक मदद; और बांग्लादेशी घुसपैठ, लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे सवालों पर बीजेपी की अधिक निर्भरता और आक्रामकता बताई जा रही हो पर नतीजों का एक सिरा कुछ और भी कहानी कह रहा है।
ये सिरा है चुनाव की उस स्थिति का जब पहले और दूसरे की लड़ाई में कोई तीसरा फैक्टर इस अंदाज में उभरे कि वह पहले-दूसरे का खेल ही पूरी तरह बना-बिगाड़ दे।
झारखंड में इस विधानसभा चुनाव में ये तीसरा फैक्टर बना नौजवान कुर्मी नेता जयराम महतो का राजनीतिक उदय और उनकी नई नवेली पार्टी – झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा का प्रदर्शन।
ये ठीक बात है कि महतो और उनकी पार्टी भले एक ही सीट जीती मगर कम से कम राज्य की 33 सीटों पर तीसरे स्थान, 2 पर दूसरे पायदान पर रहकर एक नई राजनीतिक लकीर खींच दी है, जिसकी गूंज आगे सुनाई देगी।
जयराम महतो की पार्टी के प्रदर्शन ने झारखंड में बीजेपी और आजसू की लुटिया डूबो दी। हालांकि इसने थोड़ा बहुत नुकसान तो इंडी गठबंधन को भी पहुंचाया है। आइए अब जानते हैं जयराम महतो के राजनीतिक उदय के बारे में।
झारखंड सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया। इसमें लातेहार में मगही, पलामू और गढ़वा में मगही व भोजपुरी, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा व देवघर में अंगिका तथा बोकारो और धनबाद जिलों में भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में रखा गया था। इसके अलावा ओडिया, बांग्ला और उर्दू को भी क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में जगह दी गई थी।
फिर क्या था, रांची से धनबाद तक का इलाका प्रदर्शन का अखाड़ा बन गया। कुछ विरोध में और कुछ समर्थन में। राज्य में सियासत तेज हो गई। सबसे ज्यादा और आक्रामक विरोध बोकारो, गिरिडीह और धनबाद में हुआ। भारी विरोध पर सरकार ने नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया। इसी आंदोलन से एक लड़का निकाला, जिसका नाम जयराम महतो है।
हमेशा जींस और टी-शर्ट में दिखने वाले जयराम ने महज चंद महीनों में भाजपा और आजसू का बंटाधार कर दिया। टाइगर के नाम से समर्थकों के बीच लोकप्रिय जयराम ने विधानसभा की 81 सीटों में से 71 सीटों पर प्रत्याशी उतारकर दोनों गठबंधनों को नुकसान पहुंचाया।
सबसे बड़ी चोट NDA को दी। भाजपा और आजसू के कई किलों को ध्वस्त करने में इंडिया गठबंधन की मदद की। हालांकि, झामुमो, आजसू, कांग्रेस, राजद और माले के प्रत्याशियों को भी कुछ सीटों पर नुकसान पहुंचाया।
एक साल में पार्टी बनाकर हेमंत की मंत्री बेबी देवी को हराया।
इसी साल झारखंड लोकत्रांतिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM) नाम से अपनी पार्टी बनाई और डुमरी में झामुमो प्रत्याशी व हेमंत सरकार की मंत्री बेबी देवी को 10,945 वोट से हरा दिया। एक साल के अंदर जेएलकेएम ने ग्रामीण क्षेत्रों में खासकर कुर्मी-महतो समाज में अपनी जबरदस्त पकड़ बनाई है।
जयराम अपने को इंस्टाग्राम प्रोफाइल पर मॉर्डन एरा का भगत सिंह बताते हैं। चुनाव जीतने के बाद 29 वर्षीय जयराम महतो ने कहा, ‘सपने देखना चाहिए और युवाओं को बड़े सपने देखने चाहिए। विधायक बनने से मेरे साथ-साथ युवाओं के भी रास्ते खुल गए हैं।’
देखिए कैसे नुकसान पहुंचाया अन्य दलों को:
विधानसभा | पार्टी | मार्जिन | जेकेएलएम |
बोकारो | भाजपा | 7207 | 39621 |
कांके | भाजपा | 968 | 25065 |
छतरपुर | भाजपा | 736 | 1065 |
गिरिडीह | भाजपा | 3838 | 10787 |
खरसावां | भाजपा | 32615 | 33841 |
टुंडी | भाजपा | 25603 | 44364 |
सिंदरी | भाजपा | 3448 | 42664 |
निरसा | भाजपा | 1808 | 16316 |
बेरमो | भाजपा | 58352 | 60871 |
जयराम महतो की पार्टी ने इंडी गठबंधन को भी नुकसान पहुंचाया है, समझिये कैसेः
विधानसभा | पार्टी | मार्जिन | जेकेएलएम |
चतरा | राजद | 18401 | 16776 |
बगोदर | माले | 32617 | 17736 |
