मुंबई, एजेंसिया। भारत में हर साल तकरीबन 4.5 लाख हार्ट के मरीज एंजियोप्लास्टी कराते हैं। वहीं, देश में 4 से 5 करोड़ लोग इस्चेमिक हार्ट डिजीज (IHD) से पीड़ित हैं। यह देश में होने वाली 15 से 20% मौतों की वजह बनती है। इस मामले में हार्ट की आर्टरीज संकरी होने लगती है, जो आगे चलकर हार्ट अटैक की वजह बनती है।
इसी तरह एंजियोप्लास्टी तब कराई जाती है, जब आर्टरीज में बैड कोलेस्ट्रॉल या खून के थक्के जमा होने से ब्लॉकेज बनने लगते हैं। इसी ब्लॉकेज की वजह से आर्टरीज से हार्ट को ब्लड की सप्लाई कम होने लगती है। जिससे हार्ट अटैक आने का खतरा बढ़ जाता है।
यही वजह है कि सीढ़ियां चढ़ने पर या वजन उठाने पर सीने में दर्द जैसी परेशानी होने पर लोग पहले ही एंजियोप्लास्टी करा लेते हैं।
आज हम जानेंगे कि एंजियोप्लास्टी क्या है? और इसे कब कराना चाहिएः
एंजियोप्लास्टी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी भी नस और आर्टरी के ब्लॉकेज को खोला जाता है। जब हार्ट में एंजियोप्लास्टी करते हैं तो उसे कोरोनरी एंजियोप्लास्टी कहा जाता है।
हार्ट अटैक या स्ट्रोक के बाद इलाज के लिए डॉक्टर मरीज की जान बचाने के लिए एंजियोप्लास्टी का ही सहारा लेते हैं। यह हाथ से या पैर से से की जा सकती है।
एंजियोप्लास्टी में एक इंजेक्शन देने के बाद एक छोटी ट्यूब हाथ या पैर की किसी रक्त वाहिका से डाली जाती है। ट्यूब के रास्ते एक कैथेटर और तार को डाला जाता है। इस तार को ब्लॉकेज के रास्ते पर क्रॉस किया जाता है।
एक बैलून से इस ब्लॉकेज को खोलकर एक रास्ता बनाया जाता है। उसके बाद वहां एक स्टेंट डाला जाता है। जिससे उस जगह पर दोबारा जल्दी ब्लॉकेज न हो।
इस स्टेंट को वहीं छोड़ दिया जाता है और कैथेटर व तार को बाहर निकाल लिया जाता है। एंजियोप्लास्टी 95% लोगों में सफल रहती है और इसे स्टैंडर्ड ऑफ केयर माना जाता है।
इस प्रक्रिया के बाद मरीज की ICU या CCU में कुछ समय तक निगरानी की जाती है। मरीज को लगभग 24 से 48 घंटे हॉस्पिटल में रखा जाता है।
आसान भाषा में कहें तो एंजियोप्लास्टी या स्टेंट डालना एक लाइफ सेविंग प्रॉसेस है। जिसे एक्सपर्ट कार्डियोलॉजिस्ट की निगरानी में किया जाता है।
एंजियोप्लास्टी कब करायेः
आमतौर पर जब खून की नलिकाओं में 70% से ज्यादा ब्लॉकेज हो तब एंजियोप्लास्टी करानी चाहिए। सामान्यत: इसके ये लक्षण देखने को मिलते हैं-
• मरीज की चलने-फिरने में सांस फूल रही हो
• सीने में तीव्र दर्द महसूस हो रहा हो
• सीढ़िया चढ़ने और वजन उठाने में ये दर्द ज्यादा हो जाए
ये लक्षण दवा से कंट्रोल ना हों तो एंजियोप्लास्टी करानी चाहिए।
अगर मरीज में किसी भी तरह के लक्षण ना हों तो 70% से कम ब्लॉकेज में एंजियोप्लास्टी करना ठीक नहीं है। गंभीर स्थिति में जब किसी का 80-90% ब्लॉकेज हो और लक्षण ज्यादा दिखें, तो उस स्थिति में हार्ट अटैक से बचाने के लिए भी एंजियोप्लास्टी की जा सकती है।
