रांची। सप्ताह के सात दिनों में सोमवार के दिन का विशेष महत्त्व है। शनिवार और रविवार के दिन कामकाजी व्यक्तियों, विद्यार्थियों के लिए लगभग छुट्टी के दिन होते हैं।
भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया इन्हें सप्ताहांत के रूप में मनाती है और सप्ताह के बाकी दिनों की थकान शनिवार व रविवार को ही उतरती है।
ऐसे में सोमवार का दिन प्रत्येक व्यक्ति ऊर्जावान नज़र आता है और एक नयी ऊर्जा व उत्साह के साथ काम में जुटता है।
लेकिन, सोमवार का दिन सिर्फ सांसारिक कार्यों के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि धार्मिक रूप से भी इस दिन का बहुत अधिक महत्त्व है।
दरअसल, यह दिन भगवान भोलेनाथ का दिन माना जाता है। मान्यता है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने से उपासक को मनोवांछित फल मिलता है।
पौराणिक ग्रंथों में तो सोमवार के महत्त्व को बतानेवाली एक कथा का वर्णन भी किया गया है।
सोमवार व्रत कथा
हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में सोमवार व्रत के महत्त्व का वर्णन कथा के जरिये किया गया है। कथा कुछ इस प्रकार है।
बहुत समय पहले की बात है कि किसी नगर में एक साहूकार रहता था। वह बहुत ही धर्मात्मा साहूकार था और भगवान शिव का भक्त भी।
हर सोमवार भगवान शिव की उपासना करना और विधिनुसार उपवास रखना उसका नियम था। धन-धान्य से उसका घर भरा हुआ था, लेकिन उसे एक बड़ा भारी दुख भी था।
वह यह कि उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन क्या हुआ कि माता-पार्वती उस शिव भक्त साहूकार के बारे भगवान शिव से बोलीं कि यह तो आपका भक्त है, बड़ा धर्मात्मा भी है, दान-पुण्य करता रहता है, इसकी आत्मा भी बिल्कुल पवित्र है, फिर आप इसकी मनोकामना को पूर्ण क्यों नहीं करते।
तब भगवान शिव बोले, ‘इस संसार में सबको अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। इसके दुख का कारण इसके पूर्व जन्म में किये गये कुछ पाप हैं।’
मां पार्वती बोली, ‘मुझसे भक्त की पीड़ा नहीं देखी जाती, तब मां पार्वती बोली, ‘मुझसे अपने इस भक्त की पीड़ा नहीं देखी जाती। आप इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दें।
अब मां पार्वती की जिद्द के आगे भगवान मजबूर हो गये और साहूकार को पुत्र रत्न की प्राप्ति का वरदान दे दिया। लेकिन, साथ ही कहा कि यह बालक केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
अब संयोगवश साहूकार भी ये सब बातें सुन रहा था। उसे न तो भगवान शिव के वरदान पर खुशी हुई और न ही दुख।
समय आने पर उसकी संतान हुई, लेकिन साहूकार को तो पता था इसकी सांसें कितनी लम्बी हैं।
फिर भी साहूकार ने धर्म-कर्म के कार्यों को जारी रखा और थोड़ा बड़ा होने पर लड़के के मामा को बुला कर उसके साथ काशी शिक्षा पाने के लिए भेज दिया।
साहूकार ने उन्हें बहुत सारा धन भी दिया और कहा कि रास्ते में यज्ञ हवन करते हुए जाना और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा भी देना।
दूल्हा एक आंख से काना था
साहूकार के कहे अनुसार वे रास्ते में सच्चे मन से यज्ञ हवन करते हुए जा रहे थे कि रास्ते में एक नगर में राजा अपनी कन्या का विवाह करा रहा था।
वहीं, जिससे कन्या का विवाह तय हुआ, वह एक आंख से काना था और इस बात को राजा से छुपाया गया था।
पोल खुलने के डर से लड़के वालों ने मामा भांजे को पकड़ लिया और भांजे को काने दूल्हे के स्थान पर मंडप में बैठा कर शादी करा दी।
अब लड़के ने मौका पाकर राजकुमारी के दुपट्टे पर सच्चाई लिख दी, जिससे बात राजा तक भी पंहुच गयी।
उसने अपनी कन्या को न भेज कर बारात को वापस लौटा दिया। उधर, मामा-भांजा काशी की ओर बढ़ गये।
