Ghatsila by-election:
जमशेदपुर। झारखंड की राजनीति में इन दिनों घाटशिला विधानसभा उपचुनाव का मुद्दा छाया हुआ है। 8 अक्टूबर 2025 को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने X पर 6 अक्टूबर का एक पुराना पोस्ट रीपोस्ट किया है, जो पूर्व विधायक रामदास सोरेन के भतीजे विक्टर सोरेन का है। यह रीपोस्ट कई सवाल खड़े कर रहा है, खासकर रामदास सोरेन के बेटे सोमेश सोरेन की उम्मीदवारी को लेकर। आइए, इसकी गहराई से पड़ताल करते हैं।
दोस्तों, 6 अक्टूबर को ही मैंने एक वीडियो बनाया था, जिसमें बताया था कि हेमंत सोरेन ने रामदास सोरेन के राजनीतिक उत्तराधिकारी सोमेश सोरेन को मंत्री पद क्यों नहीं दिया। जबकि सोमेश को रामदास सोरेन का वारिस बनाने का फैसला हेमंत सोरेन के सामने ही हुआ था और उनका मंत्री बनना भी तय माना जा रहा था। लेकिन, घाटशिला विधानसभा उपचुनाव की अधिसूचना जारी हो गई और आदर्श आचार संहिता लागू हो गई।
फिर भी, सोमेश को न तो मंत्री बनाया गया और न ही उनकी उम्मीदवारी की घोषणा अब तक हुई है। मैंने वीडियो में सवाल उठाया था कि क्या हेमंत सोरेन किसी कारण से सोमेश से नाराज हैं? क्या उनकी टिकट पर भी संकट मंडरा रहा है? आज रांची से प्रकाशित ‘आजाद सिपाही’ अखबार में घाटशिला उपचुनाव पर वरिष्ठ पत्रकार अरुण सिंह की रिपोर्ट छपी है। अरुण सिंह लंबे समय से घाटशिला की राजनीति को कवर करते आ रहे हैं।
वे ‘हिंदुस्तान’ के घाटशिला ब्यूरो चीफ रह चुके हैं और झारखंड की राजनीति के हर कोने-कोने की कहानियां जानते हैं। उनकी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि स्पेशल ब्रांच ने सोमेश सोरेन पर मुख्यालय भेजी रिपोर्ट में उनके खिलाफ कई गंभीर बातें हैं। अरुण सिंह लिखते हैं कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) सोमेश सोरेन को प्रत्याशी बनाए या रामदास सोरेन की पत्नी सूरजमनी सोरेन या भतीजे विक्टर सोरेन को—इतना तो तय है कि वोट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और स्व. रामदास सोरेन के नाम पर ही पड़ेगा।
रिपोर्ट में यह भी जिक्र है कि रामदास सोरेन के श्राद्ध के बाद सोमेश के घाटशिला दौरे के स्टाइल, उनके काफिले में गाड़ियों की संख्या और जमशेदपुर के कुछ चेहरों को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। टैटू वाले और संदिग्ध चरित्र के लोगों की मौजूदगी पर भी सवाल उठे हैं। इसके अलावा, विक्टर सोरेन का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि रामदास बाबू के साथ विधानसभा क्षेत्र में हमेशा साथ चलने वाले उनके भतीजे विक्टर सोरेन के मन में भी कम नाराजगी नहीं है।
उनका मानना है कि पिछले लगभग 11 वर्षों से वे रामदास सोरेन के साये की तरह घाटशिला क्षेत्र में घूमे-फिरे हैं, इसलिए चुनाव लड़ने का मौका पार्टी की ओर से उन्हें मिलना चाहिए। समय रहते अगर पार्टी नेतृत्व ने इस स्थिति की गंभीरता नहीं समझी, तो पार्टी को नुकसान हो सकता है—यह चेतावनी रिपोर्ट में दी गई है। और सबसे दिलचस्प बात यह है कि आज ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उसी विक्टर सोरेन के 6 अक्टूबर वाले ट्वीट को रीपोस्ट किया है।
इस ट्वीट में विक्टर ने स्व. रामदास सोरेन के साथ 2024 के चुनाव प्रचार की एक फोटो शेयर करते हुए लिखा था: “घाटशिला विधानसभा, हमें दुख में नहीं डूबना है, बल्कि स्व. रामदास सोरेन जी की ऊर्जा को अपनी शक्ति बनाना है। 11 नवंबर को उनका संकल्प पूरा करने के लिए एकजुट होकर मतदान करना है।
इसी ट्वीट को हेमंत सोरेन ने रीट्वीट किया। अब सोचिए, जहां एक तरफ सोमेश सोरेन के नाम की चर्चा जोर-शोर से हो रही थी, वहीं विक्टर भी अपनी दावेदारी ठोक रहे थे। ऐसे में हेमंत सोरेन—जो सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं, बल्कि झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष भी हैं—विक्टर के ट्वीट को रीपोस्ट करते हैं, तो इसका क्या मतलब निकाला जाएगा? दोस्तों, इसका कई मतलब निकाला जा सकता है। हेमंत सोरेन पार्टी के सर्वेसर्वा हैं, उन्हें तो पता ही है कि टिकट किसको देना है।
लेकिन, सोमेश को मंत्री न बनाकर और चुनाव घोषणा के बाद भी उनकी उम्मीदवारी न घोषित करके उन्होंने अनिश्चितता का माहौल तो बना ही दिया है। ऊपर से विक्टर के ट्वीट को रीपोस्ट करके सोमेश की धड़कनें तेज हो गई होंगी। क्या यह रीपोस्ट विक्टर को सांत्वना देने के लिए है—कि सीएम उनके ट्वीट देखते हैं और पार्टी की नजर उन पर है? या सोमेश को कोई संदेश देने के लिए? इसका सटीक मतलब तो हेमंत सोरेन ही बता पाएंगे, लेकिन सांस तो सोमेश की ही फूल रही होगी।
