शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने के कारण कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं। हीमोग्लोबिन में कमी आना उन्हीं में से एक है।
हीमोग्लोबिन क्या है
हीमोग्लोबिन एक प्रकार का प्रोटीन है जो लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है। हीमोग्लोबिन में कमी होने के कारण शरीर में खून की मात्रा घट जाती है।
खून की मात्रा घटने पर एनीमिया का खतरा बढ़ जाता है। कुछ मामलों में एनीमिया जानलेवा भी साबित हो सकता है।
रक्त में हीमोग्लोबिन की गणना रक्त की कुल मात्रा में ग्राम प्रति डेसीलीटर (एक लीटर का दसवां भाग) में मापा जाता है।
इसका सामान्य स्तर आयु और लिंग के आधार पर भिन्न होता है। नवजात शिशु में सामान्य स्तर 17.22 ग्राम डीएल है, जबकि बच्चों में यह 11.13 ग्राम डीएल है।
वयस्क पुरुष में सामान्य हीमोग्लोबिन का स्तर 14.18 ग्राम डीएल होता है और वयस्क महिलाओं में यह स्तर 12.16 ग्राम डीएल होता है।
हीमोग्लोबिन के कारण क्या होता है
डॉक्टर के मुताबिक, हीमोग्लोबिन के कारण एनीमिया का खतरा बढ़ सकता है। गर्भवती महिलाओं और बूढ़े लोगों में हीमोग्लोबिन की कमी होने का खतरा अधिक होता है।
एनीमिया कई अन्य स्थितियों के कारण भी हो सकती है, जैसे कि किडनी की बीमारी और कैंसर के लिए की गई कीमोथेरेपी (जो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकती है) आदि।
डॉक्टर का कहना है कि हेल्दी डाइट का सेवन कर हीमोग्लोबिन की कमी के खतरे को दूर किया जा सकता है।
ग्लोबल न्यूट्रीशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सभी उम्र की 51 फीसदी महिलाएं गर्भधारण के दौरान एनीमिया से ग्रस्त होती हैं।
सिर्फ महिलाएं ही नहीं किसी भी उम्र या लिंग के व्यक्ति के लिए हीमोग्लोबिन के स्तर के कम होने को नज़रअंदाज करना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।
हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने वाला एक मेटल प्रोटीन है, जो फेफड़ों और गलफड़ों से शरीर के भीतर ऑक्सीजन युक्त रक्त ले जाने का काम करता है, साथ ही शरीर की सभी प्रक्रियाओं को सुचारु रूप से करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शरीर के आयरन का लगभग 70 प्रतिशत हीमोग्लोबिन में पाया जाता है, जो कि श्वसन, मेटाबॉलिज्म दुरुस्त रखने और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आवश्यक है
शरीर में प्रोटीन की मात्रा उचित नहीं होने पर हीमोग्लोबिन की समस्या पैदा होती है। आमतौर पर गर्भधारण करने के बाद एक महिला के शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है।
वृद्ध लोग या पौष्टिक आहार विशेषकर आयरन की पूर्ति न करने वाले लोगों में हीमोग्लोबिन की कमी होने का खतरा रहता है।
इसके अलवा क्रोनिक स्वास्थ्य स्थितियां जैसे कि ऑटोइम्यून बीमारी, यकृत रोग, थायरॉयड रोग आदि के शिकार लोगों में भी हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो सकता है।
उम्र बढ़ने के साथ लोगों में हीमोग्लोबिन की कमी का खतरा बढ़ जाता है। जीवनशैली से संबंधित कुछ आदतें इसे विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
एथलीट या कसरत करने वाले लोगों को हीमोग्लोबिन की कमी होने का खतरा अधिक होता है, क्योंकि शारीरिक परिश्रम रक्त प्रवाह में लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने का कारण बनता है।
पीरियड्स या प्रेग्नेंसी की वजह से भी महिलाओं में एनीमिया का खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान, शराब के सेवन से शरीर में ऑक्सीजन की अतिरिक्त जरूरत होती है।
