Tuesday, June 24, 2025

टूटते सपनों के बीच युवाओं में फिर जगी आस

रांची। झारखंड के युवाओं के सपने टूट रहे हैं। कई बार नियुक्ति प्रकिर्या शुरू होने के बाद भी विभिन्न कारणों इसके बाधित हो जाने पर सपना टूटना लाजिमी है। पिछले दिनों सरकार की नियोजन नीति हाइकोर्ट द्वारा निरस्त किये जाने के बाद कई नियुक्तियों के विज्ञापन रद्द करने पड़े। इससे लाखों युवाओं के सपनों पर पानी फिर गया।

हताश युवा नियोजन नीति और नियक्ति की मांग को लेकर सड़क पर भी उतरे। अब 27 फरवरी से शुरू होने जा रहे विधानसभा के बजट सत्र को लेकर निराश युवाओं में फिर एक आस जगी है।

उन्हें उम्मीद है कि सरकार इस सत्र में नयी नियोजन नीति ला सकती है। यह उम्मीद इसलिए भी जगी है कि राज्य सरकार ने सत्र शुरू होने से पहले युवाओं से यह सुझाव भी लिया है कि उन्हें कैसी नियोजन नीति चाहिए। इससे युवाओं में उत्साह भी है।

हाइकोर्ट ने खारिज कर दी है नियोजन नीत

यहां यह बताना मुनासिब होगा कि राज्य में नियुक्ति की प्रक्रिया मंद पड़ गई है। हाईकोर्ट द्वारा नियोजन नीति निरस्त किये के बाद सारी नियुक्ति प्रक्रिया बाधित हो गयी हैं। कोर्ट ने नीति के उस हिस्से को गैर कानूनी माना था, जिसके तहत राज्य से मैट्रिक और इंटर पास करने वाले को ही रोजगार देने का प्रविधान किया गया था।

इसके बाद सरकार ने नीति में संशोधन के लिए पहली बार युवाओं से ही सुझाव आमंत्रित किया। युवाओं को उम्मीद है कि अब हजारों की संख्या में सरकारी विभागों में रिक्त पड़े पदों को भर्ती प्रक्रिया शुरू हो सकेगी।

राज्य में लोगों को रोजगार मुहैया कराने की गति को भी रफ्तार मिलेगी। बड़े पैमाने पर बेरोजगार हो रहे युवाओं को भी राज्य में ही नौकरी मिलेगी। सभी जानते हैं कि राज्य में पूर्व से ही पलायन एक बड़ी समस्या रही है।

पहले भी नियोजन नीति हो चुकी है अमान्य

ऐसा नहीं है कि राज्य में पहली बार नियक्ति कोर्ट ने खारिज की है। इसके पूर्व भी पिछली सरकार में बनी नियोजन नीति भी हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट से रद की जा चुकी थी। बार-बार नीतियों के बनने और बदलने में समय तो लगता ही है, इसमें गड़बड़ी रह जाने से कोर्ट से भी इसे अमान्य करार दिए जाने का खतरा बना रहता है। और युवाओं की इम्मीदें भी टूटती हैं।

इसलिए अब सरकार सबकी सलाह से ऐसी नियोजन नीति बनाने का प्रयास कर रही है, जिसे कहीं भी इसे चुनौती नहीं दी जा सके। क्योंकि राज्य के सतत विकास के लिए रोजगार देने की रफ्तार बरकरार रखना बहुत ही जरूरी है। इससे बौद्धिक पलायन भी रूकेगा।

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