रांची। कहते हैं अगर लगन और मेहनत हो तो पत्थर से भी पानी निकाला जा सकता है। यही साबित किया रांची विश्वविद्यालय के मुंडारी भाषा के टॉपर कुलदीप डांग ने। पढ़ने की ललक ऐसी थी कि कभी खेतों में मजदूरी किया और इसके बाद चौकीदारी की।
यूजी की पढ़ाई करने के लिए कुलदीप डांग ने सिमडेगा में खेतों में काम किया, वहीं पीजी की पढ़ाई पूरी करने के लिए चौकीदारी की। इनकी मेहनत ऐसी कि आज इनके हाथों में स्वर्ण पदक है और चेहरे पर खुशी। मां ने कहा अब बेटा हमारी देखभाल करेगा।
पीजी में पढ़ने के लिए नहीं था पैसा, किया चौकीदारी
कुलदीप ने बताया कि स्नातक की पढ़ाई मेरी सिमडेगा कॉलेज से हुई है। उस दौरान में सुबह कॉलेज में पढ़ाई करता था, इसके बाद खेतों में काम करते हुए शाम को सब्जी बेचने बाजार जाता था।
इसके बाद घर आकर पढ़ाई करता था। स्नातक के बाद मेरे पास पीजी की पढ़ाई करने के लिए पैसे नहीं थे। इसके बाद मैं ओड़शा में चौकीदारी करने लगा और कुछ पैसे जमा होने पर पीजी मुंडारी विभाग में नामांकन लिया और आज इसी मेहनत का मुझे फल मिला। कुलदीप ने कहा कि अब मुझे लेक्चरर बनना है और मां की सेवा करनी है।
इसे भी पढ़ें
मायूसी में बीतेगी रांची विश्वविद्यालय के आवश्यकता आधारित सहायक प्राध्यापकों की होली