Tuesday, June 24, 2025

जनसंख्या के आधार पर लोकसभा व विधानसभा की सीटों का निर्धारण है परिसीमन [Delimitation is the determination of Lok Sabha and Assembly seats on the basis of population]

बढ़ती जनसंख्या के आधार पर समय-समय पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे हमारे लोकतंत्र में आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके और सभी को समान अवसर मिल सके। इसलिए लोकसभा या विधानसभा सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित या उनका पुनर्निर्धारण किया जाता है।

इस पूरी प्रक्रिया के तीन मुख्य उद्देश्य है

-चुनावी प्रक्रिया को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने के लिए परिसीमन जरूरी होता है। हर राज्य में समय के साथ जनसंख्या में बदलाव होते हैं, ऐसे में बढ़ती जनसंख्या के बाद भी सभी का समान प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निधारण होता है।

-बढ़ती जनसंख्या के मुताबिक निर्वाचन क्षेत्रों का सही तरीके से विभाजन हो सके। ये भी परिसीमन प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। इसका उद्देश्य भी यही है कि हर वर्ग के नागरिक को प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिले।

-चुनाव के दौरान आरक्षित सीटों की बात कई बार की जाती है। जब भी परिसीमन किया जाता है, तब अनुसूचित वर्ग के हितों को ध्यान में रखने के लिए आरक्षित सीटों का भी निर्धारण करना होता है।

जनगणना पर आधारित होता है परिसीमन

भारत में परिसीमन की पूरी प्रक्रिया जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होती है। यह इसलिए किया जाता है क्योंकि जनसंख्या में लगातार बदलाव होता रहता है और नये परिसीमन से यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी लगभग समान हो।

जनगणना सरकार द्वारा अधिकृत और विस्तृत डेटा प्रदान करती है , जो सटीक परिसीमन के लिए आवश्यक होता है। संविधान में प्रावधान किया गया है कि हर परिसीमन के लिए जनगणना के बाद नये आंकड़ों का उपयोग किया जायेगा। भारत में परिसीमन की यह परंपरा 1951 की पहली जनगणना से शुरू हुई, जब संविधान के तहत पहली बार परिसीमन आयोग गठित किया गया।

झारखंड विधानसभा की सीटों और यहां की लोकसभा की सीटों का परिसीमन होल्ड पर
साल 2007 में देश भर में विधानसभा और लोकसभा की सीटों का परिसीमन हुआ। यह परिसीमन 2009 के लोकसभा चुनाव से देशभर में लागू हो गया।

तब झारखंड में भी लागू होना था। लेकिन यहां के आदिवासी ( एसटी) विधायकों ने विरोध किया। विरोध का कारण यह था कि परिसीमन प्रस्ताव लागू होने के बाद झारखंड विधानसभा में एसटी की सीटें घट जाएंगी। जब परिसीमन रिपोर्ट लागू हो रहा था उस समय मधु कोड़ा झारखंड के मुख्यमंत्री थे।

मधु कोड़ा सरकार कांग्रेस और झामुमो के समर्थन से चल रही थी। केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। सोनिया गांधी यूपी सरकार की अध्यक्ष थीं। मधु कोड़ा के नेतृत्व में झारखंड के आदिवासी नेताओं और विधायकों ने सोनियां गांधी और मनमोहन सिंह से मुलाकात की।

झारखंड में परिसीमन आयोग की रिपोर्ट लागू न करने के लिए जोर दिया गया। नतीजतन, झारखंड में परिसीमन आयोग की रिपोर्ट लागू नहीं हुई। जबकि पूरे देश में लागू हो गई। झारखंड विधानसभा सीटों का परिसीमन अब भी होल्ड पर है। कभी भी लागू हो सकता है

झारखंड के संदर्भ में भारत परिसीमन आयोग-2007 की रिपोर्ट अभी होल्ड पर है। अगर इसका अनुपालन होता है तो अनुसूचित जाति ( एसटी) को राजनीतिक फायदा होगा। झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। एससी के लिए अभी सिर्फ पलामू सीट आरक्षित है। 2007 के प्रस्ताव में पलामू के साथ-साथ चतरा को भी एससी के लिए आरक्षित किया जा सकता है।

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