पाकुड़। संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ नया मोर्चा शुरू हो गया है। पाकुड़ जिले के कुछ गांवों में हाल के दिनों में आदिवासियों व हिंदुओं पर हमले की घटनाओं से स्थानीय गुस्से में हैं।
आदिवासी समाज के लोग घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए 16 सितंबर महासम्मेलन करने वाले हैं।
ये महासम्मेलन पाकुड़ के हिरणपुर में पारंपरिक आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के तहत ग्राम प्रधानों ने महासम्मेलन बुलाया है।
‘मांझी परगना महासम्मेलन’ के नाम से होने वाले इस आयोजन में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता चंपई सोरेन शामिल होंगे।
चंपई ने कहा कि महासम्मेलन में समाज के ग्राम प्रधानों व मार्गदर्शकों के साथ बैठ कर घुसपैठ व अपनी जमीन से बेदखल होते आदिवासियों की समस्याओं पर मंथन करेंगे।
पाकुड़ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने वाले वीर शहीदों की धरती है। अब इसी धरती से संथाल परगना को बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष का ऐलान होगा।
चंपई ने सोशल मीडिया एक्स पर किया ट्वीट
चंपई सोरेन ने शुक्रवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर एक लंबा पोस्ट लिखा है।
इसमें कहा है कि वोट बैंक के लिए कुछ राजनीतिक दल भले ही आंकड़े छिपाने का प्रयास करें, लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाड़ लेने से सच्चाई नहीं बदल जाती।
वोटर लिस्ट पर नजर डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी माटी, जन्मभूमि से हमें ही बेदखल करने में बांग्लादेशी घुसपैठिए काफी हद तक सफल हो गए हैं।
पाकुड़ के जिकरहट्टी स्थित संथाली टोला और मालपहाड़िया गांव का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यहां अब आदिम जनजाति का कोई सदस्य नहीं बचा है।
आखिर वहां के भूमिपुत्र कहां गए? उनकी जमीन व घर पर अब किसका कब्जा है? इसके साथ-साथ वहां के दर्जनों अन्य गांवों-टोलों को जमाई टोला में कौन बदल रहा है? किसके संरक्षण में यह गोरखधंधा चल रहा है?
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