रांची। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चुनावी बांड को भारत के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया है।
उन्होंने कहा कि चुनावी बांड का इस्तेमाल सत्ता में बैठी पार्टियों को ठेकों के लिए रिश्वत देने, केंद्रीय जांच एजेंसियों से लोगों को बचाने और नीतियों में हेरफेर करने के लिए किया गया है।
प्रशांत ने उक्त बाते रांची में पत्रकारों से कही।
प्रशांत ने बताया कि उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनावी बांड के जरिए भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ पिटीशन दायर किया है, जिसकी सुनवाई अगले सप्ताह तक शुरू हो जाएगी।
कहा कि चुनावी बांड की शुरुआत 2018 में हुई और तब से ही ये संदेहों के घेरे में है।
चुनाव आयोग और एसबीआई ने किया था विरोध
प्रशांत भूषण ने केंद्र की भाजपा सरकार पर जनता के मूल अधिकारों का हनन करने का आरोप लगाया।
कहा कि 2018 में चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा था कि चुनावी बांड के आने से जनता के सूचना के अधिकारों का हनन होगा।
एसबीआई ने भी कहा था कि चुनावी बांड के प्रचलन से मनी लॉन्ड्रिंग और काला धन में वृद्धि होगी।
चुनावी बांड की जरुरत को समझा नहीं पाई भाजपा
जब चुनावी बांड आया था तो अरुण जेटली ने इसके पक्ष में कहा कि ये दानकर्ताओं को गोपनीय रखेगा, ताकि विपक्षी उन्हें प्रताड़ित न कर सकें, लेकिन एसबीआई एक यूनिक नंबर के जरिए सभी चुनावी बांड खरीदने वालो की पूरी जानकारी रखता है।
अगर सरकार चाहे तो एसबीआई पर दबाव डालकर बांड खरीदने वालो का डाटा निकाल सकती है और ये भी जान सकती है किसने किस पार्टी का बांड खरीदा। ये कैसी गोपनीयता है? उक्त बातें प्रशांत भूषण ने प्रेस से कही।
पूरे मामले की जांच एसआईटी करे – प्रशांत भूषण
भूषण ने रांची प्रेस क्लब में कहा, एसआईटी बनाने के लिए शीर्ष अदालत में दायर याचिका पर जल्द ही सुनवाई शुरू होगी।
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में एक निष्पक्ष एसआईटी का गठन किया जाना चाहिए।
एसआईटी में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को शामिल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे भी इस मामले में आरोपी हैं।
भूषण ने कहा कि जांच से पता चलेगा कि चुनावी बांड में कौन शामिल थे और राजनीतिक दलों से पैसा कैसे वसूला जा सकता था।
उन्होंने सवाल किया, राजनीतिक चंदा गैरकानूनी नहीं था लेकिन इसे गुप्त रखना गैरकानूनी है।
रिश्वत लेना गैरकानूनी है और अगर किसी राजनीतिक दल में किसी ने इसे स्वीकार किया है, तो उन्हें इसे वापस करना होगा।
सवाल यह है कि इस विवाद के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या कंपनियों में शामिल लोग, राजनीतिक दलों या सीबीआई, ईडी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
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