नई दिल्ली। भारत ने अब अतंरिक्ष में ऊंची छलांग लगाने की तैयारी कर ली है। भारत अपने पहले स्पेस इंजन गगनयान के जरिए अंतरिक्ष में ऊंची छलांग लगाने के लिए तैयार है।
गगनयान के जरिए भारतीय एस्ट्रोनाट अंतरिक्ष में जायेंगे। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो गगनयान मिशन के तहत तीन एस्ट्रोनॉट को स्पेस में भेजेगी।
ये इसरो का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन होगा। इसके लिए भारतीय वायु सेना के चार अधिकारियों को एस्ट्रोनॉट के लिए चुना गया है।
अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो 2025 के अंत तक IAF के चार पायलट प्रशांत बालाकृष्णन नायर, अंगद प्रताप, अजित कृष्णन और शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में जायेंगे।
इनमें से तीन को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च वीइकल मार्क 3 (LVM 3) के जरिए सात दिनों के स्पेस मिशन पर लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) मंृ भेजा जायेगा। LVM3 रॉकेट GSLV का संशोधित रूप है।
ऐसे हुआ चयन
कई दिग्गज पायलटों वाली शुरुआती सूची में से इन चारों को सख्त चयन प्रक्रिया के जरिए चुना गया है। कई दौर की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परीक्षाएं पास करने के बाद इन्हें अंतरिक्ष उड़ान प्रशिक्षण के लिए रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर भेजा गया।
वहां एक साल का ट्रेनिंग कोर्स पूरा करने के बाद ये चारों बेंगलुरु स्थित न्यू एस्ट्रनॉट ट्रेनिंग फैसिलिटी में अंतिम तैयारियों के लिए भारत लौटे हैं।
ग्राउंड स्टेशन स्थापित
एक बार LEO में पहुंचने के बाद पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने, बंगाल की खाड़ी में गिरने और भारतीय नौसेना के जहाजों द्वारा निकाले जाने से पहले ये गगनॉट्स कई तरह के वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे।
गगनयान की उड़ान के दौरान मिशन पर कंट्रोल बनाए रखने में मदद के लिए इसरो ने श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया के बीच स्थित एक द्वीपसमूह में एक ग्राउंड स्टेशन स्थापित किया है।
बताया जाता है कि अंतरिक्ष एजेंसी इन दिनों इस अंतरिक्ष यान को अंतिम रूप दे रही है।
दुनिया का चौथा देश बनेगा भारत
भारत की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान से पहले कई मानवरहित गगनयान मिशन होने हैं।
गगनयान की कामयाबी भारत को रूस, अमेरिका और चीन के बाद मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान हासिल करने वाला चौथा देश बना देगी।
देरी के हैं ये कारण
1984 में भारत-सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में भेजा गया था। इस तरह राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने।
लेकिन उसके बाद से अब तक भारत ने किसी को भी अंतरिक्ष में नहीं भेजा। इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के अलावा इसमें लगने वाली भारी लागत भी प्रमुख वजह रही।
लागत के ही चलते दशकों तक इसरो के लिए मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की तकनीकी क्षमता विकसित करने की सोचना भी संभव नहीं हुआ।
बावजूद इसके इसरो ने सामाजिक-आर्थिक विकास पर केंद्रित उपग्रहों का निर्माण और प्रक्षेपण जारी रखा।
सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स से खुली राह
इस बीच हालात बड़ी तेजी से बदले। जिस गति से प्रौद्योगिकी की दुनिया बदली, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर सस्ते हुए, उसने असंभव को संभव बना दिया।
इसरो के लिए मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियानों पर सक्रियता से विचार करने की राह खुल गई।
हालांकि भारत के लिए मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की दिशा में बढ़ने की ज्यादा बड़ी वजह बनी राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएं। इन चिंताओं की ज्यादा समय तक अनदेखी नहीं की जा सकती थी।
शीत युद्ध में अंतरिक्ष दौड़
बताते चलें कि 60, 70 और 80 के दशकों में शीतयुद्ध के दौरान भारत अंतरिक्ष की दौड़ लगभग बाहर ही रहा। अंतरिक्ष शक्ति के रूप में चीन के प्रभुत्व ने अमेरिका और सोवियत संघ (बाद में रूस) को चुनौती दी।
स्थिति बदली 2007 में, जब चीन के एंटीसैटलाइट (एसैट) टेस्ट ने भारत को अंतरिक्ष संबंधी लक्ष्यों पर दोबारा विचार करने के लिए प्रेरित किया।
जल्द ही स्पष्ट हो गया कि भारत के सामने ज्यादा विकल्प नहीं थे। देश की अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा के लिए इस रास्ते पर तेजी से बढ़ना ही था।
इसरो ने न केवल मिलिट्री प्रोफाइल हासिल किया, बल्कि मार्च 2019 में पूरी गरज के साथ दुनिया के सामने इसकी घोषणा भी कर दी, जब भारत ने LEO में एक टारगेट सैटलाइट को मार गिराकर अपनी एसैट क्षमता का प्रदर्शन किया।
अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना है लक्ष्य
देश की इन बदली हुई प्राथमिकताओं में एक सक्रिय मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम और इसके साथ-साथ चंद्रमा और ग्रहों से जुड़े मिशन शामिल थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले दिनों घोषित लक्ष्य के मुताबिक अगर भारत को 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाना है तो एक पूर्ण मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को टाला नहीं जा सकता।
इसलिए भारत ने इस पर गंभीरता के साथ आगे कदम बढ़ा दिया है।
चीन की चुनौतियों से निपटना है
विश्व गुरु या दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर बढ़ रहे भारत के लिए गगनयान निश्चित रूप से एक बड़ी छलांग होगी।
इससे इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते आर्थिक और सैन्य प्रभुत्व को संतुलित करने में भी मदद मिलेगी। बता दें कि चीन न केवल 20 साल पहले ही अंतरिक्ष में इंसान भेज चुका है, बल्कि उसके बाद भी अलग-अलग मिशन के जरिए इस क्षेत्र में लगातार अपनी गति बनाए हुए है।
उसका स्थायी चालक दल वाला अपना अंतरिक्ष स्टेशन तो है ही, वह पृथ्वी-चंद्रमा आर्थिक क्षेत्र बनाने की भी कोशिश कर रहा है।
अन्य देशों के साथ अंतरिक्ष साझेदारी
भारत ने समझदारी यह दिखाई कि अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप के साथ अंतरिक्ष साझेदारी स्थापित करते हुए किसी भी अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा से बचा रहा।
2014 में मार्स ऑर्बिटर मिशन (जिसने भारत को अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला एकमात्र देश बना दिया) और चंद्रयान-3 (जिसके तहत भारत ने पिछले साल चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग की थी) जैसे मिशनों ने स्पेस एक्सप्लोरेशन के क्षेत्र में एक भरोसेमंद भागीदार के रूप में भारत की साख बढ़ा है।
यानी तिरंगे के साथ मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान से इंटरनैशनल स्पेस एक्सप्लोरेशन प्रॉजेक्ट्स और भविष्य के मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों में भारतीय भागीदारी बढ़ने जा रही है।
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