भाजपा की रणनीति:
घाटशिला में जयराम महतो को साधकर कुड़मी वोट बैंक पर निशाना, क्या होगी जीत की कुंजी? अब घाटशिला उपचुनाव की रणभूमि में भाजपा की नजरें ‘टाइगर’ जयराम महतो और उनकी जेएलकेएम (झारखंड लोकतांत्रिक क्रांति मोर्चा) पर टिकी हैं। घाटशिला एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित सीट है, जहां संथाल आदिवासी वोटरों की संख्या करीब 50% है, जो पारंपरिक रूप से झामुमो के पक्ष में जाते हैं। लेकिन, भाजपा जानती है कि जीत सुनिश्चित करने के लिए आदिवासी वोट के अलावा गैर-आदिवासी वोट—खासकर कुड़मी समुदाय के वोट—को अपने पाले में करना जरूरी है।
यहां जयराम महतो का कुड़मी वोट बैंक निर्णायक साबित हो सकता है, जो घाटशिला में लगभग 11% (27 हजार से अधिक मतदाता) है। पिछले 2024 विधानसभा चुनाव में चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन इसी 22 हजार वोटों से हार गए थे। भाजपा जयराम महतो पर डोरे डालने की पूरी कोशिश कर रही है।
जयराम का कुड़मी वोट बैंक न सिर्फ मजबूत है, बल्कि यह गैर-आदिवासी वोट का एक बड़ा हिस्सा है, जो उपचुनाव में बैलेंसिंग फैक्टर बन सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर जयराम भाजपा को समर्थन देते हैं या उनके उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करते हैं, तो यह कुड़मी वोटों को एनडीए के पाले में ला सकता है।
वैसे भी, जयराम महतो ने हाल ही में राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात की थी, जहां उन्होंने कहा कि उपचुनाव में लड़ेंगे या समर्थन देंगे, इसका फैसला केंद्रीय समिति की बैठक में होगा। यह बयान भाजपा के लिए सकारात्मक संकेत है, क्योंकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा जयराम को अपने साथ जोड़ने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। इस रणनीति का एक बड़ा आधार कुड़मी समुदाय को एसटी दर्जा दिलाने की मांग है। केंद्र सरकार से वार्ता की पहल में जमशेदपुर से भाजपा सांसद विद्युत महतो भी सक्रिय हैं।
विद्युत महतो कुड़मी समुदाय के प्रमुख चेहरे हैं और उनकी यह पहल जयराम महतो के एजेंडे से मेल खाती है। दिलचस्प बात यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जयराम महतो ने विद्युत महतो के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था, जिससे दोनों के बीच एक अनकहा समझौता नजर आया। अब भाजपा इस रिश्ते का फायदा उठा सकती है—विद्युत महतो को जयराम को मनाने या कुड़मी वोटरों को एकजुट करने के काम में लगाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, विद्युत महतो घाटशिला के कुड़मी बहुल इलाकों में प्रचार कर सकते हैं, जहां एसटी दर्जे की मांग को जोड़कर वोटरों को लुभाया जा सकता है।भाजपा की यह चालाकी इसलिए भी कामयाब हो सकती है क्योंकि घाटशिला में मुस्लिम वोट (दूसरा बड़ा समूह) के अलावा कुड़मी वोट बिखरा हुआ है। अगर जयराम का समर्थन मिला, तो एनडीए को आदिवासी-विरोधी छवि से उबरने में मदद मिलेगी।
भाजपा ने केंद्रीय चुनाव समिति को चार नाम भेजे हैं: बाबूलाल सोरेन (चंपाई सोरेन के पुत्र), रमेश हासदा, लखन माड़ी और सुनीता देवदूत सोरेन। बाबूलाल का नाम सबसे आगे है—2024 में वे 22,000 वोटों से हारे थे, लेकिन चंपाई की छवि से फायदा हो सकता है। रमेश हासदा वर्षों से क्षेत्र में भाजपा के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन उनका विरोध मुस्लिम-आदिवासी वोट बांट सकता है। प्रदेश संगठन ने पंचायत सर्वे भी कराया है।
सहयोगी दल जैसे आजसू और लोजपा ने समर्थन दे दिया है और जेएलकेएम का समर्थन हासिल करने की कोशिश जारी है।
अंकगणित साफ है: घाटशिला में संथाल (50%) और मुस्लिम वोट निर्णायक हैं, जो झामुमो की ओर झुकते हैं। 2024 के परिणामों ने दिखाया कि आदिवासी वोट भाजपा से दूर हो गए। कुड़मी-आदिवासी विवाद के बाद जयराम के ट्राइबल वोटर भी कम हुए हैं। लेकिन, उपचुनाव का इतिहास झामुमो के पक्ष में है—2019-2024 के बीच दुमका, बरमो, मधुपुर, डुमरी और मांडर जैसे उपचुनावों में झामुमो जीती। भाजपा फिसड्डी रही। हेमंत सोरेन खुद रणनीति बना रहे हैं—बिहार चुनाव की मीटिंग में खुद न जाकर घाटशिला पर फोकस। अगर जेएलकेएम भाजपा से जुड़ गई, तो एनडीए मजबूत होगा, लेकिन कैंडिडेट पर सब निर्भर। घोषणा जल्द होने वाली है—क्या सोमेश या विक्टर? क्या बाबूलाल या रमेश? घाटशिला की लड़ाई दिलचस्प होने वाली है।
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