रांची। रांची का जगन्नाथ मंदिर झारखंड के प्राचीन और प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है । यह मंदिर भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है।
इस मंदिर का निर्माण 1691 में नागवंशी राजा ठाकुर ऐनी नाथ शाहदेव द्वारा कराया गया था। मंदिर की बनावट ओडिशा के पुरी के जगन्नाथ मंदिर के समान है।
रांची का जगन्नाथ मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है,जिसे कई मील दूर से देखा जा सकता है। इस मंदिर का इतिहास वेहद ही दिलचस्प है।
इसका निर्माण नागवंशी राजा ठाकुर ऐनी नाथ शाहदेव ने 1691 में कराया था। कहानियां हैं कि राजा ऐनी भगवान जगन्नाथ के बड़े भक्त थे।
एक दिन भगवान जगन्नाथ राजा के स्वपन्न में आए और राजा से रांची में एक पहाड़ पर भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनाने को कहा।
रांची का जगन्नाथ मंदिर आज उसी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। मंदिर के निर्माण के बाद से ही यह स्थल धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र बन गया।
समय के साथ, इस मंदिर ने कई सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों की मेजबानी की और रांची के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया।
जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला ओडिशा के पारंपरिक स्थापत्य शैली पर आधारित है, जिसमें शिखर और गर्भगृह प्रमुख हैं।
मंदिर का शिखर विशाल और उन्नत है, जो इसे दूर से ही दिखाई देता है। मंदिर के अंदर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की सुंदर मूर्तियाँ स्थापित हैं, जिनकी पूजा और अर्चना भक्तगण बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं।
जगन्नाथ मंदिर का सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध उत्सव है रथ यात्रा, जो हर साल आषाढ़ महीने में आयोजित की जाती है।
इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को रंगीन और भव्य रथों में स्थापित किया जाता है और पूरे नगर में भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है।
यह यात्रा मंदिर से शुरू होती है और पूरे रांची शहर के विभिन्न मार्गों से गुजरती है। रथ यात्रा के दौरान मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं।
यह मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का भी केंद्र बनता है।
मेले में विभिन्न प्रकार के झूले, खाने-पीने की वस्तुएं, हस्तशिल्प, और मनोरंजन के साधन होते हैं, जो सभी उम्र के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनते हैं।
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