इस प्रकार थोड़ी देर के लिए शरीर में जमा हीमोग्लोबिन से इस अतिरिक्त आवश्यकता की भरपाई होती है जिसके परिणामस्वरूप शरीर में हीमोग्लोबिन स्तर कम होने लगता है।
हीमोग्लोबिन की कमी
हीमोग्लोबिन की कमी को निम्न लक्षणों से पहचाना जा सकता है-
थकान : थकान महसूस होना, एनीमिक रोगियों में होने वाली आम समस्या है।
त्वचा में पीलापन : लाल रक्त कोशिकाएं त्वचा को गुलाबी चमक देती हैं, हीमोग्लोबिन की कमी की वजह से त्वचा पीली होने लगती है।
घबराहट : मरीज में हीमोग्लोबिन की कमी से उन्हें हर समय तेजी से दिल के धड़कने का एहसास होता है।
सांस लेने में समस्या : हीमोग्लोबिन शरीर के भीतर ऑक्सीजनयुक्त रक्त पहुंचाता है। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी से श्वसन समस्याएं होने लगती हैं और मरीज को हमेशा घबराहट महसूस होती है।
टिनिटस : यह हीमोग्लोबिन की कमी वाले मरीजों में होने वाले सबसे आम लक्षणों में से एक है, जहां वे शरीर के भीतर उत्पन्न ध्वनि सुन सकते हैं और बाहर की आवाज नहीं।
इसके अलावा सिरदर्द, खुजली, स्वाद में बदलाव, बालों का झड़ना, असामान्य रूप से चिकनी या उभरी हुई जीभ महसूस होना और न खाने वाली चीज जैसे मिट्टी, चॉक, बर्फ या कागज को खाना या नाखून चबाने जैसी लत भी लग सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य पर असर : एनीमिया से संज्ञानात्मक और तार्किक क्षमता में कमी होना सामान्य है।
मस्तिष्क में मोनोमाइन के मेटाबॉलिज्म में आयरन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए आयरन की कमी से उदासीनता, उनींदापन, चिड़चिड़ाहट और ध्यान की कमी जैसे लक्षण खराब मोनोमाइन ऑक्सीकरण की गतिविधि का संकेत है।
हीमोग्लोबिन के स्तर में कमी के कारण व्यक्ति में निराशा भी आ जाती है।
डिप्रेशन और अरिदमिया : हीमोग्लोबिन की कमी से डिप्रेशन, हार्ट फेल होना, अरिदमिया यानी धड़कन अनियंत्रित होने की समस्या हीमोग्लोबिन के स्तर में कमी के कारण होती है।
इसके अलावा इम्यूनिटी भी कमजोर हो जाती है, जिससे लोगों को संक्रमण होने की आशंका अधिक होती है।
हीमोग्लोबिन का उपचार
हीमोग्लोबिन का उपचार कई तरह से किया जा सकता है। हीमोग्लोबिन का उपचार उसके कारण पर निर्भर करता है।
आवश्यकता के अनुसार हीमोग्लोबिन का उपचार करने के लिए डॉक्टर अनेक तरकीब अपना सकते हैं।
• अगर किसी व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी है तो उसके उपचार के तौर पर डॉक्टर हर महीने विटामिन का इंजेक्शन लगवाने की सलाह दे सकते हैं। साथ ही, टेबलेट की खुराक लेने का भी सुझाव दे सकते हैं।
• शरीर में विटामिन बी 12 की कम होने पर डॉक्टर बी 12 का इंजेक्शन लगाने की सलाह देते हैं।
विटामिन बी 12 की अत्यधिक कमी होने पर मुंह या इंजेक्शन के माध्यम से विटामिन दिया जा सकता है।
• अगर शरीर में आयरन की कमी है तो डॉक्टर आयरन के सप्लीमेंट लेने की सलाह देते हैं।
आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान एक महिला में आयरन के साथ-साथ दूसरे पोषक तत्वों की कमी होती है, ऐसे में डॉक्टर उसे सप्लीमेंट्स लेने की सलाह देते हैं।
• अगर हीमोग्लोबिन में कमी का कारण पोषक तत्व है तो डॉक्टर डाइट में बदलाव लाने और विटामिन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करने का सुझाव देते हैं।
• इस समस्या से बचे रहने के लिए पौष्टिक आहार लेते रहें साथ ही धूम्रपान से दूरी बना लें। खूब पानी पीने भी हीमोग्लोबिन के स्तर को बेहतर रखने में मदद मिल सकती है।
इसे भी पढ़ें