क्या है कथा, महत्व, शयनी एकादशी व्रत के लाभ और नियम
रांची। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसी एकादशी के दिन से चतुर्मास व्रत का भी आरंभ होता है।
इस एकादशी की कथा का जिक्र पद्पुराण में किया गया है और इसके पुण्य एवं लाभ का भी जिक्र किया गया है।
राजा बलि दिया वचन पूरा करने पाताल जाते हैं भगवान
शयनी व्रत को देव शयनी और पद्मनाभ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुराण में बताया गया है कि जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम और महत्व है।
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की जो एकादशी होती है उस दिन से 4 महीने तक भगवान विष्णु अपने एक रूप में पाताल लोक में राजा बलि को दिए वचन के अनुसार निवास करते हैं और अपने चतुर्भुज रूप में बैकुंठ में शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं।
इस एकादशी के दिन से 4 महीने तक भगवान के शयन में चले जाने से इस एकादशी को शयनी, देवशयनी एकादशी, पद्मनाभ, महाएकादशी और थोली एकादशी कहते हैं।
देवशयनी एकादशी कथा राजा बलि की
देवशयनी एकादशी के विषय में पद्मपुराण में बताया गया है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु राजा बलि को दिए वचन को निभाने के लिए हर साल पाताल लोक में वामन रूप में पहुंचते हैं। और इसी रूप में पाताल में 4 महीने रहते हैं।
दरअसल वामन अवतार के समय जब वामन बने भगवान विष्णु ने राजा बलि से चार पग सब कुछ ले लिया तब राजा बलि ने भगवान से कहा कि प्रभु सब कुछ मैंने आपको सौंप दिया है अब मुझ पर कृपा कीजिए।
भगवान ने राजा बलि की दानशीलता और भक्ति को देखते हुए वरदान मांगने के लिए कहा। राजा बलि ने कहा कि प्रभु आप मेरे साथ पाताल लोक में निवास करें। भगवान भक्त की विनती को टाल नहीं पाए।
ऐसे में देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं और राखी के बंधन में राजा बलि को बांधकर उन्होंने भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त करवाया।
इसी समय भगवान ने राजा बलि को वरदान दिया था कि वह हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल देव प्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में रहेंगे। इस समय को चतुर्मास कहते हैं।
देवशयनी एकादशीः कथा शंखचूड़ की
एक अन्य कथा है कि भगवान विष्णु का शंखचूड़ नामक असुर से वर्षों युद्ध चला। इस युद्ध में भगवान काफी थक गए।
तब देवताओं ने आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की और उनसे निवेदन किया कि आप काफी थक गए हैं अतः आप शयन करें और जब तक आप शयन करें सृष्टि का काम रूप को सौंप दें।
देवताओं की विनती पर भगवान देवलोक के 4 प्रहर जो पृथ्वी के 4 महीने बराबर होता है शयन करने चले गए। इस घटना के बाद से हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी का व्रत पूजन किया जाने लगा।
देवशयनी एकादशी कथा राजा मान्धाता की
देवशयनी एकादशी के प्रभाव और लाभ को लेकर एक कथा राजा मान्धाता की है। राजा बहुत ही धर्मात्मा थे लेकिन एक बार कई वर्षों तक इनके राज्य में बरसात नहीं हुई और सूखा पड़ गया। जनता व्याकुल हो गई और राजा परेशान।
ऐसे में इन्हें एक ऋषि ने देवशयनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। राजा ने संपूर्ण प्रजा के साथ देवशयनी एकादशी का व्रत किया जिससे इनके राज्य में खूब बरसात हुई और फसलें लहलहा उठी।
इसके बाद से राजा ने हर साल अपनी प्रजा से इस एकादशी के व्रत करने का आदेश दिया। तभी से आमजनों में इस एकादशी का व्रत प्रचलित हो गया।
क्या करें और क्या नही
चातुर्मास में विष्णु जी विश्राम करते हैं और वे हमारे शुभ काम में उपस्थित नहीं हो पाते हैं, इस वजह से देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक मांगलिक कामों के लिए शुभ मुहूर्त नहीं रहते हैं।
चातुर्मास में भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा खासतौर पर करनी चाहिए। पूजा-पाठ के साथ ही विष्णु जी की कथाएं पढ़ें-सुनें।
आप चाहें तो श्रीमद् भागवत कथा, विष्णु पुराण का पाठ कर सकते हैं। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।
सूर्य को जल चढ़ाने के साथ दिन की शुरुआत करनी चाहिए। इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरें और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करते हुए सूर्य को जल चढ़ाएं।
अभी बारिश के दिन हैं और अगर सुबह सूर्य देव के दर्शन नहीं हो रहे हैं तो पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सूर्य का ध्यान करते हुए जल अर्पित करना चाहिए।
भगवान शिव को जल और दूध चढ़ाना चाहिए। शिवलिंग चंदन का लेप करें। बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल, हार-फूल से शिवलिंग का श्रृंगार करें।
धूप-दीप जलाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। शिव जी की पूजा के साथ शिव जी की कथाएं, शिवपुराण का पाठ भी कर सकते हैं।
जरूरतमंद लोगों धन, अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल, छाते और खाने का दान करें। किसी गौशाला में गायों की देखभाल के लिए धन का दान करें।
भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप बालगोपाल का पंचामृत से अभिषेक करें। अभिषेक के बाद भगवान को पीले चमकीले वस्त्र अर्पित करें।
हार-फूल से श्रृंगार करें। तुलसी के साथ माखन-मिश्री का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। श्रीकृष्ण की पूजा में कृं कृष्णाय नम:, राधाकृष्ण मंत्र का जप करना चाहिए।
हनुमान जी के सामने दीपक जलाएं और सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें। श्रीरामचरितमानस का अपने समय के अनुसार पाठ कर सकते हैं। हनुमान जी के सामने राम नाम का जप भी सकते हैं।
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