भीष्म साहनी
प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी की जिंदगी एक प्रखर साहित्यकार और एक गंभीर अध्येता की जिंदगी है।
जीविका के लिए उन्होंने जहां कॉलेज में पढ़ाया वहीं फिल्मों में अभिनय भी किया। शोध कार्य में गहरी रूचि होने के कारण उन्होंने अपना शोध कार्य भी पूरा किया और रूस में अनुवादक के तौर पर भी काम किया।
संक्षेप में कहें तो भीष्म साहनी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और उन्होंने कई क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।
एक कहानीकार, उपन्यासकार और नाटककार होने के साथ वे एक सशक्त अभिनेता भी थे।
उन्होंने हिंदी कथा लेखक, नाटककार, अनुवादक और एक शिक्षक के तौर पर हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले मशहूर लेखक भीष्म साहनी ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और अपनी जीवन यात्रा से कई लोगों को प्रेरित किया।
अविभाजित भारत में 8 अगस्त, 1915 को रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मे डॉ. साहनी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर से ही पूरी की।
इसके बाद उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज से स्नातक में पढ़ाई की। डॉ. साहनी अंग्रेजी साहित्य में एमए थे।
उन्होंने साल 1935 में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी विषय में एमए की परीक्षा पास की और डॉ इन्द्रनाथ मदान के निर्देशन में ‘कंसेप्ट ऑफ द हीरो इन द नॉवल’ विषय पर शोध कार्य किया।
पढ़ाई के अलावा, साहनी को कॉलेज में नाटक, वाद-विवाद और हॉकी में रुचि थी। इतना ही नहीं, वह बहुभाषी थे और हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, संस्कृत, रूसी और उर्दू भाषाएं जानते थे।
साल 1958 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। अपने जीवन काल में 100 से अधिक लघु कथाएं और कई नाटक लिखने वाले साहनी ने साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।
मार्च 1947 में जब रावलपिंडी में सांप्रदायिक दंगे हुए। इस दौरान उन्होंने राहत समिति में भी काम किया।
1947 में देश के विभाजन के बाद 14 अगस्त, 1947 को भारत आने वाली आखिरी ट्रेन से वह रावलपिंडी से आ गए और भारत में ही रहने का फैसला किया।
पद्म भूषण सम्मान से किया गया सम्मानित
मशहूर लेखक भीष्म साहनी को उनके अभूतपूर्व लेखन के लिए साल 1979 में शिरोमणि लेखक पुरस्कार, 1975 में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, इसी वर्ष उनको तमस के लिए ही उत्तर प्रदेश सरकार पुरस्कार, उनके नाटक हानुश के लिए 1975 में मध्य प्रदेश कला साहित्य परिषद पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इसके अलावा उनको साल 1980 में एफ्रो-एशिया राइटर्स एसोसिएशन के लोटस अवॉर्ड और 1983 में सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
हालांकि, साल 1998 में पद्मभूषण अलंकरण से भी विभूषित होने वाले भीष्म साहनी 11 जुलाई, 2003 को इस संसार को अलविदा कह गए।
डॉ साहनी ने अपनी आजीविका के लिए कुछ समय के लिए पढ़ाने का भी काम किया। उन्होंने अंबाला के एक निजी कॉलेज में और बाद में वह अमृतसर के खालसा कॉलेज में पढ़ाने लगे।
इस दौरान उन्होंने कॉलेज और विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के संगठनों में सक्रिय हो गए। हालांकि, बाद में मामूली आधार पर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन शिक्षक संघ ने उन्हें ऑल पंजाब कॉलेज और यूनिवर्सिटी टीचर्स यूनियन के महासचिव के रूप में चुना।
साल 1949 में वह अमृतसर के खालसा कॉलेज में 182 रुपये प्रति माह के अच्छे वेतन के साथ एक अंग्रेजी के शिक्षक के तौर पर नौकरी पाने में कामयाब रहे।
भीष्म साहनी की उनकी सबसे लोकप्रिय और कालजयी रचना ‘तमस’ के लिए उनको पूरा साहित्य जगत याद करता रहेगा।
साहनी की यह रचना भारत और पाकिस्तान के विभाजन पर आधारित है। इस उपन्यास का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
उनके इस उपन्यास के लिए साल 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
डॉ साहनी ने हमेशा अपने लेखन में मानव मूल्यों को स्थापित किया, जिसके कारण उन्हें साहित्य जगत में आदर्शवादी लेखक भी कहा जाता है।
भीष्म साहनी के मन-मस्तिष्क में ‘तमस’ के लेखन बीज पड़वाने में उनके बड़े भाई बलराज साहनी का बहुत बड़ा योगदान था।
प्रमुख रचनाएं
• कहानी संग्रहः मेरी प्रिय कहानियां, भाग्यरेखा, वांगचू, निशाचर
• उपन्यासः झरोखे, तमस, बसन्ती, मायादास की माडी, कुन्तो, नीलू निलिमा निलोफर
• नाटकः हनूश , माधवी , कबीरा खड़ा बजार में , मुआवजे
• आत्मकथाः बलराज मायब्रदर
• बालकथाः गुलेल का खेल
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