नई दिल्ली,एजेंसियां: भारत की पहली मिडगेट पनडुब्बी बनकर तैयार हो चुका है। इस पनडुब्बी को मझगांव डॉक शिपयार्ड लिमिटेड (MDL) ने बनाया है। इसका नाम एरोवाना (Arowana) है।
जानकारी के लिए आपको बताते चलें कि इसकी डिजाइन और निर्माण दोनों ही MDL ने किया है।
इस पनडुब्बी को प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट के तौर पर विकसित किया गया है ताकि दुनिया को यह पता चल सके कि भारत ऐसी पनडुब्बी खुद बना सकता है।
साथ ही इसका फायदा सिर्फ समुद्री जांच-पड़ताल में ही नहीं बल्कि चुपचाप समंदर के अंदर युद्ध लड़ने की काबिलियत और क्षमता को बढ़ाना भी है।
यह अंडरवाटर वारफेयर टेक्नोलॉजी का पुख्ता प्रमाण है। इसके जरिए कम कमांडो के साथ किसी भी तरह का मिलिट्री ऑपरेशन या खुफिया मिशन किया जा सकता है।
एरोवाना (Arowana) की विशेषता
एरोवाना गहरे और छिछले पानी दोनों में गोता लगा सकती है। तैर सकती है। यह भारतीय नौसेना के युद्धपोतों और अन्य पनडुब्बियों से जुड़कर नेटवर्किंग के जरिए दुश्मन को चकमा दे सकती है।
साथ ही कई तरह के मिशन को अंजाम दे सकती है। यह स्टेल्थ है और बेहद एक्टिव है।
इसकी लंबाई करीब 12 मीटर है।
इसकी गति करीब 2 नॉट है।इसमें लिथियम आयन बैटरी लगी हैं। प्रेशर हल स्टील है। साथ ही स्टीयरिंग कंसोल है।
मिडगेट सबमरीन आमतौर पर 150 टन के अंदर की होती है। इसमें एक, दो या कभी-कभी छह या 9 लोग बैठकर किसी मिलिट्री मिशन को अंजाम दे सकते हैं।
ये छोटी पनडुब्बी होती है। इसमें लंबे समय तक रहने की व्यवस्था नहीं होती। यानी कमांडो इसमें बैठकर जाएं और मिशन पूरा करके वापस आ जाएं।
आमतौर पर इनका इस्तेमाल कोवर्ट ऑपरेशन के लिए होता है। ये किसी भी बंदरगाह पर पेनेट्रेशन के काम आती हैं।
ये मिशन कम समय के लिए तेजी से पूरा करने के लिए होते हैं। इसलिए ऐसी छोटी पनडुब्बियों का इस्तेमाल करते हैं। ताकि दुश्मन को इनके आने का पता आसानी से न चल पाए।
मिडगेट पनडुब्बियों का इस्तेमाल सिर्फ मिलिट्री नहीं करती बल्कि इनका इस्तेमाल व्यावसायिक भी होता है।
जैसे अंडरवाटर मेंटेनेंस खोजबीन, आर्कियोलॉजी, साइंटिफिक रिसर्च आदि। अब तो इनका इस्तेमाल समंदर के अंदर पर्यटन के लिए भी किया जा रहा है।
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