तमाड़ | जदयू | 24246 | 26562 |
मांडू | कांग्रेस | 231 | 71276 |
जयराम महतो की पार्टी ने आजसू को भी नुकसान पहुंचाया है, समझिये कैसेः
अभी तक झारखंड के कुर्मी समाज में सबसे ज्यादा पकड़ सुदेश महतो की पार्टी आजसू की मानी जाती रही। भाजपा ने भी सीट समझौते में आजसू को 10 सीट दिया था। मगर आजसू के प्रभाव वाली इन सीटों पर जयराम महतो की पार्टी कुछ इस तरह उभरी कि सुदेश महतो को खुद अपनी सिल्ली सीट गंवानी पड़ी।
सिल्ली में आजसू के सुदेश महतो करीब 24 हजार वोट से चुनाव हारे जबकि यहां जयराम महतो की पार्टी के कैंडिडेट देवेन्द्र महतो 42 हजार के करीब वोट ले आए।
ऐसे ही, रामगढ़ में आजसू की सुनीता चौधरी महज 7 हजार वोट से चुनाव हार गईं, जबकि यहां जयराम महतो की पार्टी को 71 हजार वोट आए। आजसू इस चुनाव में केवल 1 सीट जीती – मांडू। लेकिन वह भी बड़ी मुश्किल से।
यहां पार्टी के निर्मल महतो जीते मगर सिर्फ 231 वोट से। गौर करने वाली बात ये रही कि यहां भी जयराम महतो की पार्टी लगभग 71 हजार वोट ले आई। इस तरह, ये कहना कहीं से भी अतिश्योक्ति नहीं कि जयराम महतो की झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा ने बीजेपी और आजसू की इस चुनाव में लंका लगा दी।
शहरी क्षेत्रों में बेअसरः
शहरी क्षेत्रों में जेएलकेएम का कोई असर नहीं दिखा। शहरी वोटरों ने जेएलकेएम को वोट नहीं दिए। रांची में जेएलकेएम के प्रत्याशी को मात्र 500 वोट मिले। वहीं, जमशेदपुर पूर्वी में जेएलकेएम 1909 वोटों पर ही सिमट गया।
बरहेट जहां से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खड़े थे, वहां भी जेएलकेएम को वोटरों ने नकार दिया। जेएलकेएम को महज 2181 वोट मिले। गुमला में भी जेएलकेएम को मात्र 1535 वोट ही मिले हैं।
लातेहार-सरायकेला में झामुमो को पहुंचा नुकसानः
लातेहार में भाजपा ने झामुमो प्रत्याशी को महज 434 वोट से हराया। यहां भी जेएलकेएम के प्रत्याशी को 4229 वोट मिले। इसका नुकसान झामुमो को हुआ। वहीं, सरायकेला में भी जेएलकेएम के कारण झामुमो को नुकसान हुआ।
भाजपा ने झामुमो प्रत्याशी को 20,447 वोट से हराया। यहां भी जेएलकेएम के प्रत्याशी को 40,056 वोट मिले हैं।
बड़ी पार्टियों के लिए खतरा है जयरामः
‘जयराम महतो का अभी तो उभार हुआ है। आगे चलकर ये बड़ी पार्टियों के लिए घातक साबित होंगे। खासकर भाजपा को देखना होगा कि वो आगे सुदेश को साथ रखेगी कि जयराम को। चूंकि राज्य में भाजपा के पास कोई कुर्मी फेस नहीं है। ऐसे में उसे राज्य की सत्ता में वापसी के लिए दोनों को साधना जरूरी है।’
बदलता रहता है कुर्मी नेतृत्वः
झारखंड की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से अहम रहे हैं। आदिवासी के बाद सबसे बड़ी आबादी कुर्मी मतदाता की है। राज्य में आदिवासी 26% और कुर्मी 15% से अधिक हैं। जो विधानसभा की 32-35 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
जयराम महतो खुद कुर्मी समुदाय से आते हैं और इसी वोट बैंक पर उनकी नजरें टिकी हैं। अपने जनाधार को लगातार बढ़ाते हुए उन्होंने अब झारखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण चेहरा बनकर उभरे हैं।
कुर्मी समाज की खास बात है कि इसमें परिवारवाद नहीं चलता है। ये समाज हर 10-12 साल पर अपने नेता के चेहरे को बदल देता है। राज्य गठन से पहले निर्मल महतो और शैलेंद्र महतो नेता हुआ करते थे। 2000 के बाद सुदेश महतो और सुधीर महतो का उदय हुआ। अब जयराम महतो सामने आए हैं।
महतो समाज का झारखंड की राजनीति में दबदबाः
जानकार बताते हैं कि कुर्मी/महतो समाज का झारखंड की राजनीति में हमेशा ही दबदबा रहा है। यह समाज उग्र राजनीति पसंद करता है। वह स्थानीय, बेरोजगारी और महंगाई पर खुलकर बोलने वाले नेता को ज्यादा पसंद करता है। यही कारण है कि उसके नेता बार-बार बदल जाते हैं।
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