विजय केसरी
दीपावली के पहले मनाया जाने वाला धनतेरस अपने आप में एक अनूठा पर्व बनता चला जा रहा है। यह पर्व संपूर्ण देशवासियों को एक सूत्र में बांधता चला जा रहा है। इस दिन हर धर्म जाति और वर्ग लोग एक साथ बड़ी संख्या में आरोग्य और लक्ष्मी की कामना को लेकर सोना, चांदी , हीरा, तांबा,पीतल, स्टील आदि के बने सामानों को खरीद करते देखे जा सकते हैं। साथ ही इस दिन लोग समृद्धि और आरोग्य की कामना के लिए भगवान धनवंतरी और माता लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं।
इस दिन लोग सोना, चांदी, पीतल, तांबा तथा अन्य अनमोल धातु के बने सामान खरीदते हैं। लोगों में ऐसी मान्यता बन गई है कि इस दिन मूल्यवान धातु खरीदने पर माता लक्ष्मी की कृपा साल भर उन पर बनी रहेगी। इसलिए इस परंपरा के वाहक धनतेरस पर्व पर हर वर्ष कुछ न कुछ चीजें जरूर खरीदने हैं। बाजारवाद के दौर में इस परंपरा के प्रचार-प्रसार में लगभग सभी निर्माता जुटे हैं।
उद्योगपति एवं व्यवसायी गण अपने-अपने उपभोक्ता सामग्रियों की जमकर प्रचार प्रसार करते देखे जाते हैं । देश भर में करोड़ों लोगों को धनतेरस दिन खरीद करते देखे जा सकते हैं। यह परंपरा भारत से निकलकर विश्व के कई हिस्सों में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। अप्रवासी भारतीय विश्व के जिन देशों में भी बसे हुए हैं। वे इस दिन सोना चांदी खरीदना कदापि नहीं भूलते हैं। इन अप्रवासी भारतीयों के देखा देखी उन देशों के लोग भी इस पवित्र दिन पर कुछ ना कुछ खरीदी करते देखे जा रहे हैं।
जबकि आज से लगभग 40-50 वर्ष पूर्व ऐसा देखने को मिलता था कि नगर के कुछ धनवान लोग धनतेरस के दिन सोना, चांदी, पीतल और तांबा के बने सामान खरीद करते देखे जाते थे। उसे समय भारत के गांवों में इसका प्रचलन नहीं के बराबर था।
बाद के दिनों में जैसे-जैसे धनतेरस का प्रचार प्रसार फैलता गया लोग पीतल, तांबा,कांसा के बर्तन के साथ सोना-चांदी और हीरा के आभूषण भी खरीदने लगे। ऐसी मान्यता है कि खरीदारी के लिए है यह दिन बेहद शुभ है । इसलिए लोग इस दिन खरीदारी करने के लिए काफी दिनों से धन बचाकर रखते हैं। प्रचार प्रचार किस दौर में लोग धनतेरस के दिन अन्य उपभोक्ता सामग्रियां भी खरीदने लगे हैं।
टीवी, मोबाइल, फ्रिज, सोफा, मोटरसाइकिल कार आदि सामग्रियां भी ऐश्वर्य की प्रतीक बन चुकी हैं । इसलिए लोग इसकी भी खरीदारी करते देखे जाते हैं ।
समय के साथ धनतेरस की खरीदारी के क्षेत्र में काफी विस्तार होता चला जा रहा है। अब ग्रामीण क्षेत्र के भी काफी उपभोक्ता इस परंपरा से जुड़ते चले जा रहे हैं। देश के अर्थ शास्त्रियों का कथन है कि जितना उपभोक्ता सामानों की खरीदारी धनतेरस के दिन होती है, अन्य दूसरे दिन नहीं होती है। देश भर में अरबों रूपयों की खरीदारी होती है। एक ओर व्यवसायी गण लाभान्वित होते हैं,तो दूसरी ओर सरकार को भी काफी राजस्व की प्राप्ति होती है। खरीदार भी उपभोक्ता सामग्री खरीद कर मानसिक रूप से यह मान लेते हैं कि साल भर उनके ऊपर माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की कृपा बनी रहेगी।
मिला-जुला का यह धनतेरस सबको संतुष्टि प्रदान करने वाला पर्व बन गया है। इस पर्व से एक बड़ा अच्छा संदेश यह उभर कर सामने आया है कि धनतेरस समाज में व्याप्त संप्रदायवाद और जातिवाद की दीवार को ध्वस्त करता चला जा रहा है। इस दिन समाज के हर धर्म, पंथ व विचार के मानने वाले लोग अपने-अपने घरों में सुख,समृद्धि, आरोग्य और शांति की कामना के लिए सोना, चांदी, हीरा, पीतल, तांबा, कांसा के बर्तन,आभूषण सहित अन्य उपभोक्ता सामग्री खरीदते देखे जाते हैं। धनतेरस से संबंधित कई कथाएं प्रचलित है।
इन कथाओं में एक प्रचलित कथा यह है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था। ये आरोग्य के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। ये भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भी माने जाते हैं। इसलिए इस पर्व को धनतेरस के साथ धन त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है । हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णन है कि आरोग्य के देवता धनवंतरी ऋषि भगवान विष्णु के अवतार हैं । आरोग्य की कामना को लेकर जो भी याचक भगवान धन्वंतरि की आराधना करते हैं, उन्हें धनवंतरी ऋषि के साथ भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है । याचक आजीवन आरोग्य रहते हैं । आगे हमारे शास्त्रों में वर्णन है कि भगवान विष्णु सभी का कल्याण चाहने वाले देवता हैं ।कल्याण का यहां अर्थ है, मानवीय जीवन में आरोग्य, सुख, समृद्धि और शांति का वास होना।
मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि और शांति पूर्ण रूप से तभी स्थापित हो सकती है, जब वह आरोग्य हो। मनुष्य कई प्रकार की बीमारियों से घिरा हुआ हो, उसके पास ढेर धन हो, तब उस ढेर सारे धन का क्या मतलब रह जाता है? इसलिए मनुष्य के जीवन की पहली प्राथमिकता आरोग्य होनी चाहिए। आरोग्य की अवस्था ही सच्चे अर्थों में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्ति की है। इसलिए भगवान विष्णु ने अपना रूपांतरण भगवान धन्वंतरी के रूप में किया ।
उन्होंने प्रथम कल्याण की कामना को आरोग्य से जोड़ा । धन मनुष्य को ऐश्वर्य प्रदान करता है। आरोग्य होकर, उसका उपभोग कर अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति महसूस करता है। इस संदर्भ में विचारणीय यह है कि आज के भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग धन प्राप्ति के लिए ना जाने क्या-क्या गोरख धंधे कर रहे हैं ? धन की प्राप्ति के लिए लोगों की दिनचर्या पूरी तरह चरमरा सी गयी है। धन कमाने के लिए लोगों का खाना पीना तक छूट जाता है । लोग दिन और रात रात भर काम में जुटे रहते हैं। काम करना बुरी बात नहीं है।
लेकिन सिर्फ और सिर्फ धन के लिए इतना काम करना, लोगों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी बात नहीं है। इतना कुछ करने के बाद लोग धन तो जरुर कमा लेते हैं। तब तक उनका आरोग्य छिन जाता है । लोगों की यह सबसे बड़ी भूल है। आरोग्य से बड़ा जीवन में कोई दूसरा धन नहीं है। धनतेरस पर्व हम सबों को आरोग्य धन प्राप्ति की सीख प्रदान करता है। वहीं दूसरी ओर लोग धन कमाने की लालसा में 20 – 25 वर्ष की उम्र से उच्च रक्तचाप, शुगर, हार्ट व अन्य गंभीर बीमारियों की दवाई खाने लगते हैं । लोग धन जरूर कमा लेते है, किंतु उस धन को भोगने के लिए शरीर उपयुक्त नहीं होता है। धनतेरस के दिन यह विचार करने की जरूरत है कि शरीर को आरोग्य रखकर ही धन अर्जन करना चाहिए। लोगों को सही मार्ग पर चलकर ही धनोपार्जन करना चाहिए।
गलत मार्ग पर चलकर धन उपार्जन नहीं करना चाहिए। इसी कामना को लेकर भगवान विष्णु ने भगवान धन्वंतरी के रूप में इस धरा पर अवतार लिया था। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन से कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को ही माता लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था। जिनके हाथों में स्वर्ण कलश था। माता लक्ष्मी धन प्रदान करने वाली देवी के रूप में विख्यात है। इसी दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव हुआ था। उनके हाथों में भी स्वर्ण कलश था। जो आरोग्य प्रदान करने वाला था। इन्हीं दोनों बातों के कारण लोग धनतेरस का पर्व मनाते चले आ रहे हैं । अब आगे यह प्रश्न उठता है कि मनुष्य के जीवन में धन और आरोग्य की क्या उपयोगिता है । इस संबंध में हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने मान्यता प्रदान की थी की लक्ष्मी के आह्वान के पहले आरोग्य की प्राप्ति ही श्रेयस्कर है।
धन प्राप्त करने के लिए कर्मों का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है। कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों को हरण करने वाला देव है। किंतु हमारे ऋषियों ने प्रदान की थी उस मार्ग पर नहीं चलना लोगों की बड़ी भूल है। धन और आरोग्य का मतलब कदापि यह नहीं लगाना चाहिए कि इसका उपयोग स्वयं तक ही सीमित ना हो, बल्कि समाज के कल्याण के लिए भी हो। समाज में व्याप्त असमानता यह दर्शाती है कि धन और ऐश्वर्य और आरोग्य का इस्तेमाल स्वयं के लिए ज्यादा हो रहा है। यह बेहद चिंता की बात है। ईश्वर की कृपा प्राप्त इस धन रूपी प्रसाद को समाज की गरीबी मिटाने और खुशहाली लाने में खर्च करना सच्चे अर्थों में धनतेरस है। इस संबंध में श्री सूक्त में लक्ष्मी के स्वरूपों का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है । प्रकृति की रक्षा आरोग्य की रक्षा करने के समान है। मनुष्य को निस्वार्थ होकर प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। धन भय और चिंता से मुक्ति दिलाता है। धन मनुष्य को आरोग्य और लंबी उम्र प्रदान करता है । इस संदर्भ में ध्यातव्य यह कि धन का उपार्जन सत्य से किया गया हो।
एक प्रचलित कथा से इस आलेख का अंत करना चाहता हूं। धन खोया तो कुछ नहीं खोया। स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोया। अगर चरित्र खोया तो सब कुछ खो दिया । कुबेर धन के देवता हैं,किंतु आसुरी शक्तियों के हरण को उपदेश देते हैं । धन कुबेरों को प्राप्त धन पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों का प्रतिफल है । इसलिए धन को समाज कल्याण और दूसरे को आरोग्य बनाने में लगाना चाहिए। ऐसी मान्यता हिंदू धर्म ग्रंथो में वर्णित है। धन और आरोग्य की रक्षा सच्चे अर्थों में सत्य मार्ग पर चलकर और जन कल्याण कर ही की जा सकती है। इससे मनुष्य का यह लोक और परलोक भी सुधरता है। आगे धीरे-धीरे कई जन्मों के सुखों को भोंकते हुए अंत में मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो पाता है।