रांची। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लैंड स्कैम मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने जमानत दे दी।
हेमंत सोरेन 148 दिन बाद जेल से बाहर आ चुके हैं। अब ऐसे में सवाल है कि हेमंत सोरेन को हाईकोर्ट ने किस आधार पर जमानत दी है।
दरअसल जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय ने अपने 55 पेज के फैसले में कहा है कि ईडी का पूरा मामला संभावनाओं पर आधारित है।
इस केस में इस बात का कोई पक्का सबूत नहीं है कि 8.86 एकड़ जमीन के कब्जे में हेमंत सोरेन की कोई सीधी भूमिका है। यह भी साबित नहीं होता कि इसकी आड़ में याचिकाकर्ता ने कोई ‘अपराध’ किया है।
जमीन कब्जे के पुख्ता सबूत नहीं
जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय ने अपने फैसले में 53 नंबर पेज पर लिखा है कि किसी भी रजिस्टर/रेवेन्यू रिकॉर्ड में इस बात के पुख्ता सबूत नहीं हैं कि हेमंत सोरेन ने इस जमीन को खरीदा है या उस पर किसी तरह से कब्जा किया है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पीएमएलए एक्ट 2002 की धारा 50 के तहत कुछ लोगों ने बयान दर्ज कराए हैं। इन लोगों ने कहा है कि वर्ष 2010 में हेमंत सोरेन ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया।
बयान देनेवालों ने नहीं की शिकायत
कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि जिन लोगों ने ईडी के समक्ष बयान दिया कि याचिकाकर्ता ने उनकी जमीन पर दखल कर लिया, उन्होंने इसके खिलाफ कहीं शिकायत नहीं की।
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता जब सत्ता से बाहर था, तब अपनी जमीन से बेदखल किए गए ये लोग संबंधित अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज करा सकते थे और न्याय मांग सकते थे।
ईडी के दावा स्पष्ट नहीं
कोर्ट ने ईडी के उस दावे को भी अस्पष्ट माना है, जिसमें ईडी ने कहा है कि उसने समय पर कार्रवाई की, जिसकी वजह से रिकॉर्ड से छेड़छाड़ करके जमीन को बिकने से बचाया जा सका।
इसलिए कोर्ट के पास इस बात के पर्याप्त कारण हैं कि याचिकाकर्ता को इस मामले में निर्दोष मानते हुए उसे जमानत दे दी जाए।
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