Allahabad High Court:
इलाहाबाद, एजेंसियां। इलाहाबाद हाईकोर्ट एक बार फिर ऐतिहासिक कदम उठाने जा रहा है। 36 साल बाद कोर्ट में 9 न्यायाधीशों की विशेष पीठ गठित की गई है, जो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत प्राथमिकी (FIR) रद्द करने की उच्च न्यायालय की शक्ति से संबंधित कानूनी प्रश्नों पर सुनवाई करेगी। यह विषय पहले दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के अंतर्गत आता था।
1989 में ‘रामलाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार’ मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया था कि एफआईआर रद्द करने के लिए CrPC की धारा 482 के तहत याचिका नहीं चल सकती, बल्कि इसके लिए अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जानी चाहिए।
Allahabad High Court: कोर्ट ने आदेश में क्या कहा?
हाल ही में न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने इस पूर्व निर्णय से असहमति जताते हुए इसे “अप्रचलित” बताया और इसे नौ-सदस्यीय पीठ को भेजने की सिफारिश की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ‘भजन लाल’ (1990) और ‘निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र सरकार’ (2021) जैसे फैसलों ने पुराने फैसले की वैधता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जज ने “न्यायिक अनुशासन” और “स्टेयर डेसिसिस” के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए यह फैसला लिया।
इतिहास की बात करें तो इससे पहले 1969 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में 28 न्यायाधीशों की सबसे बड़ी पीठ बनी थी, जिसने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दिए गए दो जजों की गिरफ्तारी के आदेश को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय को बरकरार रखा था।
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