मुंबई, एजेंसियां। आज से 50 साल पहले 24 जनवरी, 1975 को ‘दीवार’ फिल्म रिलीज हुई थी, जो कल्ट फिल्म साबित हुई। अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, नीतू सिंह, परवीन बाबी, निरूपा राय स्टारर फिल्म के लेखक सलीम-जावेद थे।
उनके लिखे डायलॉग्स ‘आज मेरे पास बंगला है, प्रॉपर्टी है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है, तुम्हारे पास क्या है?’, ‘मेरे पास मां है।’, ‘मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता।’, ‘मेरा बाप चोर है।’ आज भी सिनेप्रेमियों को याद है।
फिल्म को लेकर जावेद अख्तर बताते हैं कि आज भी मुझे याद है, सलीम साहब और मैंने जब ‘दीवार’ का आइडिया यश चोपड़ा को सुनाया था, तब वह कहने लगे कि यह तो कुछ ‘मदर इंडिया’ या ‘गंगा जमुना’ जैसा लग रहा है। मैंने कहा कि नहीं, जब स्क्रीन प्ले डेवलप होगा, तब उससे अलग कहानी होगी। बाकी ह्यूमन रिलेशनशिप तो वही होती है।
मां, बेटे, भाई की कहानियां हमेशा से आ रही हैं। वे बोले- आप कहानी डेवलप करके लाइए। फिर स्क्रीन प्ले को मैंने और सलीम साहब ने मात्र 18 दिन में लिखा। इसका कोई दूसरा वर्जन नहीं है, यही पहला और आखिरी वर्जन था।
हमने 18 दिन बाद जाकर सुनाया, तब वे लोग मान ही नहीं रहे थे कि यह स्क्रीन प्ले 18 दिन में लिखा गया है। बहुत से लोगों की यह राय हुई कि इनके पास पहले से लिखा हुआ था मगर इन्होंने पहले आइडिया सुनाया और अब 18 दिन बाद आकर पूरी कहानी सुना रहे हैं। लेकिन सच यह है कि यह स्क्रिप्ट मात्र 18 दिन में ही लिखी गई है। कहानी पसंद की गई, तब अगले 20 दिन में डायलॉग लिखकर 22वें दिन उनके हवाले कर दिया।
किसी ने सोचा नहीं था फिल्म हिट होगीः
कभी-कभी हाथ जब सही पड़ता है, तब पड़ जाता है। यह पिक्चर कंप्लीट हुई, तब ऐसा नहीं था कि हर आदमी देखकर कह रहा था कि यह सुपरहिट है, ऐसा कुछ नहीं था। मैं उनका नाम लेकर शर्मिंदा नहीं करना चाहता, पर बहुत से लोगों ने कहा कि यह पिक्चर 15 वीक की है, क्योंकि इसमें कोई एंटरटेनमेंट नहीं है।
दूसरा, इतना रोमांस नहीं है। फिर यह कमरे-कमरे में शूटिंग हुई है, जो घुटन-घुटन-सी है। कोई आउटडोर शूटिंग या बड़ा लोकेशन नहीं है। डायलॉग ही डायलॉग है, इसलिए 15 वीक चलेगी। किसी को खयाल नहीं था कि यह इतनी कामयाब फिल्म होगी। हां, हमें यकीन था। खैर, चली तो कल्ट फिल्म बन गई।
कामयाबी का पूरा क्रेडिट हम लें, यह बात फेयर नहीं होगीः
जावेद कहते हैं कि इसकी कामयाबी का पूरा क्रेडिट हम लें, यह बात फेयर नहीं होगी। इसमें एक्टर जबर्दस्त थे। अमिताभ बच्चन की जगह अगर कोई होता, तब यह बात नहीं आती, जो उनके होने से आई है। उस वक्त अमिताभ बच्चन उभरते हुए कलाकार थे। उन्होंने बेहतरीन काम किया और सारी चीजें सटीक बैठ गईं।
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