Bihar Election:
बिहार विधानसभा चुनाव के नामांकन का दौर पूरा हो चुका है। अब प्रत्याशी जोर शोर से प्रचार अभियान में जुट गये हैं। परंतु महागठबंधन में कुछ भी ठीक नहीं लग रहा। सीटों के बंटवारे की पेंच अनसुलझी ही रह गई। इसका नतीजा ये हुआ कि बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों के लिए महागठबंधन की ओर 261 प्रत्याशी उतार दिये गये हैं। मतलब साफ है करीब एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर महागठबंधन में शामिल दलों के बीच आपस में ही टकराव देखने को मिल सकता है।
खास तौर पर कांग्रेस और राजद आमने-सामने हो गये हैं। इसके बाद से ही दोनों दलों के नेताओं के बीच आपसी सहमति नहीं बन पा रही है। दोनों दलों के बीच हल्क स्तर पर तकरार की बातें सामने आ रही हैं। महागठबंधन के दलों में सीटों के बंटवारे को लेकर खिच खिच तो जारी थी ही, अब घोषणा पत्र पर भी मामला फंसदा दिख रहा है।
आम तौर पर सभी पार्टियां अपना-अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करती हैं। इसके साथ ही वे जिस भी गछबंघन में होती हैं, उस गठबंधन का एक संयुक्त घोषणा पत्र भी जारी करने की परंपरा रही है। इस घोषणा पत्र में सभी दलों द्वारा आपसी सहमति से तय किये गये चुनावी वादे शामिल होते हैं, जिसे जनता के बीच रखा जाता है। परतु बिहार चुनाव को लेकर महागठबंधन आपसी खींचतान के कारण अपना संयुक्त घोषणा पत्र तक तैयार नहीं कर सका है।
महागठबंधन में शामिल दलों को भी पता है कि इससे जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं जायेगी। इस चिंता से भी महागठबंधन के दलों के माथे की लकीरें गहरी हो गई हैं। खास तौर पर कांग्रेस ज्यादा परेशान दिख रही है। पहले, तो कांग्रेस ने अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए सीटों के बंटवारे के लिए राजद द्वारा तैयार फार्मूला से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सहमत नहीं हुए और उन्होंने राजद के विरुद्ध जाकर अपने प्रत्याशी उतारें।
वहीं महागठबंधन में शामिल वामदल सीपीआइएमएल भी अब तक करीब 19 प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतार चुका है। अब स्थिति यह है कि कई सीटों पर राजद, कांग्रेस और वामदलों के प्रत्याशी आमने-सामने हो गये हैं। हालांकि महागठबंधन के नेता फ्रेंडली फाइट बता रहे हैं।
परंतु कांग्रेस की परेशानी यह है कि वह बिना किसी के सहयोग के आगे नहीं बढ़ सकती। ये बात कांग्रेस आलाकमान भी भली भांति जानता है। आज किसी भी राज्य में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि इसकी बुनियाद ही हिली हुई है। यही कारण है कांग्रेस ने अपना वजूद बनाये रखने के लिए बिहार में राजद से समझौता कर चलना ही बेहतर समझा।
अब जब सीट बंटवारे को लेकर दरार पड़ चुकी है, विरोधी भी मजे ले रहे हैं। कांग्रेस इस स्थिति से निकलना चाहती है। इसलिए उसने एक बार राजद के साथ समझौते की कोशिश शुरू कर दी है। अब क्राइसिस मैनेजमेंट के लिए पार्टी के संकट मोचक और वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को बिहार भेजा जा रहा है। वह बिहार आकर लालू-राबड़ी समेत तेजस्वी यौर अनेय राजद के बड़ नेताओं से भी मिलेंगे। आज पूरे बिहार में इस सूचना से चर्चा है कि कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है और एक बार फिर समझौते के लिए राजद की ओर हाथ बढ़ाया है।
क्राइसिस मैनेजमेंट के लिए अशोक गहलोत पहुंच रहे हैं। कांग्रेस किसी भी राज्य में सहयोगी दलों को नाराज करने की स्थिति नहीं है। अशोक गहलत पटना में राजद के साथ समझौते के प्रयास के साथ ही आपसी गतिरोध को दूर करने की कोशिश भी करेंगे।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उनका यह प्रयास कितना रंग लाता है।
नोटः लेखक आइडीटीवी इंद्रधनुष के संपादक हैं…
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