आदिवासी समुदाय की संस्कृति अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण है, जिसमें उनके जीवन का हर पहलू प्रकृति और पारंपरिक मान्यताओं से जुड़ा होता है। इन समुदायों के पर्व और त्योहार उनकी धार्मिक आस्था, कृषि परंपराओं और प्राकृतिक संसाधनों से गहरे रूप से जुड़े होते हैं। आदिवासी समाज के पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं होते, बल्कि वे उनके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा होते हैं।
इन पर्वों के माध्यम से आदिवासी लोग अपनी परंपराओं, लोककला, और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करते हैं। चाहे वह कृषि उत्सव हो, प्रकृति पूजा या फिर सामाजिक एकता का प्रतीक हो, ये पर्व उनके जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। ये न केवल सामाजिक मेल-मिलाप का अवसर होते हैं, बल्कि इन्हें मनाने के दौरान गीत, नृत्य और पारंपरिक रस्मों के माध्यम से समाज की सांस्कृतिक धारा को जीवित रखा जाता है।
आइए, जानते हैं कुछ प्रमुख आदिवासी पर्वों के बारे में, जो इस समुदाय के समृद्ध और विविध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं।
- सोहराय: सोहराय पर्व आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है, जो पौष महीने में पांच दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान कृषि उपकरणों की सफाई, मवेशियों की पूजा, कुल देवता की पूजा और शिकार की परंपरा निभाई जाती है। यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक भी है, जिसमें भाई अपनी बहन को ससुराल से मायके बुलाता है।
- सरहुल: सरहुल पर्व आदिवासी समाज का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो वसंत ऋतु में मनाया जाता है। यह पर्व साल वृक्ष के नए फूलों के खिलने के समय मनाया जाता है और इसका संबंध प्रकृति के प्रति श्रद्धा और आदिवासी संस्कृति के संरक्षण से होता है। इस दिन आदिवासी लोग साल वृक्ष की पूजा करते हैं, नृत्य करते हैं और प्रकृति से जुड़ी अपनी मान्यताओं का पालन करते हैं।
- करमा: करमा पर्व विशेष रूप से आदिवासी युवाओं द्वारा मनाया जाता है, जो भादो महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनता है। यह पर्व खासतौर पर झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में मनाया जाता है। करमा पर्व का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति आभार और सौंदर्य का सम्मान करना है। इस दिन, युवाओं द्वारा करमा देवता की पूजा की जाती है और जंगल से लकड़ी, फूल और फल एकत्रित करके एक विशेष नृत्य प्रस्तुत किया जाता है।
- बाहा: बाहा पर्व आदिवासी समाज के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसे संताल समुदाय बड़े धूमधाम से मनाता है। यह पर्व फाल्गुन महीने की शुरुआत में मनाया जाता है और इसका संबंध साल वृक्ष और उसके फूलों से होता है। यह पर्व प्रेम और सौहार्द का प्रतीक होता है। इस दिन संताल समुदाय के लोग साल के फूलों से पूजा करते हैं और एक दूसरे से प्रेम की प्रतिज्ञा करते हैं।
- बुरु : बुरु पर्व झारखंड और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस दिन आदिवासी लोग बुरु देवता (पर्वत देवता) की पूजा करते हैं और अपने गांव की समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं।
- मकर संक्रांति: आदिवासी समाज में मकर संक्रांति भी विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार मुख्य रूप से सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के दिन मनाया जाता है। इस दिन नए अनाज की पूजा की जाती है और लोग मिलकर भोज करते हैं। यह त्योहार प्रकृति और सूर्यमालिका के संबंध में आदिवासियों की विश्वास प्रणाली को दर्शाता है।
- टुसु: टुसु पर्व मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय के बीच मनाया जाने वाला एक कृषि आधारित पर्व है, जिसे खासकर झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, और ओडिशा के आदिवासी लोग मनाते हैं। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य कृषि से जुड़ी समृद्धि और अच्छे फसल की कामना करना है। आदिवासी समुदाय के लोग इस दिन देवी टुसु की पूजा करते हैं, जिन्हें समृद्धि और कृषि के अच्छे परिणामों की देवी माना जाता है। यह पर्व नए फसल की शुरुआत के समय मनाया जाता है, और इस दौरान किसान अपनी कृषि कार्यों में सफलता की कामना करते हैं।
आदिवासी समुदाय के पर्व उनके जीवन, संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं का अहम हिस्सा होते हैं। इन पर्वों के माध्यम से आदिवासी लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोते हैं और प्रकृति के साथ अपने संबंधों को मजबूती से बनाए रखते हैं। इन पर्वों के दौरान नृत्य, गीत और सामूहिक गतिविधियाँ समाज को एकजुट करने का कार्य करती हैं और यह पर्व सामाजिक व धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होते हैं।
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