Tuesday, June 24, 2025

Dishom Guru: दिशोम गुरु का राजनीतिक सफर [Political journey of Dishom Guru]

Dishom Guru:

रांची। किसी भी नदी के उदगम स्थल को देख कर यह प्रतीत नहीं होता कि पानी की यह पतली सी धार आगे जाकर विकराल नदी का रूप धारण कर लेगी। जिसने गंगोत्री में गंगा नदी के उदगम स्थल को देखा होगा, वो भली भांति इसे समझ सकता है। ऐसा ही कुछ झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ भी है। शिबू सोरेन के सोनत संताल समाज और विनोद बिहारी महतो के संगठन शिवाजी समाज के मिलन से बने झारखंड मुक्ति मोर्चा के बारे कब किसने सोचा था कि यह एक दिन झारखंड की सबसे बड़ी पार्टी बनेगी। आज यह पार्टी राजनीतिक फलक पर छाने को तैयार है।

Dishom Guru: कई प्रमुख आंदोलनों का नेतृत्वः

झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के बाद आंदोलन की शुरुआत हुई। उस वक्त आंदोलन का गढ़ धनबाद जिले का टुंडी प्रखंड और गिरिडीह का पीरटांड़ प्रखंड माना जाता था। 22 अप्रैल 1972 को कुड़को गांव में पुलिस की गोली से धांसू राय, सोनाराम टुडू और गोपाल महतो शहीद हुए। ये सभी सूदखोरों और महाजनों के खिलाफ बैठक कर रहे थे।

23 अप्रैल 1974 को विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र के बलकमका हिरखोई पर जेएमएम कार्यकर्ताओं और सीआरपीएफ जवानों के बीच टकराव हुआ। 1977 में टाटा कंपनी के खिलाफ आंदोलन कर रहे शशिनाथ महतो की हत्या कर दी गई। 1979 में गोधर कोलियरी में मजदूरों ने एक सभा की, जिसके बाद पुलिस लाठीचार्ज आदिवासी मजदूर रसिक हांसदा का मौत हो गई। उसी गांव के नेपाल रवानी नामक एक अन्य नेता की गोली मार कर हत्या कर दी गई।

Dishom Guru: चिरूडीह-कुड़को हत्याकांड मामले में शिबू सोरेन की मुश्किलें बढ़ीः

1970 के दशक में सक्रिय राजनीति में प्रवेश के कुछ ही दिनों बाद शिबू सोरेन की पहचान राज्य में एक बड़े आदिवासी नेता के रूप में बन गई। इसी दौरान 23 जनवरी 1975 को जामताड़ा जिले के चिरूडीह गांव में आंदोलन के क्रम में नरसंहार में 11 लोगों की हत्या हो गई। इसके अलावा कुड़को हत्याकांड मामले में भी शिबू सोरेन के विरुद्ध वर्षों तक अदालत में मामला चला।

Dishom Guru: शिबू समर्थकों ने पुलिस की 150 राइफलें छीन लीः

शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो के नेतृत्व में संगठन का विस्तार धनबाद कोयलांचल से निकल कर संताल परगना प्रमंडल में भी हो चुका था। संताल परगना काश्तकारी अधिनियम को सख्ती से लागू करवाने की मांग को लेकर 1978 में दुमका की रैली के समय लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। उस वक्त महादेव मरांडी बिहार सरकार में सूचना-प्रसारण मंत्री थे और वो दुमका के ही रहने वाले थे। सरकार ने रैली को विफल करने की कोशिश की। सभा के लिए जामता से दुमका की ओर बढ़ रहे शिबू सोरेन और विनोद बिहारी समेत अन्य को रोक लिया गया।

उन्हें गिरफ्तार करने की तैयारी शुरू हो गई। इस खबर के दुमका पहुंचते ही भीड़ उत्तेजित हो गई। महादेव मरांडी के दुमका स्थित घर को भीड़ ने घेर लिया और तोड़-फोड़ डाला। इस बीच दुमका में तैनात मजिस्ट्रेट की पिस्तौल प्रेम प्रकाश हेम्ब्रम नामक एक युवक ने छीन ली और उनकी कनपटी पर रख दिया। मजिस्ट्रेट को आदेश दिया की सिपाही रास्ते से हट जाएं और ऐसा ही किया गया। भीड़ ने पुलिस की डेढ़ सौ राइफलें भी छीन ली थी, जो बाद में वापस कर दी गई।

Dishom Guru: लालू यादव की सरकार बनाने में शिबू सोरेन ने मदद कीः

मार्च 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी जनता दल को 125 सीटें मिली। जो 324 की संख्या में बहुमत संख्या कम थी। लालू प्रसाद ने माकपा, भाकपा, मासस, आईपीएफ और अन्य कांग्रेस विरोधी दलों का मोर्चा बना लिया और सरकार बन गई। इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा के 19 विधायकों का बड़ा योगदान रहा।

Dishom Guru: शिबू सोरेन की संसदीय राजनीतिक यात्राः

शिबू सोरेन ने 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वो चुनाव हार गए। बाद में 1980 में दुमका संसदीय सीट से उन्हें पहली बार सफलता मिली। फिर 1989, 1991 और 1996 में भी दुमका लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। 2002 में वो राज्यसभा जाने में सफल रहे। इसके बाद वर्ष 2004, 2009 और 2014 में फिर से एमपी बने। 2019 के चुनाव में दुमका से चुनाव हार जाने के बाद शिबू सोरेन तीसरी बार राज्यसभा के लिए चुने गए।

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