इसके अलावा हार्ट अटैक आने पर 100% नली बंद हो जाए, तो तुरंत एंजियोप्लास्टी करनी होती है। 70-80% ब्लॉकेज हो और मरीज को कोई लक्षण न दिखें तो इसे दवा से भी कुछ समय तक कंट्रोल किया जा सकता है।
एंजियोप्लास्टी के बाद बरते ये सावधानियाः
एंजियोप्लास्टी अगर पैर से हुई है तो उस जगह की साफ सफाई रखना बेहद जरूरी है। ज्यादा चलने-फिरने या दौड़ने से उस जगह पर सूजन या ब्लीडिंग हो सकती है। ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
मरीज को करीब एक हफ्ते तक बेड रेस्ट की सलाह दी जाती है। जिससे बाद धीरे-धीरे टहल सकते हैं या कोई हल्का व्यायाम भी कर सकते हैं।
कई बार स्किन के अंदर होने वाली ब्लीडिंग की वजह से आसपास नीले या लाल दाग हो जाते हैं, जिन्हें ठीक होने में करीब 2 हफ्ते लग जाते हैं। इसके लिए बर्फ से उस जगह की सिंकाई कर सकते हैं।
एंजियोप्लास्टी अगर हाथ से हुई है तो हाथ को ज्यादा देर नीचे लटकाकर नहीं रखना चाहिए। इससे हाथ में ज्यादा दर्द होता है। हाथ में आर्टरी का पल्सेशन देखना बहुत जरूरी है।अगर हाथ या कोहनी के हिस्से में ज्यादा दर्द हो रहा है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
इसके अलावा नियमित रूप से डॉक्टर के द्वारा बताई गई दवाओं को लेना चाहिए। ऐसा न करने से फिर से ब्लॉकेज हो सकता है और दिल का दौरा पड़ने का खतरा रहता है।
एंजियोप्स्टी के बाद की जिंदगीः
आमतौर पर एंजियोप्लास्टी के बाद व्यक्ति की लाइफ नॉर्मल होती है। ज्यादातर यह व्यक्ति के पंप फंक्शन पर निर्भर करता है। समय पर दवाएं और हेल्दी लाइफस्टाइल रखें तो कुछ दिनों बाद आराम से कहीं भी घूम-फिर सकते हैं। ठीक होने के बाद व्यक्ति अपने काम पर लौट सकता है।
अगर किसी को हार्ट अटैक आया है तो यह जानना जरूरी है कि हार्ट की पंपिग कैपेसिटी क्या है। इसके लिए अपने डॉक्टर से पूछ सकते हैं या 2D रिपोर्ट चेक कर सकते हैं। इसे EF (Ejection fraction) कहा जाता है। मतलब एक बार में आपका हार्ट कितने ब्लड को बाहर फेंक सकता है। जैसे कि-
50% के ऊपर होने पर यह नॉर्मल होता है।
40-50% हल्की शिथिलता है।
40-30% मध्यम शिथिलता है।
30% से कम गंभीर शिथिलता है।
20% से कम बहुत गंभीर शिथिलता इसमें जान जाने का जोखिम बहुत ज्यादा होता है।
कौन सा एंजियोप्लास्टी बेहतरः
पहले जब स्टेंट की टेक्नोलॉजी नहीं थी तब बैलून की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता था। जिसमें बैलून से नसों या आर्टरी को फुला देते थे फिर बैलून को बाहर निकाल देते थे। ऐसे में ब्लॉकेज के दोबारा होने या नली के वापस से उसी स्थिति में आने का खतरा रहता था।
स्टेंटिंग करने से नली का कचरा बीच में नहीं आता है, वह साइड से ही चिपका रहता है। नली में दोबारा से ब्लॉकेज की आशंका भी नहीं रहती है। एक्सपर्ट बताते हैं कि जहां तक पॉसिबल हो स्टैंटिंग ही करनी चाहिए, बैलून एंजियोप्लास्टी को तभी करना चाहिए, जब किसी वजह से स्टैंटिंग एंजियोप्लास्टी पॉसिबल ना हो।
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