झारखंड गठन के बाद से ही नियोजन नीति और स्थानीय नीति को लेकर राजनीति गरमाती रही है।
अलग-अलग सरकारों ने अपने कार्यकाल में नियोजन और स्थानीय नीति को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया या करने की कोशिश की।
पर कभी इन नीतियों की राह में अदालत बाधक बनी, तो कभी अगली सरकार ने पिछली सरकार की नीति में आमूल चूल परिवर्तन कर दिया।
ऐसे में आज झारखंड का सबसे बड़ा सवाल यह है कि राज्य में अभी फिलहाल कौन सी नियोजन नीति प्रभावी है।
झारखंड में इन दिनों एक बार नियोजन नीति को लेकर लगातार चर्चा हो रही है। उधर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थी राज्य सरकार से जल्द से जल्द रोजगार देने की मांग कर रहे हैं।
सरकार भी इस पर मंथन कर रही है कि क्या करें कि युवाओं को रोजगार मिले। पिछले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसके लिए युवाओं से ही सुझाव लेकर नई नियोजन नीति तो बनाई पर यह उन्ही युवाओं के गले नहीं उतरी और इसका बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो गया।
स्थानीय इसे 60-40 की नीति बताकर विरोध कर रहे है। उनका कहना है कि इससे बाहरी युवाओं को ज्यादा मौके मिलेंगे।
हालांकि पिछली सरकार ने इसी नीति के आधार पर बहालियां शुरू कर दी, जो आज चंपई सोरेन सरकार के दौरान जारी हैं।
जानकारों की मानें, तो सरकार के पास तत्काल रूप से केवल 2016 से पहले की नीति ही विकल्प के रुप में दिख रही है।
पूर्ववर्ती रघुवर सरकार की 2016 और हेमंत सरकार की 2021 की नीति को पहले कोर्ट खारिज कर चुका है।
सीएम के मांगे सुझाव से अलग कई अभ्यर्थी 1985 की नीति के आधार पर भी रोजगार देने की मांग कर रहे हैं।
जानकारों की मानें, तो सरकार के पास अभी केवल एक ही नीति के तहत रोजगार देने का विकल्प बचता है. वह नीति है 2016 से पहले की नीति।
1985 की नीति नियोजन नहीं, स्थानीय नीति थीः
रघुवर दास सरकार में 1985 को आधार बनाकर जो नीति बनी थी, वह नियोजन नहीं बल्कि स्थानीय नीति थी।
इसके तहत 1985 से राज्य में रहने वालों को स्थानीय माना गया था। थर्ड ग्रेड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में इसके दायरे में आने वालों को लाभ देने का फैसला हुआ था।
रघुवर की नियोजन नीति को कोर्ट ने रद्द कर दी थीः
रघुवर सरकार के समय 14 जुलाई, 2016 को एक अधिसूचना जारी कर नियोजन नीति लागू की गई थी।
नीति के तहत सभी 24 जिलों में 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित किया गया।
निर्णय हुआ था कि अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए वही अभ्यर्थी फॉर्म भर कर नियुक्ति पा सकेंगे, जो इन जिलों के निवासी थे।
गैर अनुसूचित जिलों की नौकरियों को ओपेन कर दिया गया था। इन जिलों के लिए हर कोई फॉर्म भर सकता था। इस नीति को भी सुप्रीम कोर्ट पहले ही रद्द कर चुका है।
हेमंत सरकार की नियोजन नीति भी हो चुकी है रद्दः
हेमंत सरकार की नियोजन नीति-2021 को भी हाईकोर्ट रद्द कर चुका है। नीति में प्रावधान था कि थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में जनरल वर्ग के उन्हीं लोगों की नियुक्ति हो सकेगी, जिन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा झारखंड से पास की हो।
कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना था और कहा था कि यह नीति समानता के अधिकार के खिलाफ है।
विकल्प केवल दूसरा हीः
सभी तरह की नीति के खारिज होने और युवाओं को जल्द से जल्द रोजगार देने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने युवाओं से ही सुझाव मंगवाये थे।
इसके आधार पर जो नीति बनी, उसे युवाओं ने ही मानने से इनकार कर दिया। उनका कहना है कि इससे उनकी हकमारी होगी।
बाहर के लोगों के लिए 40 प्रतिशत सीटें ओपेन कर दी गई हैं। स्थानीय आदिवासी और मूलवासी युवा 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू करने की मांग कर रहे हैं।
1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को लेकर कई तरह विवाद होते रहे हैं। इससे संबंधित मामले में राजभवन और सरकार के बीच भी तकरार हो चुकी है।
विधानसभा से पारित 1932 के खतियान आधारित नीति विधेयक को राजभवन पहले ही सरकार को लौटा चुका है।
इसे फिर से विधानसभा से पारित कराकर सरकार को भेजना होगा। वहीं, नीति का लागू होना पूरी तरह से केंद्र पर निर्भर करता है।
ऐसे में सरकार के पास अब केवल 2016 से पहले की नीति ही विकल्प बचता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि झारखंड में नियोजन नीति को लेकर अड़चनें कम होती नहीं दिख रही है।
फिलहाल यह चर्चा है कि राज्य सरकार वर्ष 2016 वाले नियोजन नीति के प्रस्ताव को स्वीकृति दे सकती है।
लोकसभा चुनाव के बाद चंपाई सोरेन सरकार नियोजन नीति को लेकर विचार विमर्श कर सकती है।
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