अब लड़के की शिक्षा भी सम्पन्न हो गयी और उसकी आयु भी 12 वर्ष की हो गयी। शिक्षा पूरी होने के कारण उन्होंने काशी में एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया।
लेकिन, लड़के की तबीयत खराब हो गयी, तो उसे मामा ने आराम करने के लिए भेज दिया। चूंकि, उसका समय पूरा हो चुका था, इसलिए लेटते ही लड़के की मृत्यु हो गयी।
भांजे को मृत देख मामा की हालत खराब हो गयी। वह विलाप करने लगा। संयोगवश, भगवान शिव और मां पार्वती वहीं से गुजर रहे थे।
इस रूदन को देख कर मां पार्वती से रहा नहीं गया और भगवान शिव से अनुरोध किया कि इसके दुख को दूर करें।
जब दुख का कारण भगवान शिव ने देखा, तो कहा कि यह तो उसी साहूकार का लड़का है, जिसे मैंने ही 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था।
अब तो इसका समय पूरा हो गया है। तब मां पार्वती जिद्द पर अड़ गयीं कि इसके माता-पिता को जब यह खबर प्राप्त होगी, तो वे बिलकुल भी सहन नहीं कर पायेंगे। अत: आप इस लड़के को जीवन दान दें। तब भगवान शिव ने लड़के को जीवित कर दिया।
मामा की खुशी का ठिकाना न रहा
अब लड़के के मामा की खुशी का ठिकाना न रहा। शिक्षा पूर्ण हो चुकी थी, इसलिए वे अपने नगर लौटने लगे, तो रास्ते में जिस नगर में उसका विवाह हुआ था, वह राजा यज्ञ करवा रहा था।
वे भी उसमें शामिल हुए। राजा ने लड़के को पहचान लिया और अपनी पुत्री को उसके साथ भेज दिया।
उधर, साहूकार और उसकी पत्नी अन्न जल छोड़ चुके थे और संकल्प कर चुके थे कि यदि उन्हें पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला, तो वे जीवित नहीं रहेंगे।
उसी रात सपने में साहूकार को भगवान शिव ने दर्शन दिये और कहा…’हे भक्त, तुम्हारी श्रद्धा व भक्ति को देख कर, सोमवार का व्रत रखने व कथा करने से मैं प्रसन्न हूं और तुम्हारे पुत्र को दीर्घायु का वरदान देता हूं।’
साहूकार ने शिव व माता पार्वती को नमन किया
अगले ही दिन पुत्र को देख कर खुशी के मारे उनकी आंखें झलक आयीं और साहूकार ने भगवान शिव व माता पार्वती को नमन किया।
कुल मिला कर कथा से सबक मिलता है कि व्यक्ति को कभी भी धर्म के मार्ग से नहीं हटना चाहिए, क्योंकि भगवान भक्त की परीक्षा लेते रहते हैं।
सोमवार का व्रत करने व कथा सुनने-पढ़ने से व्रती की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। सोमवार का व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
माना जाता है कि लगातार सोलह सोमवार व्रत करने से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं। विशेषकर, अविवाहित लड़कियां अपनी इच्छा का वर पाने के लिए सोलह सोमवार का व्रत रखती हैं।
सोमवार का व्रत रखने की विधि इस प्रकार है।
सोमवार के व्रत की विधि का वर्णन
पौराणिक ग्रंथों में सोमवार के व्रत की विधि का वर्णन करते हुए बताया गया है कि इस दिन व्यक्ति को प्रात: स्नान कर भगवान शिव को जल चढ़़ाना चाहिए और भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा भी करनी चाहिए।
पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा को सुनना चाहिए। व्रती को दिन में केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए।
आम तौर पर सोमवार का व्रत तीसरे पहर तक होता है, अर्थात संध्या बेला तक ही सोमवार का व्रत रखा जाता है।
सोमवार का व्रत प्रति सोमवार रखा जाता है। सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार व्रत रखे जाते हैं।
सोमवार के सभी व्रतों की विधि एक समान ही होती है। मान्यता है कि चित्रा नक्षत्रयुक्त सोमवार से आरम्भ कर सात सोमवार तक व्रत करने पर व्यक्ति को सभी तरह के सुख प्राप्त होते हैं।
इसके अलावा सोलह सोमवार का व्रत मनोवांछित वर प्राप्ति के लिए किया जाता है। अविवाहित कन्याओं के लिए यह विशेष महत्त्व रखता है।
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