वर्ल्ड हेल्थ डे स्पेशलः
आज वर्ल्ड हेल्थ डे है। आज के दिन हम एक ऐसी बीमारी के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं, जिसने पूरी दुनिया को डरा दिया है।
डिप्थीरिया
दुनिया इसे डिप्थीरिया के नाम से जान रही है। दुनियाभर में डिप्थीरिया के केस तेजी से बढ़ रहे हैं।
इसे लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) ने चिंता जाहिर की है। डिप्थीरिया एक संक्रामक बीमारी है, जिसमें पेशेंट को समय पर इलाज न मिलने पर जान भी जा सकती है। इसे आम भाषा में लोग गलाघोंटू कहते हैं।
यह एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है, जो गले और नाक की भीतरी परत को नुकसान पहुंचाता है।
अगर यह इंफेक्शन ज्यादा पॉवरफुल है और समय पर इलाज नहीं मिला तो इससे खतरनाक टॉक्सिन्स(जहरीले पदार्थ) निकलने लगते हैं।
जो किडनी, लिवर और नर्वस सिस्टम भी डैमेज कर सकता है। 5 साल से कम उम्र के बच्चे और गर्भवती महिलाओं को इससे इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े के अनुसार कि भारत में साल 2005 से 2014 के बीच प्रतिवर्ष औसतन 4167 केस दर्ज किए गए, जिसमें 92 लोगों की मौत हो जाती थी।
इस दौरान दुनियाभर में मिल रहे डिप्थीरिया के कुल केस के आधे तो भारत में ही मिल रहे थे।
फिर साल 2018 में तेज स्पाइक आया और 8,788 केस दर्ज किए गए। इस साल 52 मौतें तो सिर्फ दिल्ली में हो गईं।
इस साल दुनियाभर में फिर से डिप्थीरिया के मामले सामने आ रहे हैं, इसलिए WHO ने पहले ही सतर्क किया है।
क्या है डिप्थीरियाः
डिप्थीरिया एक संक्रामक बीमारी है, जिससे श्वसन तंत्र प्रभावित होता है। इसके संक्रमण के चलते हार्ट अटैक की आशंका बढ़ जाती है।
कैसे फैलता हैः
यह बीमारी आमतौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलती है। अगर किसी चीज या वस्तु में बैक्टीरिया है तो उसे छूने से भी यह फैल सकती है।
संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने के दौरान उसके आसपास खड़े लोगों को भी डिप्थीरिया हो सकता है।
इसमें सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि कोविड की तरह शुरुआती दिनों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं।
इस दौरान भी इसके बैक्टीरिया संक्रमित व्यक्ति के जरिए फैल रहे होते हैं और संक्रमित व्यक्ति को नुकसान पहुंचा रहे होते हैं।
डाक्टरों के अनुसार इस बैक्टीरिया से गले में मोटी भूरे रंग की परत जम जाती है। इससे श्वसन तंत्र प्रभावित होता है।
यह धीरे-धीरे बढ़ती रहती है और हृदय को भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है।
डिप्थीरिया के लक्षणः
डिप्थीरिया सबसे पहले श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है, इसलिए इसके लक्षण गले से दिखने शुरू होते हैं।
फिर धीरे-धीरे इसका असर बाकी अंगो पर भी दिखता है। इसके बाद तेज बुखार होने लगता है।
शरीर का रंग नीला पड़ने लगता है। साथ ही, धुंधला दिखाई देने लगता है। इसके अलावा खांसी और जुकाम रहता है। साथ ही थकान और कमजोरी महसूस होने लगती है।
डिप्थीरिया का इलाजः
डिप्थीरिया के कारण कभी भी गंभीर स्थिति पैदा हो सकती हैं। इसलिए इसका पता लगते ही डॉक्टर जल्द से जल्द इलाज शुरू कर देते हैं।
डाक्टरों के अनुसार इसमें सबसे पहले एंटीटॉक्सिन इंजेक्शन दिया जाता है। ताकि बैक्टीरिया ने शरीर में जो जहरीले पदार्थ छोड़े हैं, उसका प्रभाव खत्म किया जा सके।
इसके बाद संक्रमण को काबू करने के लिए एरिथ्रोमाइसिन, पेनिसिलिन जैसे एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं।
आमतौर पर इलाज के दौरान मरीज को अस्पताल या घर में क्वारंटाइन करके रखा जाता है।
ताकि दूसरे लोगों को इसके संपर्क में आने से बचाया जा सके। अगर डॉक्टर को यह डर है पेशेंट के करीबी लोगों में भी इसके बैक्टीरिया पहुंच गए हैं तो वह उन्हें भी एंटीबायोटिक्स दे सकता है।
डिप्थीरिया से बचाव के उपायः
डिप्थीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं और वैक्सीन से रोका जा सकता है।
डिप्थीरिया के लिए बनी वैक्सीन का नाम DTaP है। यह आमतौर पर पर्टुसिस और टेटनस के टीकों के साथ दी जाती है।
डिप्थीरिया से बच्चों को ज्यादा खतरा होता है, क्योंकि उनकी इम्यूनिटी विकसित नहीं होती है। इसलिए बच्चों को 2 महीने की उम्र से ही इसका टीका देना शुरू कर दिया जाता है।
इसे 2 महीने, 4 महीने, 6 महीने, 15 से 18 महीने एवं 4 से 6 साल के बीच 5 बार में दिया जाता है।
इसके टीके का असर सिर्फ 10 साल तक ही रहता है। इसलिए 12 साल की उम्र के आसपास फिर से इसका टीका लगवाने की जरूरत पड़ती है। इसके बाद की उम्र में भी बूस्टर शॉट लिए जा सकते हैं।
इन बातों का रखें ख्यालः
• डिप्थीरिया शरीर को बहुत कमजोर कर देता है, इसलिए इससे उबरने के लिए ज्यादा से ज्यादा आराम की जरूरत होती है।
• अगर इसका असर किसी के हदय पर भी हुआ है तो उसे किसी भी तरह की फिजिकल एक्टिविटी से बचना चाहिए।
• इससे सबसे अधिक नुकसान गले को होता है इसलिए लंबे समय तक लिक्विड या नरम खाना ही खाना चाहिए।
• अगर घर में कोई एक व्यक्ति संक्रमित है तो उसे क्वारंटाइन कर सकते हैं, बाकी लोग नियमित रूप से हाथ धुलते रहें।
• 10 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों को हर 10 साल में इसका टीका लगवाना चाहिए, इससे आपकी आने वाली पीढ़ियां भी सुरक्षित रहेंगी।
• एक बार डिप्थीरिया ठीक हो जाने के बाद इसके वैक्सीनेशन की सीरीज पूरी कर लेनी चाहिए, क्योंकि दूसरे इंफेक्शन की तरह इसमें ऐसा नहीं कि जिंदगी भर के लिए इम्यूनिटी विकसित हो जाएगी।
अगर टीके की सीरीज पूरी नहीं हुई है तो कभी भी फिर से डिप्थीरिया हो सकता है।
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